लीक लीक गाड़ी चले, लीक ही चलें कपूत। लीक छाड़ी तीनों चलें - शायर, सिंह सूपत।।
ऐसी भावना को केन्द्र में रखते हुये पहले से चली आ रही लीक को छोड़ कर गाँव के इतिहास को लिखने का कार्य किया गया तथा उसका सामाजिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन का कार्य किया गया। गाँव का इतिहास लिखना एक नई कल्पना एवं अभिनव प्रयास का प्रतिफल है। डॉ० चेतराम गर्ग जी के निर्देशन में इतिहास के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियों को प्राप्त करने वाला नेरी शोध संस्थान, हमीरपुर इस पुस्तक की अभिप्रेरणा के केन्द्र में स्थित है। शोध संस्थान ने ही मुझे कांगड़ा के नेरटी गाँव का इतिहास लेखन का दायित्व प्रदान किया। दिये गये दायित्व का निर्वहन करते हुये अनुभव हुआ कि भारत के प्रत्येक गाँव का एक गौरवशाली इतिहास है। नेरटी के इतिहास में एक ऐसे राजा राजसिंह हुये जिन्होंने राज्य की रक्षा के लिये अपने प्राण त्याग दिये लेकिन दासता स्वीकार नहीं की। यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि राजा राजसिंह के शौर्य का व्याख्यान तो कुछ इतिहासकारों ने किया भी है, किन्तु हमारे देश के गाँवों में असंख्य महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनायें घटित हुई हैं, जिनका उल्लेख लोकगाथाओं एवं लोककलाओं में ही किया गया है। राजसिंह की वीरगाथा को भी लोक कवियों ने अपनी गाथाओं में गुम्फित किया है। जिनसे परिचित करवाने का कार्य यह पुस्तक करेगी। पुस्तक में कई अन्य ऐतिहासिक साक्ष्यों को भी उपस्थापित करने का प्रयास किया गया है, जिनसे नेरटी गाँव का ऐतिहासिक महत्त्व स्थापित होता है। हमारे देश में पिछले दशकों से विदेशी आक्रान्ताओं का ही एकाङ्गी इतिहास पढ़ाया गया है। जबकि इतिहास का दूसरा पक्ष जो गाँवों से सम्बन्धित था, उसे पूर्ण रूप से छुपा दिया गया। मेरा विश्वास है कि वास्तविक इतिहास का अध्ययन गाँव के अध्ययन द्वारा ही संभव है, जिसे यह पुस्तक लक्षित करेगी। नेरटी गाँव के ऐतिहासिक अध्ययन से इतिहास के विद्यार्थियों को गाँव के ऐतिहासिक अध्ययन की नई दिशा प्राप्त होगी।
स्वतन्त्रता के अमृत महोत्सव में देश के नेपथ्य नायकों को याद करने का आह्वाहन भारत के यशस्वी प्रधामन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया। ऐसे कई नेपथ्य नायक हैं जिनको गाँवों के बाहर पहचान नहीं मिल पाई है। इस पुस्तक में नेरटी के स्वतन्त्रता सेनानियों की शौर्यगाथाओं को उपस्थापित करने का प्रयास किया गया है। जिससे हमारा देश ग्रामीण अंचलों की वीरता और ग्रामीण शूरवीरों के योगदान से परिचित होगा।
पुस्तक के माध्यम से उस मिथ को भी निर्मूल सिद्ध करने का प्रयास किया गया है, जिसमें कहा जाता है कि हमारे गाँवों में शिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती थी। यहाँ प्रामाणिक तथ्यों से सिद्ध किया गया है कि नेरटी गाँव ज्ञान, अध्यात्म एवं शिक्षण हेतु प्रतिष्ठित स्थान रहा है।
इतिहास के साथ- साथ भारतीय गाँवों में कई तरह के वैशिष्ट्य हैं, जिनका समाज के सम्मुख आना नितान्त अनिवार्य है। नेरटी का ऐसा ही एक वैशिष्ट्य है - यहाँ की कलाएँ। ये कलायें विविध प्रकार की हैं, यथा- ढोलरू गीत गायन, वाद्ययन्त्र गायन, बाँस से विशिष्ट पात्रों का निर्माण, लोकनाट्य इत्यादि।
चूँकि इस पुस्तक में गाँव का सामाजिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन किया गया है, अतः हमें विश्वास है कि यह पुस्तक रूपी अनुसन्धान समाजशास्त्र एवं समाजकार्य विषयों के अनुसन्धान हेतु प्रेरक ग्रन्थ सिद्ध होगा। आज हमारे समाजशास्त्र के विद्यार्थियों को समाजशास्त्र को जानने के लिये विदेशी सिद्धान्त पढ़ने पड़ते हैं। क्योंकि समाजशास्त्र के क्षेत्र में भारतीय समाज के अध्ययन को अधिक प्रोत्साहित नहीं किया गया है। ये विदेशी समाजशास्त्रीय सिद्धान्त किसी भी दृष्टि से भारत के अनुकूल नहीं हैं तथा ये भारतीय सामाजिक व्यवस्थाओं से मेल भी नहीं खाते हैं। अतः नेरटी के समाज के अध्ययन पर आधारित यह पुस्तक आने वाले शोधार्थियों को गाँव के सामाजिक अध्ययन हेतु प्रेरित करेगी। जिससे नये समाजशास्त्र सिद्धान्त सामाने आयेंगे जो भारत के लिये अनुकूल होंगे।
इस अनुसन्धान में डॉ० चेतराम गर्ग जी की प्रेरणा के अतिरिक्त प्रो० गौतम व्यथित जी का निर्देशन पग पग पर प्राप्त हुआ। कई दुर्लभ तथ्यों को जानने में व्यथित जी ने सहायता की। मेरे इस अनुसन्धान में मेरे साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने वाले श्रीमान् रघुनन्दन शर्मा जी का मैं विशेष रूप से धन्यवाद करता हूँ, जिन्होंने अपने बहुमूल्य समय में से मेरे लिये समय निकाला। रघुनन्दन जी के सहयोग से मैं नेरटी गाँव को अच्छे से जान पाया। इसके अतिरिक्त जिन गाँववासियों ने मुझे ग्राम सम्बन्धित तथ्यों से अवगत करवाया उन सभी के प्रति में प्रणति निवेदन करता हूँ और उन सभी के प्रति 'त्वदीय वस्तु गोविन्द, तुभ्यमेव समर्पये' की भावना से यह ग्रन्थ समर्पित करता हूँ। अन्त में लेखक की यही आशा है कि यह पुस्तक शोध एवं शोधार्थियों को नई दिशा देने में तथा गाँवों के समाज, संस्कृति एवं इतिहास के संरक्षण में ध्वज वाहक का कार्य करेगी। इस आशा की पूर्ति से लेखक अपने को धन्य समझेगा।
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