जिस प्रभु की महिमा गाने में शारदा, शेष, महेश, ब्रह्मा, विष्णु की वाणी भी सकुचाई है तथा वेद-शास्त्र आदि सभी सग्रंथ जिसे अकथ, अपार बताते हैं उस प्रभु की महिमा कैसे वर्णन की जा सकती है। परंतु फिर भी अपने हृदय रूपी समुद्र के अंदर जो बुद्धि रूपी सीप है उसमें सत्संग रूपी वर्षा की एक बूंद लेकर रखने के लिए तथा हृदय की प्यास बुझाने के लिए सभी ने पपीहा की भांति पिउ-पिउ की आवाज लगाई है। ईशों के ईश, देवों के देव, सर्व-अंतर्यामी के गुण बहुभाति से भक्तों ने गाये हैं। उनके गाये हुए को इसलिए दोहराया गया कि जिससे बुद्धि रूपी सीप में विवेक रूपी स्वाति का बूंद आ जाये।
मेरे जैसे अबोध बच्चे के लिए इस पाठ का दुहराना ही उचित जान पड़ा क्योंकि बार बार दुहराने से ही पाठ कुछ समझ में आता है। यद्यपि रामायण के पाठ का इस पुस्तक में बहुत छोटा सा लेख मात्र ही है। जिस प्रकार कुछ अक्षरों का बोध होने पर बच्चों को नाम लिखने की इच्छा होती है, उसी प्रकार मुझको इच्छा हुई। परंतु साफ साफ नहीं लिख सका इसके लिए बुद्ध जन मुझे क्षमा करेंगे और जिस प्रकार स्कूल से आने पर बच्चे की लेखनी को देखने के लिये घर वाले उत्साहित होते हैं उसी प्रकार मेरे इस पाठ को जिसको कि डरते-डरते आपके हाथों में सौंप रहा हूँ, उत्साह सहित ध्यानपूर्वक प्रतिदिन पढ़ने की कृपा करेंगे।
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