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ईश्वर दर्शनः भ्रान्ति और सत्य: Ishwar Darshan (Illusion and Truth)

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Specifications
HBI041
Author: Pratapaditya
Publisher: Ananda Marga Pracaraka Samgha, Kolkata
Language: Hindi
Edition: 2012
ISBN: 9788189718558
Pages: 138
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 Inch
160 gm
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Book Description
प्रस्तावना

प्रस्तुत पुस्तक 'ईश्वर दर्शन भ्रान्ति और मत्य' मेरे अनुभव और अध्ययन के आधार पर प्राप्त तथ्य हैं। मेरा उद्देश्य न तो किसी संस्था या विचार का समर्थन है न विरोध है। मुझे इस युग के महापुरुष भगवान आनन्दमुर्ति का सान्निध्य प्राप्त करने का सौभाग्य मिला था और उनके द्वारा प्राप्त साधना और प्रायः सभी धर्मगुरुओं और धर्म दर्शनों का अध्ययन करने का सौभाग्य भी उन्हीं के दिशा निर्देश में मिला था। उन्होंने मुझसे ही क्यों सभी धर्ममतों और धर्मगुरुओं के मत मतान्तरों का अध्ययन करने को कहा था, यह मैं नहीं जानता। किन्तु यदि ऐसा मैंने न किया होता तो आज जिस दृढ़ता से मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ वैसा नहीं कह पाता। अध्ययन के दौरान जो विचित्र अनुभव हुए थे उन्हें प्रथमतः 'थारू का कुँआ' पुस्तक में और द्वितीयतः 'महाविभूतियों के सम्पर्क में' पुस्तक में दिया है। इस पुस्तक में अब आयु के अस्सी दशक में पिछले 40-50 वर्षों के अनुभवों और अध्ययन का सार देने का प्रयास मैंने किया है। इस प्रकार मेरे अनुभवक्रम प्रथम स्तर में भौत मानसिक द्वितीय स्तर में मानसाध्यात्मिक और तीसरे स्तर में आध्यात्मिक कहे जा सकते हैं।

पुस्तक में जो मूल वक्तव्य प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है उसमें आनन्दमूर्ति जी के 'साधना-मत तथा पथ' (सुभाषित संग्रह भाग-7) प्रवचन का सार संक्षेप और उनके ही द्वारा विभिन्न प्रसंगों में वर्णित समाधि के स्वरूप और उसके वर्गीकरण का जोड़ना आवश्यक था। ऐसा करना संभव नहीं हुआ क्योंकि तब पुस्तक का कलेवर बहुत बड़ा हो जाता। अतः जो जिज्ञासु इस पुस्तक के संकेतित विषय वस्तु को पूरी तरह समझना चाहें उन्हें यह प्रसंग पढ़ने ही पड़ेंगे। चूँकि मैं आनन्दमार्ग धर्मदर्शन और साधना विधा से जुड़ा है इसलिए इस पुस्तक में प्रस्तुत विषय के कतिपय अंश, विशेषतः उन्हें जो आनन्दमार्ग के अनुयाई है या जो परम्परागत धर्मदर्शन के प्रति आग्रहशील है कुछ असहज लग सकते हैं. इसलिए यह संकेत देना आवश्यक था। यदि उक्त प्रसंगों को ध्यान से पढ़ा जाये तो ईश्वर, भगवान और साधना की अनुभूति के विविध स्तरों का जो अनुभव संकेत इस पुस्तक में दिया जा रहा है उसका अनुमोदन आनन्दमुर्ति जी द्वारा भी प्राप्त होगा। निश्चय ही आनन्दमूर्ति जी ने ईश्वर, भगवान और परमपुरुष आदि में स्पष्टतः किसी भिन्नता की चर्चा नहीं की है किन्तु सम्पूर्ण आनन्दमार्ग वांग्मय और आनन्दमार्ग संगठन के इतिहास और कार्य पद्धति (व्यवहारपक्ष) पर चिन्तन मनन करने से मेरी धारणा स्पष्ट होगी, उसका समर्थन भी मिलेगा। अतः आनन्दमार्ग के अनुयाइयों को इस सम्बन्ध में कोई भ्रम नहीं होना चाहिए।

संभवतः मेरे जीवन की यह अन्तिम पुस्तक होगी। पुस्तक का उद्देश्य है अपने अनुभवों के माध्यम से सत्य का अनुसन्धान किंवा ईश्वरानुभूति की इच्छा और प्रयास करने वालों को एक दृष्टि देना जिसको वे अपने अनुभव और अध्ययन के साथ उपयोग में लाकर सत्यानुसन्धान करने में सफल हों।

यह सभी प्रकरण राष्ट्रीय सहारा पत्र में लेखों के रूप में पिछले दशक में प्रकाशित हो चुके हैं। मात्र थोड़े से संशोधन और परिवर्तन के साथ पुस्तकाकार में संग्रहीत हैं। यदि इनसे अध्यात्म जगत के साधको को कुछ भी लाभ हुआ तो मैं अपने को कृतार्थ समझेंगा।

पुस्तक परिचय

यह मानव शरीर चाहे हिंदू हो या मुसलमान आठ चक्र और नौ द्वारों वाली देवताओं की पुरी है-यही अयोध्या है और उसी में सुवर्ण सिंहासन पर राम विराजमान हैं-उस राम का दर्शन कोई भी कर सकता है-जब संपूर्ण द्वंद्वों से ऊपर उठ कर वह शांति की स्वर्गभूमि में अपनी चेतना को स्थापित कर लेता है। ऐसा प्रत्येक योग साधक कबीर का प्रतिनिधि होता है। अवश्य ही लड़ाई-झगड़ा देख कर वह रो पड़ता है और कह उठता है, 'सन्तों, जग बौराना।' धर्म के नाम पर राजनीति परोक्ष रूप में शोषण और मूलतः आर्थिक शोषण का घिनौना स्वरूप है। धर्म की सही समझ पैदा करके सभी प्रकार के शोषणों से मुक्त समाज की सुन्दर संरचना करनी पड़ेगी। धर्म एक आधारभूत मूल वृत्ति है-उसे न तो नकार कर समाज का निर्माण किया जा सकता है न उसे शोषण का हथियार बना कर। धर्म बृहत्ता की साधना है-संपूर्ण संकीर्णताओं से मुक्ति।

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