पुस्तक के विषय में
"प्रसाद का कवि-कर्म"आन्तर हेतु' की ओर अग्रसर होता है क्योंकि वे मूलत: सूक्ष्म अनुभूतियों के कवि हैं। इनकी अभिव्यक्ति के लिए वे रूप, रस, स्पर्श, शब्द और गंध को पकड़ते हैं- कहीं एक की प्रमुखता है तो कहीं सभी का रासानियक घोल। वे अनेक विधियों से संवेगों को आहूत करते हैं। प्रसाद ने करुणा का आह्वान अनेक स्थलों पर किया है। मूल्य रूप में इसकी महत्ता को आज भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता। बल्कि आज तो इसकी आवश्यकता और बढ़ गई है।'ले चल मुझे भुलावा देकर' में पलायन का मूड है तो'अपलक जगती हो एक रात' में रहस्य का। किन्तु इन क्षणों को प्रसाद की मूल चेतना नहीं कहा जा सकता । वे समग्रत: जागरण के कवि हैं और उनकी प्रतिनिधि कविता है- 'बीती विभावरी जाग री।'
इस संग्रह में प्रसाद की उपरिवर्णित कविताओं के साथ'लहर से कुछ और कविताएँ, तथा इसके अलावा'राज्यश्री', 'अजातशत्रु', 'स्कन्दगुप्त’, 'चन्द्रगुप्त’ व'ध्रुवस्वामिनी’, नाटकों में प्रयुक्त कविताओं को भी संकलित किया गया है।
जयशंकर प्रसाद
जन्म30 जनवरी, 1890, वाराणसी(उ.प्र.) । स्कूली शिक्षा मात्र आठवीं कक्षा तक । तत्पश्चात् घर पर ही संस्कृत, अंग्रेजी, पालि और प्राकृत भाषाओं का अध्ययन । इसके बाद भारतीय इतिहास, संस्कृति, दर्शन, साहित्य और पुराण-कथाओं का एकनिष्ठ स्वाध्याय । पिता देवीप्रसाद तंबाकू और सुँघनी का व्यवसाय करते थे और वाराणसी में इनका परिवार'सुँघनी साहू के नाम मे प्रसिद्ध था । पिता के साथ बचपन में ही अनेक ऐतिहासिक'और धार्मिक स्थलों की यात्राएँ कीं ।
छायावादी कविता के चार प्रमुख उन्नायकों में से एक । एक महान लेखक के रूप में प्रख्यात । विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन ।48 वर्षों के छोटे-से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ ।
14 जनवरी, 1937 को वाराणसी में निधन ।
प्रमुखरचनाएँ झरना, आसु, लहर, कामायनी(काव्य); स्कंदगुप्त, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी जन्मेजय का नागयज्ञ, राज्यश्री, (नाटक); छाया प्रतिध्वनि आकाशदीप आँधी इंद्रजाल(कहानी-संग्रह); कंकाल तितली इरावती(उपन्यास)।
क्रम
1
लहर से
2
उठ-उठ री लघु-लघु लोल लहर
10
3
ले चल वहाँ भुलावा देकर
12
4
हे सागर संगम अरुण नील
14
5
उस दिन जब जीवन के पथ में
17
6
बीती विभावरी जाग री
20
7
आह रे वह अधीर यौवन
22
8
चिर तृषित कंठ से तृप्त-विधुर
25
9
तुमारी आँखों का बचपन
28
अब जागो जीवन के प्रभात
30
11
कोमल कुसुमों की मधुर रात
32
कितने दिन जीवन जलनिधि में
34
13
वे कुछ दिन कितने सुंदर थे
36
मेरी आँखों की पुतली में
38
15
अपलक जगती हो एक रात में
40
16
काली आँखों का अंधकार
42
अरे कहीं देखा है तुमने
44
18
अरे आ गई है भूली-सी
46
19
निधरक तूने ठुकराया तब
48
ओ री मानस की गहराई
50
21
कामायनीसे
तुमुल कोलाहल कलह में
52
23
स्कंदगुप्तमे
24
आह! वेदना मिलो बिदाई
55
राज्यश्रीसे
26
आशा विकल हुई है मेरी
58
27
सम्हाले कोई कैसे प्यार
60
अज्ञातशत्रुसे
29
मीड मत खिंचे बीन के तार
62
स्कंदगुप्तसे
31
संसृति के वे सुंदरतम क्षण
64
न छेडना उस अतीत स्मृति से
66
33
सब जीवन बीता जाता है
68
माझी साहस है खे लोगे
70
35
भाव-निधि में लहरियाँ तभी
72
अगरु-धूम की श्याम लहरियाँ
74
37
एक घूँटसे
खोल तू अब भी आँखें खोल
76
39
जीवन मे उजियाली है
78
जलधर की माला
80
41
चंद्रगुप्त से
तुम कनक किरण के अंतराल में
82
43
अरुण यह मधुमय देश हमारा
84
प्रथम यौवन-मदिरा से मत
86
45
आज इस यौवन के माधवी कुज में
88
सुधा-सीकर से नहला दो
90
47
मधुप कब एक कली का है
92
ओ मेरी जीवन की स्मृति
94
49
हिमाद्रि तुंग श्रृग से
96
सखे! यह प्रेममयी रजनी
98
51
ध्रुवस्वामिनी से
यह कसक अरे आँसू सह जा
100
53
यौवन तेरी चंचल छाया ।
102
54
अस्ताचल पर युवती सध्या की
104
56
निकल मत बाहर दुर्बल आह
106
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