बहुकोशिक जीवों-पौधों और पशुओं में बनने वाले कार्बनिक पदार्थ-हॉर्मोन दूर स्थित ऊतकों की कोशिकाओं को अत्याधिक प्रभावित करते हैं। यह हॉर्मोन कोशिका के मूल जीवविज्ञान को कोशिका विभाजन, विकास और विभेदन जैसे विभिन्न तरीकों से नियमित करते हैं। इन सभी परिवर्तनों का एक सामान्य कारण कोशिका केन्द्रक में पाये जाने वाले विशिष्ट जीन का सक्रिय होना तथा एन्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम में कुछ नये प्रोटीनों का संश्लेषण होना है। जब हॉर्मोन द्वारा भेजे गये संदेश कोशिका की सतह पर पहुंचते हैं तब प्रोटीन का अनुलेखन, स्थानांतरण और संश्लेषण जैसी रोचक जैविक प्रक्रियाएं होती हैं जिनके बारे में आज भी पूरा ज्ञान नहीं है। हॉर्मोन विशिष्ट ग्राही प्रोटीनों जो कि कोशिका की सतह पर एवं अन्दर होते हैं, द्वारा ग्रहण किये जाते हैं। कुछ हॉर्मोन कोशिका भित्ति को पार करके कोशिका में मौजूद ग्राही प्रोटीन से मिल जाते हैं और यह जटिल मिश्रण केन्द्रक में प्रविष्ट हो जाता है। अन्य हॉर्मोन कोशिका के भीतर नहीं जाते परन्तु इनके द्वारा बना हॉर्मोन प्रोटीन मिश्रण द्वितीय संदेशवाहकों को उत्पन्न करता है।
पौधों और पशुओं दोनों की ही एक समान वृद्धि और विकास के लिए विभिन्न हॉर्मोनों का सही संतुलन आवश्यक है। पौधों में पाये जाने वाले हॉर्मोन हैं -ऑक्सिन, साइटोकाइनिन और जिबरेलिन। इन हॉर्मोनों के सामान्य से अधिक उत्पादन के कारण पौधों में असाधारण वृद्धि होती है, इसका प्रमाण क्राउन गॉल और जड़ों के पतले गुच्छे बन जाना जैसे रोग हैं। इन बीमारियों के लिए जिम्मेदार रोगाणु अपने जीन को मेजबान कोशिका में डाल कर ऑक्सिन और साइटोकाइनिन के उत्पादन पर अपनी खुद की हुकूमत चलाता है। परिणामस्वरूप, संक्रमित कोशिका इन हॉर्मोनों का असाधारण मात्रा में उत्पादन करती है और इसके साथ-साथ इस कोशिका का विभाजन भी होता रहता है जिसके कारण पौधों की जड़ों में अर्बुदी अथवा पतले धागे जैसी वृद्धि हो जाती है।
लैंगिक रूप से अलग होने के कारण ही पुरुष और स्त्री में अंतर होता है। लैंगिक विभेदन यूँ तो आनुवंशिक स्तर पर नियंत्रित होता है लेकिन इसका नियमन हॉर्मोनों द्वारा किया जाता है। स्त्री से पुरुष बनी मैशिहैम्ब्राया गिवीडोस सिन्ड्रोम जैसे दिलचस्प मामलों और दिन-प्रतिदिन की अत्यावश्यक क्रियाओं के लिये भी हॉर्मोन ही जिम्मेदार होते हैं। हॉर्मोन क्या हैं और ये किस तरह से पशुओं, पौधों और जीवाणुओं को प्रभावित करते हैं तथा इन रासायनिक संचारकों को जानने की अपनी उत्सुकता को आम पाठकों में बाँटने के उद्देश्य से ही मैंने यह पुस्तक लिखी है।
गर्भ-निरोधकों, खेलों, वृद्धि, कैंसर की पहचान तथा इलाज, मधुमेह जैसे चयापचयी रोग, झूठ की पहचान आदि में हॉर्मोनों के उपयोग तथा दुरुपयोग के कारण जैवप्रौद्योगिकीविदों को हॉर्मोन निर्माण करने की प्रेरणा मिली क्योंकि इन हॉर्मोनों की आवश्यकता बड़े पैमाने पर होती है, और आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा इन हॉर्मोनों को बहुत अधिक मात्रा में प्रयोगशाला में प्राप्त नहीं किया जा सकता। इस बारे में संक्षिप्त विवरण इस किताब के अंतिम अध्याय में दिया गया है।
प्रयत्न यही किया गया है कि इस किताब की भाषा और इसमें दिये गए तथ्य इतने सरल हों कि जो पाठक विषय से बिल्कुल अपरिचित हैं, उनकी समझ में भी आसानी से आ सकें। मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक उन सभी के लिये उपयोगी और दिलचस्प साबित होगी जो हॉर्मोनों से सम्बन्धित तकनीकी जानकारी से तो वंचित हैं परन्तु दैनिक जीवन में इन उपकारी संचारकों की अल्पमात्रा से अछूते नहीं हैं।
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