प्रियपरम श्रीश्रीठाकुर के आशीर्वाद से इष्ट एवं इष्टयनुसरण के प्रसंग में कही गयी उनकी बातों का संकलन कार्य समाप्त हुआ।
इष्ट शब्द का अर्थ है-मंगल। मनुष्यमात्र ही अपने मंगल के लिए प्यासा एवं प्रयत्नशील है। किन्तु वह मंगल उसके अभ्यस्त संस्कार की ओट में रहता है। यह अभ्यस्त संस्कार की ओट में रहनेवाला मंगल उसे वास्तव में मंगल का अधिकारी बनाने के लिए ही युग-युग में मनुष्य शरीर को धारण कर पुरुषोत्तम की महिमा में व्यक्त होता है। वह व्यक्त पुरुष ही अव्यक्त ईश्वर की वास्तविक मूर्ति है तथा वे ही है मनुष्य के इष्ट-मूर्तमंगल। उनके निःशर्त अनुसरण के माध्यम से ही मनुष्य प्रकृत मंगल का अधिकारी बन सकता है। और, उनको अनुसरण करने का अर्थ है उनकी बातों का अनुसरण करना, उनके नीति-निर्देशों या अनुशासन-वाक्यों का अनुसरण करना। जिन अनुशासनों के अनुराग-उच्छल, सक्रिय एवं अविकृत अनुसरण से मनुष्य के विच्छिन्न जीवन एवं जगत् के समस्त विरोधों का चरम समाधान होता है, मनुष्य काम-क्रोधादि प्रवृत्ति को वश में करके अखण्ड व्यक्तित्व का अधिकारी होता है तथा इस अखण्ड व्यक्तित्व में प्रतिष्ठित व्यक्ति ही हो सकता है स्वयं अपना, अपने परिवार का, व्यक्ति सहित परिवेश के सर्वांगीण मंगल का सार्थक एवं समर्थ होता (यज्ञकर्ता)।
Hindu (हिंदू धर्म) (12765)
Tantra (तन्त्र) (1023)
Vedas (वेद) (706)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1916)
Chaukhamba | चौखंबा (3358)
Jyotish (ज्योतिष) (1477)
Yoga (योग) (1105)
Ramayana (रामायण) (1386)
Gita Press (गीता प्रेस) (729)
Sahitya (साहित्य) (23272)
History (इतिहास) (8312)
Philosophy (दर्शन) (3425)
Santvani (सन्त वाणी) (2587)
Vedanta (वेदांत) (122)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist