जातकादेशमार्ग
प्रस्तुत कृति जातकादेशमार्ग फलित ज्योतिष का प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है जो सुदूर दक्षिण भारत में कई शताब्दी पूर्व लिखा गया था । यह अंग्रेजी अनुवाद सहित दक्षिण भारत में तो पहले ही प्रकाशित हो चुका है किन्तु हिन्दी व्याख्या सहित प्रथम बार पाठकों के सम्मुख लाया जा रहा है । जैसे चन्द्र-ज्योत्सना मार्ग को आलोकित कर पथिक को निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचाने में सहायक होती है उसी प्रकार इसकीचन्द्रिकाव्याख्या ज्योतिष के जटिल पथ को सुगम करने में सहायक है ।
इस ग्रंथ के कर्ता ज्योतिष के महान विद्वान और मनीषी थे । इस ग्रंथ में बहुत-से ज्योतिष के वे सिद्धान्त दिए गए हैं जो पाठकों को उत्तर भारतीय ग्रंथों में अप्राप्य हैं । अष्टकवर्ग प्रकरण भाव विचार दम्पति में आनुकूल्य पुत्र चिन्ता सन्तान चिन्ता आदि पाठकों को सर्वथा नवीन तथा उपादेय सिद्धान्तों से परिचित कराएँगे । ज्योतिष के प्रेमियों के लिए विशेषfकर फलित का अनुसंधान करने वालों के लिए यह एक अत्यन्त संग्रहणीय ग्रंथ है ।
प्राक्कथन
तद्दिव्यमव्ययं धाम सारस्वतमुपास्महे ।
यत्प्रसादात् प्रलीयन्ते मोहान्धतमसच्छटाः ।।
इस जातकादेशमार्ग (चन्द्रिका) को सहृदय पाठकों के सम्मुख रखते हुए अत्यन्त हर्ष हो रहा है । जातकादेशमार्ग सुदूर दक्षिण में लिखा हुआ फलित ज्यौतिष का प्राचीन ग्रंथ है । चन्द्रिका इसकी व्याख्या है । जैसे सम्पूर्ण चन्द्र की ज्योत्स्ना पथिक के मार्ग को सुस्पष्ट कर देती है वैसे ही इस दुरूह फलित ग्रंथ की जटिल ग्रंथियों को सुलझाने में यह हिन्दी व्याख्या सहायक होगी यह आशा ही नहीं अपितु हमारा दृढ़ विश्वास है । इस ग्रंथ में वर्णित विषय कुछ तो अन्य फलित ग्रंथों में भी प्राप्त होता है किन्तु बहुतसा विषय सर्वथा नवीन है जो ज्योतिषियों तथा मर्मज्ञ पाठकों की ज्ञानवृद्धि में सहायक होगा इसमें अणुमात्र भी सन्देह नहीं ।
इस ग्रंथ के अध्याय ८,९,१०,११,१२,१३,१४ योग अष्टक वर्ग भाव विचार चार फल दशापहारच्छिद्र भार्याविचार दम्पति का पारस्परिक आनुकूल्य आदि मार्मिक विषयों का विवेचन करते हैं और यह निस्सन्देह कहा जा सकता है कि फलित ज्योतिष के जो नवीनसिद्धान्त इस ग्रंथ में उपलब्घ होते हैं वह अन्य ग्रंथों में प्राप्य नहीं हैं ।
संस्कृत के श्लोक कितने सरस और मार्मिक हैं इसका अनुभव अब पाठक स्वयं करेंगे । यह वर्णन की वस्तु नहीं है । दक्षिण भारत में भी मलावार ज्योतिष का प्रसिद्ध केन्द्र बै । वहीं कई शताब्दी पूर्व पठुमनाई चोमाद्रि (सोमयाजी) नामक प्रसिद्ध विद्वान् हुए थे । उन्हीं की यह अनुपम कृति है । इन महानुभाव द्वारा लिखित अन्य ग्रंथों में एक करण पद्धति भी है-जिसमें गुरषाकार हारक ज्या आदि का सविस्तर विवेचन किया गया है । वे कोचीन स्टेट के अन्तर्गत तलप्पिली ताल्लुक के निवासी थे । यह स्थान केरल देश में है ।
इस ग्रंथ को देखने से पता चलता है कि बृहज्जातक लघुजातक जातकपारिजात फलदीपिका यवनजातक शिल्पिरत्न प्रश्नमार्ग आदि विविध ग्रंथों का इमने पूर्ण अध्ययन तथा उन ग्रंथों में प्रति- पादित ज्योतिष के सिद्धान्तों का पूर्ण अनुशीलन और अनुभव किया था | इस ग्रंथ का विद्वस्समाज में पूर्ण आदर है और इसमें वर्णित फलित के सिद्धान्तों में ज्योतिषियों की पूर्ण आस्था और श्रद्धा है । इतना अमूल्य ग्रंथरत्न होने पर भी अब तक हिन्दी व्याख्या सहित यह पाठकों के सम्मुख नहीं आया था । प्रथम बार मूल संस्कृत सहित पाठकों के सम्मुख उपस्थित करने में हमें परम हर्ष है ।
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