निवेदन
संसारमें बहुत भ्रम फैले हुए हैं कि कलियुगमें भगवत्प्राप्ति नहीं होती, माता-बहिनोंको प्राप्ति नहीं होती, गृहस्थोंको भी भगवत्प्राप्ति नहीं होती। गीताप्रेसके संस्थापक श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाने इन गलत परम्पराओंका अपने प्रवचनोंसे खण्डन किया है। उनका कहना था कि पापीसे पापी, मूर्खसे मूर्ख मानवमात्र इस कलियुगमें भी शीघ्रसे शीघ्र भगवत्प्राप्ति कर सकता है । भगवत्प्राप्ति मनुष्यका जन्मसिद्ध अधिकार है। वह अपनी अकर्मण्यताके कारण इस महान् आनन्दसे वंचित रह जाता है । अत: मनुष्यको इस काममें एक पलका भी विलम्ब नहीं करना चाहिये। यही मनुष्यमात्रका प्रधान कर्तव्य है, यदि इस जन्ममें प्रमादमें समय बिताया तो कितनी योनियोंमें मनुष्यको भटकना पड़ सकता है, इसकी कोई गणना नहीं हो सकती।
''श्रद्धेय गोयन्दकाजीके एक ही लगन थी कि मनुष्योंका कल्याण कैसे हो? इसलिये वे सत्संगका आयोजन स्थान-स्थानपर करनेकी चेष्टा करते थे। उन्होंने जो प्रवचन दिये थे, उनको संग्रहीत किया गया था। उन प्रवचनोंके कुछ अंशको पुस्तकका रूप दिया जा रहा है, जिससे पाठकोंको इनसे विशेष लाभ हो। श्रद्धेय गोयन्दकाजी सत्संग, भजन, ध्यान, निष्कामसेवा-भगवत्प्राप्ति के ये चार प्रधान उपाय बताया करते थे, इन्हीं विषयोंपर प्रस्तुत प्रवचनोंमें प्रकाश डाला गया है जिससे सभी भाई-बहन अपना मनुष्य-जीवन सफल बना सकते हैं।
विषय-सूची
1
पापी एवं मूर्ख भी शीघ्र भगवत्प्राप्ति कर सकते हैं
5
2
अपने साथ जानेवाली चीजोंमें सद्भाव भरें
16
3
वर्तमानमें ब्राह्मणोंके कर्तव्य एवं निष्काम भावकी महिमा
26
4
निष्कामताकी व्याख्या
38
भगवान्के जन्म-कर्मकी दिव्यता
42
6
भगवान्के ध्यानसे आनन्दकी प्राप्ति
45
7
श्रद्धाकी महिमा
68
8
सनातन धर्म तथा भगवान्के उपदेश नित्य हैं
78
9
प्रेमकी प्रधानता
89
10
उद्धारके लिये तत्परताकी आवश्यकता
104
11
सत्संगकी बातोंको आचरणमें लायें
111
12
अनन्यभक्ति कैसे प्राप्त हो?
117
13
प्रश्नोत्तर
125
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