मुझे श्री कृष्ण कुमार जी द्वारा लिखित पुस्तक' ज्योतिष में नवांश का महत्त्व ''देखने का शुभ अवसर मिला । जहाँ नवांश का अध्ययन अपने अकेले अध्ययन के लिए, गुह्यतम स्थितियों को बताने में अत्यंत सहायक हो सकता है, वहीं यह अन्य वर्गों के साथ ही विचारणीय है, अन्यथा यह भटका भी सकता है । ऐसा प्रतीत होता है कि श्री कृष्ण कुमार जी ने इस बात को ध्यान में ही रखकर, इस पुस्तक में बहुत कुछ लिखा है । यह पक्ष अत्यंत सराहनीय है ।
उदाहरण के लिए, इन्होंने श्री.सी.एस पटेल द्वारा बताए गए ' भाव सूचक नवांश ' का जब मैंने अपने व्याखानों में बार-
बार जिक्र किया तो श्री कृष्ण कुमार जी ने इसे आत्मसात् कर इस पुस्तक में स्थान भी दिया । 'भाव सूचक नवांश' लग्न और नवांश में शुभ और अशुभ संबंधों पर विचार कर भविष्यवाणी करने की अद्भुत प्रक्रिया है । यहाँ लग्न पत्रिका की लग्न पर ही नवांशाश्रित ग्रहों को उन राशियों में ही जन्मपत्रिका में रखते है जिन नवांशों में ग्रह है । जो ग्रह इस 'भाव सूचक नवांश पत्रिका' की लग्न से केन्द्र व त्रिकोण में पड़ते है, वे अपने कारकत्वानुसार भाग्योदय और संबद्ध भावों के शुभ फलों को देते हैं ।
नवांश संज्ञाएं हिन्दी में प्रस्तुत कर श्री कृष्ण कुमार पटेल जी द्वारा ' नवांश साहित्य ' से संकलित मेरे संवादों में मुखरित विचारों को भी इस पुस्तक में शामिल कर मेरे प्रयत्नों में मेरे सहभागी हो गए हैं।
जीवन को भिन्न-
भिन्न पहलुओं पर इससे ऋषियों द्वारा प्रतिपादित सूत्रों का अध्ययन विद्यार्थियों और श्रेष्ठ ज्योतिषियों को भी सुखकर और लुभावना प्रतीत होगा ।
अष्टक वर्ग और नवाशांघ्रित ग्रहों का संबंध अपने आप में बहुत कुछ इंगित! करता है । सर्वाष्टक वर्ग में यदि ग्रह ऐसे स्थान पर हैं जिसमें शुभकारक बिंदु 28 से जितने अधिक हैं उतना ही अधिक शुभ फल देंगे, जितने कम उतनी शुभ नरुलों में कमी होती जाएगी ।
इसी प्रकार पुष्करांश आदि में ग्रह छठे, आठवें, बारहवें भाव में हों तो कष्ट कारक हो सकते हैं-तीन शुभ प्रभावों के अभाव में 1 अशुभ प्रभावों की वृद्धि से अशुभ फलों की वृद्धि होगी हो ।
दशांफल के विचार में क्रूराब्द, शुभाब्द और कूर मास शुभ मास काफी सहायक हो सकते हैं, यदि अन्य प्रभावों के साथ में विचार करें ।
निधनांश तथा अष्टमाश की व्याख्या तथा उस पर विचार बहुत कुछ कह जाते हैं, जिससे सामान्य ज्योतिषी शायद अभिज्ञ हैं । इस पुस्तक में इन्हें सरलता से बताया गया है ।
नवमांश गोचर पर अच्छी व्याख्या है । परन्तु यह ऐसा विषय है जिस पर नाड़ी ग्रन्यों में बहुत कुछ लिखा गया है । इस बारे में अधिक न लिखने के बारे में शायद कृष्ण कुमार जी की दो चिन्ताएं ठीक हैं-पहली पुस्तक के कलेवर की, दूसरे. विद्यार्थियों की समझने की क्षमता की । विद्यार्थियों को सीढ़ी दर सीढ़ी ही चढ़ाया जा सकता है, एक साथ नहीं ।
इस पुस्तक की विशेषता सूत्र ही नहीं, उनसे सम्बधित उदाहरण भी हैं । इससे यह पुस्तक सूखा मरुस्थल नहीं, पहाड़ों की सुरभित वादी है, जो पाठकों का मनमोह लेगी ।
मैं इस पुस्तक के लिए श्री कृष्ण कुमार को साधुवाद देता हूँ और शुभकामना है कि इनकी लेखनी से ज्योतिष साहित्य की अजस्र धारा सदैव इसी प्रकार बहती रहे।
अपनी बात
एक दिन मेरे मित्र श्री हरीश आहुजा ने सहज जिज्ञासावश पूछा कि भाग्यांश व लाभांश में क्या कोई सम्बन्ध है? शायद मुझे भाग्य, भाग्येश का तो ज्ञान था किन्तु भाग्यांश से मैं अपरिचित था। उन्होंने मुझे एक पुस्तक दी और फिर जो कुछ हुआ, वह सबके सामने है ।
जन्म कुण्डली की विभिन्न भावगत राशियाँ, नवांश कुण्डली में उन भावों का नवांश या भावांश बनती हैं । उदाहरण के लिए, महर्षि अरविन्द घोष का कर्क लग्न है। इनके लिए मीन राशि भाग्य, मेष कर्म तो वृष लाभ स्थान होंगे । नवांश कुण्डली में यही राशियाँ अर्थात् मीन भाग्याश, मेष राशि कर्मांश तो -वृष राशि लाभांश कहलाएगी । इनके कर्मांश मैं सूर्य उच्चस्थ है तो लाभांश में लग्नेश चंद्रमा उच्चस्थ हुआ 'है। देखें अध्याय तीन कुण्डली (8)।किसी ग्रह की जन्म कुण्डली में स्थिति भले ही खराब हो, किन्तु नवांश कुंडली में यदि वह शुभ ग्रह की राशि में शुभ दृष्ट या शुभयुक्त अथवा अन्य प्रकार से बली हो तो जातक निश्चय ही उस ग्रह से सम्बन्धी दशा में शुभ फल पाता है।
जन्म कुण्डली में स्थित कोई ग्रह यदि नवांश कुंडली में भी उसी राशि में हो तो वह वर्गोत्तम कहलाता है। शुभ वर्गात्तम या उच्च नवांश, 'वर्गोत्तम सरीखा या शायद उससे भी अधिक महत्त्व पुष्कर नवांश का है। आदरणीय कपूर साहब की मान्यता है कि यदि दो या तीन ग्रह पुष्कर नवांश में हों तो जातक धन, मान व प्रतिष्ठा पाता है । अध्याय सात के पैरा 7.8 में 20 उदाहरणों द्वारा इस बात को दर्शाया गया है।
कदाचित प्रथम नौ अध्याय के बाद ही विराम दिया जा सकता था किन्तु बाद में विचार हुआ कि क्यों न सभी भाव और उनके नवांश पर भी चर्चा की जाए । मित्रों के आग्रह व स्नेहपूर्ण सहयोग से पुस्तक का कलेवर निश्चय ही बढ़ा है । किन्तु शायद पुस्तक की उपयोगिता कई गुना अधिक बढ़ गई है।
सदा की भर्गंत पाठकों, मित्रों व मेरे गुरुजन .आदरणीय श्री ए.बी.शुक्ला और छात्रों का सहयोग मुझे मिला । उन्होंने दुर्लभ कुंडलियों जुटाईं और उनका विश्लेषण भी किया। निश्चय ही उनका योगदान प्रशंसनीय है ।
आदरणीय प्रोफेसर रोहित वेदी श्री के. लाचारी डॉ० श्रीमती निर्मल जिन्दल, इंजीनियर काश्तवार और कर्नल राजकुमार ने मेरा मनोबल बढ़ाया तथा मेरा मार्गदर्शन किया, मैं उनका आभारी हूँ।
श्री अमृतलाल जैन व उनके दोनों सुपुत्रों ने इस कृति के लिए विभिन्न स्रोतों से सामग्री जुटाई तथा शब्द संयोजन व प्रकाशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई-इसके लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं । मैं उनका हृदय से आभारी हूँ ।
गोपाल की करी सब होई... जो अपना पुरुषारथ माने अति झूठी है सोई । जब यह रचना उस गोपाल की हैं जो अपने हजार हाथों से सारे काम करता है तो मैं बीच में कहाँ से आ गया। इस 'मैं' रूपी मिथ्याभिमान से शायद मैं उबर नहीं पाया-इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ।
निश्चय ही पुस्तक में कमी या दोष मेरे अज्ञान व प्रमाद का प्रमाण है । आशा है, विज्ञ पाठक अपने विचार व अनुभव प्रकाशक को भेजेंगे जिससे अगले संस्करण में उन्हें सुधारा जा सके।
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