लेखक के विषय में
महाराजजी, भारतीय दृष्टिसे संस्कृतिकी परिभाषा करते हुए हमें भारतीय संस्कृतिकी मौलिक विशेषताएँ बताने की कृपा करें ।
भारतीय संस्कृतिको शाश्वत-सनातन क्यों कहा जाता है? वह चिर-पुरातन होते हुए भी चिर-नवीन कैसे बनी रही? इसके दीर्घजीवी होनेका क्या रहस्य है? महाराजजी, कृपया हमें समझावें ।
भारतीय संस्कृति श्रद्धा-प्रधान है कि बुद्धि-प्रधान? क्या श्रद्धा और बुद्धिमें अनिवार्य विरोध है? श्रद्धा और बुद्धिकी विशिष्टताको स्पष्ट करते हुए, महाराजजी, कृपया हमें समझायें कि भारतीय ऋषियोंने उनका समाहार किस प्रकार किया?
सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुगकी मान्यता ह्रासवादी धारणापर आधारित है जबकि आधुनिक विज्ञानकी दृष्टि मूलतः विकासवादी है । इसी प्रकार अन्य सांस्कृतिक मान्यताओं और वैज्ञानिक सिद्धान्तोंमें टकराव होनेपर उनका समन्वय कैसे किया जाये? महाराजजी, कृपया इस पर प्रकाश डालें ।
प्रकाशकीय
'भारतीय संस्कृतिका' प्रथम संस्करण नवम्बर, सन् 1985 में दीपावलीके अवसर पर किया गया था । इसका मनन और उपयोग भारतीय समाजके लिए आजकी परिस्थितियोके सन्दर्भमें कितना लाभप्रद है यह विज्ञजनोसे छिपा नहीं दे।
आज तो 'जैसे कुएँमें भाँग पड़ गयी है' की स्थिति है। जो जिसके मनमें जो आये बोल दे जीभपर लगाम नहीं है। पागलपन सवार है। जो मनमें आया ले लिया, तो इस मनमाने-पनसे कितनी उन्छृंखलता बढ़ेगी और अध: पतन होगा-यह चिन्ताका विषय विकराल मुँह फाड़े उठ खडा है। अत: जीवनमें एक मर्यादाकी अपेक्षा है और यह भारतीय समाजकी ही नहीं समस्त विश्व- ब्रह्माण्डकी दृष्टिसे चिन्तनीय प्रश्न है। मानव, मानव नहीं पशुसे भी बदतर हो रहा है । अत: जीवनमें संयम रहे और परिस्थितिके अनुसार परिवर्तन होता रहे, जिससे वह सुचारू रूपसे' चल सके! तो आइये, इस 'भारतीय-संस्कृति' नामक लघु पस्तिकायें प्रवेश करें और मानवीय मर्यादाके मूलभूत तत्वोंपर दृष्टिपात कर उसे अङ्गीकार करें!
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