उत्तर प्रदेश में बुन्देलखण्ड के अर्न्तगत झाँसी जिले में एरच एक महत्त्वपूर्ण पुरास्थल है, जहाँ से पाषाण कालीन अवशेष, मृद्भाण्ड, अभिलेख, सिक्के, मुद्रा-मुद्राङ्क, प्रस्तर एवं मृण्मूर्तियाँ आदि प्राप्त हुई हैं। मैंने एरच के पुरातात्त्विक एवं ऐतिहासिक महत्त्व के बारे में, सर्वप्रथम 6 नवम्बर 1988 को आकाशवाणी छतरपुर (मध्य प्रदेश) से वार्ता तथा दिसम्बर 1988 में तंजौर (तमिलनाडु) में भारतीय मुद्रा परिषद् के वार्षिक अधिवेशन में The site of Erach: A Numismatic and Epigraphic Study शोधपत्र प्रस्तुत किया था। तदुपरान्त Archaeology of Erach: Discovery of New Dynasties पुस्तक 1989 में पूर्ण हो गयी थी, जिसकी भूमिका भी प्रो. बी.बी.लाल.पूर्व महानिदेशक, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने जून 1989 में लिख दी थी। किन्तु नवम्बर 1989 में झाँसी से गोरखपुर स्थानान्तरण एवं शासकीय व्यस्तताओं के कारण वह पुस्तक जनवरी 1991 में प्रकाशित हो सकी। पुस्तक की भूमिका लिखने हेतु में प्रो.बी.बी. लाल. के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। एरच के सर्वेक्षण में अपने महत्त्वपूर्ण चिकित्सकीय कार्य से समय निकालकर डॉ. रमेश चन्द्र बुधौलिया ने विविध प्रकार से सहयोग किया था। अतः उनके प्रति में हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। सर्वेक्षण में श्री हरदास वर्मा, श्री एल.के.झा और श्री गया प्रसाद केवट आदि ने भी सहयोग किया था। अतः उन लोगों के प्रति भी मैं आभारी हूँ। 1991 में Archaeology of Erach: Discovery of new Dynasties के प्रकाशन के पश्चात् समय-समय पर बहुत से पुरावशेष प्रकाश में आये हैं, जिनसे सम्बन्धित मेरे 27 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। शोध की यह प्रक्रिया लगातार जारी है। इसी क्रम में एरच के अभिलेख एवं सिक्के पुस्तक का प्रणयन किया गया है,
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