जीवन की कशमकश में तन और मन की इकिगाई
इ जराइली इतिहासकार युवल नोआ हरारी की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तक 'सेपियंस : : मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास' गुजराती में लिखने के तुरंत बाद लिखी गई यह पुस्तक आपके हाथों में आ रही है। 'सेपियंस' के प्रकाशन के समय हमने पूछा था, "हम पहले की अपेक्षा अधिक खुश हैं? क्या मानव जाति ने पिछली पाँच शताब्दियों में जो संपत्ति इकट्ठी की है, यह एक नए संतोष में बदली है? यह पुस्तक मानव के भौतिक इतिहास की बात तो करती ही है, परंतु यह आंतरिक सुख को लेकर भी सवाल करती है।"
'सेपियंस' अगर मानव जाति के सुख की बात करती थी तो 'इकिगाई' व्यक्ति के सुख की बात करती है। एक तरह से देखा जाए तो दोनों पुस्तकें सूक्ष्म स्तर पर एक-दूसरे की पूरक हैं।
'इकिगाई' का अर्थ क्या है? पुस्तक में तो इसका अर्थ विस्तृत रूप में समझा दिया गया है, परंतु प्रस्तावना पढ़ने के लिए सरलता रहे, इस निवर्निकरण के दोष के साथ कहता हूँ कि 'इकिगाई' शब्द दो जापानी शब्दों के जोड़ से बना है- 'इकि' अर्थात् जीवन और 'गाई' यानी उद्देश्य। जापान के लोग अपने रोज-ब-रोज के जीवन की व्यावहारिक क्रियाओं के संदर्भ में 'इकिगाई' शब्द का प्रयोग करते हैं। 'इकिगाई' में मंतव्य को तीन प्रकार से समझा जा सकता है- 1. जीवन का हेतु (अर्थात् उद्देश्य या लक्ष्य), 2. सुबह जागने का उद्देश्य, और 3. व्यस्त रहने का सुख।
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