प्रस्तावना--प्रथम संस्करण
ज्योतिष सम्बन्धी मेरी सभी पुस्तकें -फलित और गणित सम्बन्धी जनता और प्रेस दोनों ही हारा उस सीमा तक ग्रहण की गई हैं जितनी मेरी आशा नहीं थी । इससे ज्योतिष के नए पहलुओं पर नई पुस्तकें छापने का प्रोत्साहन मिला है । जो नई पुस्तक मैं अभी प्रस्तुत कर रहा हूँ, ज्योतिष की पारम्परिक पद्धति से अलग है । इसमें हमने प्रत्येक भाव पर विस्तारपूर्वक और उदाहरण सहित विवेचन किया है । अत: इस नई पुस्तक के महत्व के बारे में कोई प्रश्न नहीं किया जा सकता है ।
हमारे वर्तमान ज्ञान में कुछ भी कठिन नहीं है सिवाए यह बताने के कि किस घटना और परिस्थिति में कोई योग क्या फल देगा । उदाहरणस्वरूप लग्न में शनि और सूर्य के उदय होने पर जो योग बनता है उससे पतन, रोग, प्रास्थिति और धन की हानि होती है; इससे मनोदशा विकृत हो सकती पै, प्रतिभा में अवरोध आ सकता हं या इसका प्रभाव अन्य क्षेत्रों पर भी पड़़ सकता है । निम्नलिखित पृष्ठों में यह प्रयास किया गया है कि प्रत्येक भाव के सन्दर्भ में विभिन्न प्रभावों के संकेतों को सुनिश्चित किया जाए ।
किसी कुंडली पर विचार करते समय एक ज्योतिषी को अनेक संकटों से गुजरना पड़ता है । प्रत्येक भाव भिन्न-भिन्न महत्व रखते हैं और किसी विशेष भाव में पाए जाने वाले योग त्स भाव से सम्बन्धित कार्यो पर विभिन्न प्रकार से भिन्न-भिन्न प्रभाव डाल सकते हैं । इसे और स्पष्ट करने के लिए चौथा भाव लेते हैं । यह भाव मां, शिक्षा, भूमि, भवन सम्पत्ति के लिए होता है । एक अशिक्षित व्यक्ति के पास अनेक मकान हो सकते है जबकि एक शिक्षित व्यक्ति के पास कोई सम्पत्ति नहीं भी हो सकती है । यह योग किस प्रकार से एक भाव के विभिन्न संकेतों के सम्बन्ध में भिन्न भिन्न ढम से प्रभावित करता है । महत्वपूर्ण तथ्य अर्थात् कारक को शामिल करके इस प्रत्यक्ष असंगति का कुछ सीमा तक समाधान किया गया है । इस पुस्तक में दिए गए उदाहणों के सावधानीपूर्वक अध्ययन से यह तथ्य स्पष्ट हो जाएगा । इस पुस्तक में मेरा यह प्रयास रहा है कि पाठक ज्योतिष के व्याव- हारिक पहलू का ज्ञान प्राप्त करें और अल्पविकसित सिद्धान्तों तथा नियमों को छोद् दिया गया है ।
किसी ज्ञान के अध्ययन में सिद्धान्त और उसका प्रयोग दोनों साथ साथ चलता है । सिद्धान्त हमेशा सिद्धान्त ही रहता है और इससे मनुष्य को व्याव- हारिक ज्ञान नहीं होता । भौतिक, रसायन, जीव और भूविज्ञान को लेते है । किसी व्यक्ति ने इस विषय पर उपलब्ध सारी पुस्तकें पढ़़ ली हों परन्तु जब उसे लागू करने का प्रश्न उठता है तो वह मूर्ख की तरह मुह खोल देता है । एक साधारण मेकेनिक, औषध वैज्ञानिक या कम्पाउन्डर अपने विषय में इसलिए निपुण होता है कि उसे व्यावहारिक अनुभव होता है । व्यावहारिक सक्षमता के साथ सैद्धान्तिक ज्ञान का सुव्यवस्थित मिश्रण हमेशा वांछित होता है ।
ज्योतिष के क्षेत्र में भी इस विषय की सत्यता समझने के लिए व्यावहारिक कुण्डलियों का अध्ययन और इसके तकनीक को उचित रूप से समझना अत्यन्त आवश्यक है । इस पुस्तक को लिखते समय इस लक्ष्य को ध्यान में रखा गया है । विशिष्ट उदाहरण और महत्वपूर्ण सिद्धान्तों के उदाहरण वास्तविक जीबन से चुने गए हैं । इन उदाहरणों के सावधानीपूर्वक अध्ययन से निश्चित ही ज्योतिष का ठोस और व्यावहारिक ज्ञान होगा । हमने भावों के विश्लेषण में विभिन्न योगों को हिसाब में नहीं लिया है क्योंकि हमने उनके बारे में .अपनी तीन सौ महत्वपूर्ण योग' नामक पुस्तक में विस्तारपूर्वक विचार किया है ।
हिन्दू ज्योतिष की प्राचीन पुस्तको में दिए गए अधिकतर नियमों की आसानी से जांच हो सकती है । यदि हम पर्याप्त आंकडे एकत्र कर सके । उन्हें अप्रयुक्त बताकर अविचारित ही अस्वीकार कर देना हमारी अज्ञानता होगी ।
भारत में अपनी यात्रा के दौरान हमने अनेक प्रख्यात वैज्ञानिकों और विद्वानों से बातचीत की उनमें से अधिकतर इस बात से आश्वस्त हैं कि ज्योतिष का आधार तर्क संगत है किन्तु वे सार्वजनिक रूप से ऐसी घोषणा करने में आनाकानी करते १ क्योंकि दकियानूसी बैज्ञानिकों ने अभी ज्योतिष को स्वीकार नहीं किया है ।
इस पुस्तक में मैं ज्योतिष के लिए कोई मामला तैयार करने नहीं जा रहा हूं ।'नौसिखियों के लिए ज्योतिष' और 'ज्योतिष और आधुनिक विचार' नामक पुस्तकों में दी गई मेरी प्रस्तावना से यह महान संशय समाप्त हो जाना चाहिए कि ज्योतिष एक विज्ञान है न कि अन्धविश्वास । यह एक नक्षत्र या ब्रह्माण्ड सम्बन्धी विज्ञान है जो ब्रह्माण्ड के ऊर्जा के खेल से सम्बन्धित है । यदि आधुनिक विज्ञान अपने सीमित साधनों से यह पता नहीं लगा सका कि अस्तित्व के तीन क्षेत्रों अर्थात् शारीरिक, मानसिक और नैतिक, पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता हैं तौ निश्चित ही यह ज्योतिष का दोष नहीं है ।
प्राचीन काल के महर्षि जिन्होंने ज्योतिष के नियम प्रतिपादित किए, उनकी आत्मा काफी विकसित थी और उन्होंने अपनी दिव्य द्ष्टि से पार्थिव और खगोलीय प्रतिभासों की जांच की जो ऋषि अपने समय काल में इतनी महान ख्याति छोड़ गए उनके प्रति औसत विचार रखने में हमारा कोई औचित्य नहीं है । उन्होंने बहुत से प्रतिभासों को देखा जो आजकल के वैज्ञानिक अपने उपकरणों से देखने की आशा भी नहीं कर सकते । हमारा मस्तिष्क औसत है और वह सांसारिक सुख का अध्ययन और उसे प्राप्त करने में लगा रहता है । यद्यपि योग के अन्तिम चरण पर वे इस प्रकार के ज्ञान का सांसारिक सुख के लिए उपयोग करते है और वे इसका प्रयोग एकमात्र मानव सुख के लिए करते है ।
क्या ज्योतिष जैसा विज्ञान कभी असत्य हो सकता है? वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड के समस्त स्वरूप का अपरिमार्जित रूप से एक भौतिकवादी रूप लेते हैं । उन्हें इसी चात में संतोष होता है कि वे ज्योतिष को जांच के लिए एक उपयुक्त विषय मानते हैं बशर्ते कि नियति के तथ्य इससे नियन्त्रित होते हों । यह मात्र बेतुका है । ज्योतिष में नियति के समान और कुछ नहीं है । प्रयोग में आने वाला उचित शब्द है 'अदृष्ट' । ज्योतिष केवल संकेत देता है और स्वशक्ति के विकास के लिए काफी गुंजाइश छोड़ जाता है जिससे कोई व्यक्ति बुरे संकेतों का प्रतिकार करता है या अनुकूल प्रभावों में वृद्धि करता है ।
मैं यह निश्चित रूप से अनुभव करता हूं कि मैंने इस पुस्तक में परिचय देकर काफी समय से अनुभव किए जाने वाले अभाव को पूरा कूर दिया है ताकि शिक्षित जनता इससे लाभ उठा सके ।
विषय-वस्तु
प्रथम भाग
प्रस्तावना-सातवां संस्करण
प्रथम संस्करण'
प्रस्तावना
अध्याय १-सामान्य परिचय
1-3
अध्याय २-भाव पर विचार करने की विधि
4-9
आयु काल का निर्धारण
10-14
प्रथम भाव के सम्बन्ध में
15-59
दूसरे भाव के सम्बन्ध में
59-93
तीसरे भाव के सम्बन्ध में
93-114
चौथे भाव के सम्बन्ध में
114-144
पंचम भाव के सम्बन्ध में
115-176
छठे भाव के सम्बन्ध में
176-206
व्यावहारिक उदाहरण
206-213
दूसरा भाग
सप्तम भाव के सम्बन्ध में
1
अष्टम भाव के सम्बन्ध में
54
नवम भाव के सम्बन्ध में
139
दसम भाव के सम्बन्ध में
183
एकादश भाव के सम्बन्ध में
277
द्वादश भाव के सम्बन्ध में
314
कुछ व्यावहारिक उदाहरण
345
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