निवेदन
भाईजी (श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार) के व्यक्तिगत पत्रोंके (जो 'कामके पत्र' शीर्षकसे 'कल्याण' में प्रकाशित होते हैं और जिनको लोग बड़ी उत्सुकतासे पढ़ते हैं) तीन भाग पाठकोंकी सेवामें जा चुके हैं।तीसरा भाग अभी कुछ ही दिनों पूर्व प्रकाशित हुआ आ । पुस्तकका आकार बहुत बड़ा न हो इसीलिये इस चौथे भागको अलग छापा है । पाँचवें भागके भी शीघ्र प्रकाशित होनेकी आशा है ।
पूर्वप्रकाशित संग्रहोंकी भांति इसमें भी पारमार्थिक एवं लौकिक समस्याओंका अत्यन्त सरल और अनूठे ढंगसे विशद समाधान किया गया है । आजकल जब कि जीवनमें दुःख, दुराशा, द्वेष और दुराचार बढ़ता जा रहा है तथा सदाचारविरोधी प्रवृत्तियोंसे मार्ग तमसाच्छन्न हो रहा है, तब सच्चे सुखशान्तिका पथप्रदर्शन करनेवाले इन स्नेहापूरित उज्वल ज्योति दीपकोंकी उपयोगिताका मूल्य आँका नहीं जा सकता ।
पहले के भागोंसे परिचित पाठकोंसे तो इनकी उपयोगिताके विषयमें कुछ कहना ही नहीं है । पुस्तक आपके सामने ही है । हाथ कंगनको आरसी क्या?
विषय
1
भगवान्के भजनकी महिमा
7
2
भोग मोक्ष और प्रेम सभीके लिये भजन ही करना चाहिये
11
3
भजन साधन और साध्य
17
4
भजनके लिये श्रद्धापूर्वक प्रयत्न करना चाहिये
19
5
भजनसे ही जीवनकी सफलता
21
6
भवसागरसे तरनेका उपाय एकमात्र भजन
24
लगन होनेपर भजनमें कोई बाधा नहीं दे सकता
25
8
नामसे पापका नाश होता है
28
9
नामनिष्ठाके सात मुख्य भाव
31
10
श्री भगवान् ही गुरु हैं भगवन्नामकी महिमा
34
भगवन्नामका महत्त्व
37
12
जप परम साधन है
38
13
भगवान्के नामोंमें कोई छोटा बड़ा नहीं
39
14
भवरोगकी दवा
40
15
भगवच्चिन्तनसे बेड़ा पार
41
16
कीर्तन और कथासे महान् लाभ
42
भगवान् के लिये अभिमान छोड़ो
43
18
महान् गुण भक्तिसे ही टिकते हैं
46
भगवत्कृपासे भगवत्प्रेम प्राप्त होता है
49
20
श्रीगोपांगनाओंकी महत्ता
50
गोपीभावकी प्राप्ति
54
22
प्रेममें विषयवैराग्यकी अनिवार्यता
56
23
प्रियतम प्रभुका प्रेम
57
सिद्ध सखीदेह
59
प्रेमास्पद और प्रेमी
60
26
प्रेम मुँहकी बात नहीं है
61
27
श्रीकृष्ण भक्तिकी प्राप्ति और कामक्रोधके नाशका उपाय
63
प्रियतमकी प्राप्ति कण्टकाकीर्ण मार्गसे ही होती है
66
29
गीतगोविन्दके अधिकारी
67
30
नि:संकोच भजन कीजिये
69
सभी अभीष्ट भजनसे सिद्ध होते हैं
72
32
भगवद्भजन सभी साधनोंका प्राण है
76
33
जीव भजन क्यों नहीं करता?
77
भजनकी महत्ता
82
35
श्रेय ही प्रेय है
83
36
आत्मविसर्जनमें आत्मरक्षा
87
मनुष्य जीवनका उद्देश्य
89
भगवत् सेवा ही मानव सेवा है
94
मन इन्द्रियोंकी सार्थकता
98
प्रतिकूलतामें अनुकूलता
99
भगवान्का मंगल विधान
भविष्यके लिये शुभ विचार कीजिये
101
परिस्थितिपर फिरसे विचार कीजिये
103
44
दूसरेके नुकसानसे अपना भला नहीं होगा
108
45
किसीको दु:ख पहुँचाकर सुखी होना मत चाहो!
109
बदला लेनेकी भावना बहुत बुरी है
117
47
निन्दनीय कर्मसे डरना चाहिये, न कि निन्दासे
118
48
निन्दासे डर नहीं, निन्दनीय आचरणसे डर है
120
पाप कामनासे होते हैं प्रकृतिसे नहीं
121
काम नरकका द्वार है
126
51
बुराईका कारण अपने ही अंदर खोजिये
130
52
मनुष्य शरीर पाप बटोरनेके लिये नहीं है
132
53
परदोष दर्शनसे बड़ी हानि
136
संकुचित स्वार्थ बहुत बुरा है
140
55
पापसे घृणा कीजिये
143
संकटमें कोई सहायक नहीं होगा
उपदेशक बननेके पहले योग्यता सम्पादन करना आवश्यक है
145
58
साधकोंके भेद
151
परमार्थके साधन
155
सच्चे साधकके लिये निराशा कोई कारण नहीं
159
श्रेष्ठ साध्यके लिये श्रेष्ठ साधन ही आवश्यक है
160
62
साधनका फल
164
शान्ति कैसे मिले?
166
64
त्यागसे शान्ति मिलती ही है
169
65
भगवच्चिन्तनमें ही सुख है
171
प्रसन्नता प्राप्तिका उपाय
175
सुख शान्ति कैसे हो?
178
68
शाश्वत शान्तिके केन्द्र भगवान् हैं
181
शान्तिका अचूक साधन
184
70
धनसे शान्ति नहीं मिल सकती
186
71
सेवा का रहस्य
190
अपनी शक्ति सामर्थ्यसे सदा सेवा करनी चाहिये
193
73
सेवा और संयमसे सफलता
196
74
दु:खियोंकी सेवामें भगवत्सेवा
197
75
कुछ प्रश्नोत्तर
200
कुछ आध्यात्मिक प्रश्न
205
कुछ पारमार्थिक प्रश्नोत्तर
208
78
प्रार्थनाका महत्व
216
79
प्रार्थना
223
80
विश्वासपूर्वक प्रार्थनाका महत्त्व
227
81
गुरु कैसे मिले
231
भगवान् परम गुरु हैं
232
भोग वैराग्य और बुद्धियोग बुद्धिवाद
236
84
जीवनमें उतारने लायक पदेश उपदेश
239
85
पीछे पछतानेके सिवा और कुछ भी न होगा
241
86
जगत् की असारता
245
संयोगका वियोग अवश्यम्भावी हैं
247
88
आसक्तिनाशके उपाय
249
भोगत्याग से ही इन्द्रिय-संयम सम्भव है
252
90
ब्रह्मज्ञान या भ्रम
256
91
चार द्वारोंकी रक्षा
259
92
चार काम अवश्य कीजिये
261
93
तीन श्रेष्ठ भाव
262
तीन विश्वास आवश्यक हैं
266
95
आत्मा अनश्वर है और देह विनाशी है
269
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