'भक्तिकाल' पुस्तक लिखने में मुझे काफी समय लगा, कई बार मुझे चयन करने में असुविधा हुई। पढ़ा, बहुत पढा, तब मुझे समझ में आया कि 'भक्तिकाल में बहुत ऐसे विषय एव तथ्य छीपे हुए हैं, जिन्हें पाठकों के बीच में रखना आवश्यक है। कई विद्यार्थी ऐसे होंगे जो इस पुस्तक से लाभ लेंगे।
'भक्तिकाल में दो धारा प्रमुखता से बह रही थी एक, सगुण काव्य, दूसरा, निर्गुण काव्य। सगुण काव्य में दो उपधाराएँ राम काव्य एवं कृष्ण काव्य चली एवम् निर्गुण काव्य में भी दो उपधाराएँ बह रही थी एक ज्ञानमार्गी शाखा तथा दूसरा प्रेममार्गी शाखा । प्रेममार्गी शाखा को सूफीकाव्य भी कहा जाने लगा, जिसकी चर्चा विशद रूपमें 'सूफी काव्य परम्परा' नामक शीर्षक में की गयी है।
'भक्तिकाव्य' में जो भाव जगत चित्रित होता है उसमें का पुरुषता, लोलुपता, वासना, वाखलता, नपुसंकता, स्त्री-अपमान, स्वार्थान्धता, अश्लीलता और आत्म-कल्याण की तुलना में वीरता, शौर्य, त्याग, उदात्त प्रेम, अल्प-भाषी गाम्भीर्य, पौरूष, स्त्री-सम्मान, परोपकार, शोभा, सौन्दर्य, शालीनता और समाज कल्याण की प्रतिष्ठा है।
विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर इस पुस्तक को रचा गया है। इस पुस्तक से विद्यार्थी वर्ग भक्तिकाव्य के संदर्भ में अधिक जानकारी प्राप्त करेंगे। भक्तिकाल में कौन-सी प्रेरक परिस्थितियों थी, इसका उल्लेख यहाँ विशद रूप में किया गया है। अष्टछाप की परम्परा एवं अष्टछाप और लोक जागरण, कृष्ण काव्य परम्परा आदि के संदर्भ में विशद चर्चा करने की कोशिश है।
इस पुस्तक से तनिक भी किसी विद्यार्थी, पाठक, शोधार्थी, समीक्षक आदि को लाभ मिला, तब मैं समझेंगा कि मेरा परिश्रम सार्थक हुआ।
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