धर्मशास्त्र ज्ञान देता है, जीवन जीने की कला सिखाता है। इसलिए हम धर्मशास्त्र को कोरी पुस्तक या ग्रन्थ नहीं कह सकते, वह शास्त्र है और शास्त्र जीवन पर, मन पर शासन करने वाला होता है। इसलिए वह मानव का तृतीय नेत्र है। आज की भाषा में शास्त्र इंसान का ज़मीर है, आत्मा का विवेक है। और इसीलिए शास्त्र-स्वाध्याय का अपना खास महत्त्व है।
उ. भा. प्रवर्त्तक गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज सतत शास्त्र-स्वाध्याय की प्रेरणा देते रहते हैं। धर्मशास्त्र घर-घर में पहुँचें, पढ़े जायें, उनका स्वाध्याय हो-यही उनकी हार्दिक इच्छा है. जीवन की बहुत बड़ी अभिलाषा है। इसलिए वे पिछले तीस वर्षों से सतत प्रेरणा एवं प्रचार करते रहे हैं।
प्रत्येक धर्म परम्परा में धर्मग्रन्थों का पठन-पाठन-स्वाध्याय-श्रवण इसलिए किया जात है कि उनसे साध्य का, साधनों का ज्ञान भी होता है और जिन महापुरुषों व सत्पुरुषों ने ार्माचरण द्वारा अपना कल्याण किया है उनका प्रेरक पवित्र जीवन दर्पण की भाँति हमारे साम् उपस्थित हो जाता है, जिससे धर्माचरण की क्रिया सुविधाजनक हो जाती है।
भगवान महावीर ने जो धर्मोपदेश दिया, आत्म-शुद्धि की साधना का मार्ग बताया, धर्म-वचनों का संकलित रूप आगम है। आगम वाणी उस समय की लोक-भप्राकृत-अर्द्ध-मागधी में है। किसी समय अर्द्ध-मागधी जनता की बोलचाल की भाषा परन्तु आज वह अनजान और कठिन भाषा बन गई है। इसलिए शास्त्र पढ़ने से लोग कतन औरवल उनका अनुवाद अपनी भाषा में पढ़कर ही संतोष कर लेते हैं।
कथासार-राजगृह (मगध) के राजा श्रेणिक के नंदा नामक रानी से अभयकुमार नाम का पुत्र था। वह अतीव बुद्धिमान व मेधावी था तथा समस्त राज-काज का संचालन उसी के हाथ में था। राजा श्रेणिक के एक अन्य रानी थी जिसका नाम धारिणी था। वह एक रात अपने मुँह में एक श्वेत हाथी को प्रवेश करने का स्वप्न देख जाग पड़ी। राजा श्रेणिक तथा स्वप्नवेत्ता पण्डितों ने इस स्वप्न को एक तेजस्वी पुत्र प्राप्ति का संकेत बताया।
धारिणी गर्भवती हुई और तीसरे महीने में उसे असमय मेघ तथा वर्षाकाल में वन-उद्यानादि में भ्रमण का आनन्द लेने का दोहद उत्पन हुआ। धारिणी ने श्रेणिक राजा से दोहद की बात कही। असमय में वर्षाकाल को सम्भावना न होने से चिन्तित राजा ने अपने मेधावी पुत्र अभयकुमार से सारी बात कही। अभयकुमार ने पिता को आश्वस्त किया और अपने पूर्व-जन्म के मित्र एक देव का आह्वान कर उससे सहायता माँगी। देव ने अकाल मेघ तथा वर्षा ऋतु की दैवी रचना कर धारिणी देवी का दोहद पूरा करवाया।
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