प्राचीन काल से भारत में राजनीतिक चिंतन की निरंतर और लंबी ऐतिहासिक उपस्थिति रही है। भारतीय राजनीतिक विचार को समझना यह विश्लेषण करने के लिए आवश्यक है कि भारतीय विचारकों ने राष्ट्र, धर्म, लोकतंत्र, अधिकार, रीति-रिवाजों, परंपराओं और आधुनिकता आदि जैसी अवधारणाओं को कैसे समझा। कई भारतीय आधुनिक राजनीतिक विचारकों के लिए, उनके विचारों का नामरा ध्यानमा था मधोंकि उन्होंने नाममता की बाल की। उन्होंने न केवल भारतीय दुर्दशाओं को बल्कि विश्व की समस्याओं को भी हल करने का प्रयास किया। भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के लिए कोई गंभीर अस्तित्वगत चुनौती नहीं थी और उनकी शक्ति 19 वीं शताब्दी की तीसरी तिमाही तक अच्छी तरह से स्थापित हो चुकी थी। उन्होंने अपने औपनिवेशिक शासन को मजबूत करना शुरू कर दिया जिसके लिए उन्हें भारतीय प्रजा के बीच एक समर्थन आधार की आवश्यकता थी। इसके लिए अंग्रेजों ने एक शिक्षित शहरी मध्यम वर्ग और दूसरा वर्ग जमींदारों का बनाया जो औपनिवेशिक प्रशासन में कार्यरत थे। उन्होंने शिक्षा प्रणाली के माध्यम से अपने सांस्कृतिक आधिपत्य को सुदृढ़ करने की योजना बनाई। एम एन झा (1975) के अनुसार, भारत को अपने विचारों के अनुरूप बनाने के लिए ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा कुल मिलाकर तीन कदम उठाए गए। सबसे पहले, उन्होंने पूरे देश को एक प्रशासनिक इकाई के तहत संगठित किया। दूसरा, शिक्षा की एक अंग्रेजी प्रणाली की स्थापना की गई थी। तीसरा, अंग्रेजों ने मानवविज्ञानियों और पुरातत्वविदों द्वारा किए गए शोधों के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक हीनता को दिखाने की भी कोशिश की। इसी राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन का उदय हुआ।
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