प्रकाशकीय
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के समिति प्रभाग के महत्वपूर्ण प्रकाशन ‘कौटल्यकालीन भारत’ जिसकी रचना आचार्य दीपंकर ने की है, का तृतीय संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है । पुस्तक में विद्वान लेखक ने अपने दृष्टिकोण से मानव सभ्यता के विकास का सिंहावलोकन करते हुए कौटल्यकालीन भारत के समाज का एम्स सुन्दर चित्र प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । ग्रन्थ से तत्कालीन राजनीति एवं अर्थव्यवस्था का आभास मिलता है तथा आचार्य कौटल्य के महान बौद्धिक व्यक्तित्व की जानकारी भी प्राप्त होती है, जिन्होंने सुविख्यात ‘अर्थशास्त्र’ ग्रन्थ में राजतन्त्र के अन्तर्गत लोक कल्याणकारी शासन का सूत्रपात भी किया था ।
दो भागों में विभक्त इस ग्रन्थ में ग्यारह अध्याय हैं । विद्वान लेखक ने पुस्तक के प्रारम्भ में कौटल्य से पहले के भारत की चर्चा की है। वैदिक युग, पुरोहित युग, उपनिषद् काल, यूनानी दार्शनिकों का संघर्ष, महामानवों का योगदान, बौद्धधर्म, जैनधर्म, चर्वाक के प्रहार आदि की विवेचना करते हुए प्रथम नवजागरण के साथ-साथ भारत के राजनैतिक बिखराव पर भी प्रकाश डाला गया है।
पुस्तक में भारत के प्रथम राष्ट्रपिता कौटल्य के उदय, उनकी सफलता के कारण, उनके सपनों का भारत को रेखांकित करते हुए चाणक्य की नीति को भी उद्धृत किया गया है । चन्द्रगुप्त मौर्य से लेकर विक्रमादित्य तक का शासन काल लगभग 500 वर्षों का है जिसमें आधुनिक भारत का राजनैतिक एकीकरण एवं रूपान्तरण हुआ था । इस काल में उस संस्कृति और ज्ञान, विज्ञान तथा साहित्य एवं कला का विकास हुआ था जिसे भारतीय संस्कृति के नाम से जाना जाता है । आचार्य विष्णु गुण (चाणक्य, कौटिल्य अथवा कौटल्य) इसके संस्थापक एवं क्रान्तदर्शी हैं ।
विद्वान लेखक ने ग्रन्थ में समाज का आर्थिक ढाँचा कैसा हो इस पर भी विस्तार से प्रकाश डालते हुए समाज के ऊपरी ढाँचे, सामान्य प्रशासन, विदेश नीति की रूपरेखा, राजतंत्र का संकट आदि का विश्लेषण किया है ।
पुस्तक में तत्कालीन आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक स्थिति का तो स्पष्ट चित्रण है लेकिन साथ ही साथ शत्रु और मित्र कैसे हों, सीमा सम्बधी विवादों का निपटारा कैसे किया जाय, मंत्रिपरिषद् का दायित्व क्या हो आदि विषयों पर नीति निर्धारित की गयी है जो कौटल्य की इस समाज को विशेष देन है ।
आशा है पुस्तक का यह तृतीय संस्करण विद्वानों, छात्रों, जिज्ञासुओं का पूर्व की कात समादर प्राप्त कर सकेगा ।
अनुक्रमण़िका
हार न मानूँ
xv
भूमिका
xviii
1
प्रथम भाग कौटल्य से पहले का भारत
2
अध्याय एक देवासुर सभ्यताओं का संघर्ष और समन्वय
3
अध्याय दो प्रथम नवजागरण
23
4
अध्याय तीन भारत का राजनीतिक बिखराव
46
5
अध्याय चार भारत के प्रथम राष्ट्रपिता का उदय
53
6
अध्याय पाँच कौटल्य की सफलता के कारण
75
7
द्वितीय भाग कौटल्य के सपनों का भारत
96
8
अध्याय छ: समाज का आर्थिक ढाँचा
97
9
अध्याय सात समाज ऊपरी ढाँचा
145
10
अध्याय आठ सामान्य प्रशासन
180
11
अध्याय नौ विदेश नीति की रूपरेखा
214
12
अध्याय दस राजतंत्र का संकट
235
13
अध्याय ग्यारह चाणक्य नीति: चाणक्य के ही शब्दों में
263
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (876)
Agriculture (85)
Ancient (994)
Archaeology (567)
Architecture (525)
Art & Culture (848)
Biography (587)
Buddhist (540)
Cookery (160)
Emperor & Queen (489)
Islam (234)
Jainism (271)
Literary (867)
Mahatma Gandhi (377)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist