संसार में परमात्मा ने स्त्री-शक्ति का मुकाबला करने वाली कोई दूसरी शक्ति उत्पन्न नहीं की। वास्तव में भारतीय इतिहास में गौरवपूर्ण अध्याय के निर्माण कार्य में जितना सहयोग स्त्री शक्ति ने दिया है उतना अभी तक किसी ने नहीं दिया। आदिकाल में भी जब-जब देवासुर-संग्राम छिड़ा राक्षसी शक्ति को नष्ट करने के लिए दैवी शक्ति का आश्रय लिया गया। भारत के स्वाधीनता संग्राम में आक्रमणकारियों के विरुद्ध सदैव स्त्री शक्ति अग्रणी रही। अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अनेक दौरों से गुजरा। 1857 के विद्रोह में विश्व के सबसे महान् व शक्तिशाली साम्राज्य को चुनौती दी गई। 1857 के इस विद्रोह में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल जैसी वीरांगनाओं का योगदान विशेष उल्लेखनीय रहा। गांधी युग में राष्ट्रीय आन्दोलन जन आंदोलन में परिवर्तित हो गया। इस युग में सभी धर्मों व सम्प्रदायों के अनुयायियों तथा जनता के प्रत्येक वर्ग ने बढ़-चढ कर भाग लिया। इस कार्य में महिलाएँ भी पीछे नहीं रही। आरंभ से लेकर अंत तक उन्होंने न केवल शंतिपूर्ण आन्दोलनों में सक्रिय भाग लिया अपितु वे क्रांतिकारी गतिविधियों में भी सक्रिय रहीं। गांधी जी भी राष्ट्रीय आन्दोलन में महिलाओं की भागीदारी के पूर्ण पक्षधर थे। राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेकर महिलाओं ने न केवल ब्रिटिश शासन के विरुद्ध तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की बल्कि गिरफ्तार भी हुई। कुल मिलाकर महिलाओं के अंदर इस समय जो राष्ट्रचेतना पैदा हुई थी उसने यह सिद्ध कर दिया कि वे एक ऐसी राष्ट्रीय शक्ति है जो राष्ट्र की स्वाधीनता और अधिकारों के लिए सभी बंधनों से उन्मुक्त होकर लड़ सकती है। इस समय जिन स्त्रियों ने इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया था उनमें एक पंक्ति उनकी भी थी जो गांधी जी के अहिंसावादी नीति का अनुसरण कर रही थीं और दूसरी पंक्ति उनकी थी जिन्होंने क्रांति का मार्ग चुना था। राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में अपने आप को महिलाओं ने विविध आयामों के साथ प्रस्तुत किया है।
योगिता वशिष्ठ ने एम. कॉम., बी.एड. एवं पत्रकारिता में डिप्लोमा देश के विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से प्राप्त किया है। शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी योगिता की विभिन्न विषयों पर आधा दर्जन से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। शिक्षा, समाज, पर्यावरण और अध्यात्म से जुड़े विषयों में इनकी गहरी रुचि है। संप्रति शिक्षण एवं स्वतंत्र लेखन।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास स्वतंत्रता के लिए भारतीयों के संघर्ष की अद्भुत गाथा है। इस संघर्ष में पुरुषों और महिलाओं ने समान रूप से भाग लिया। भारतीय महिलाओं का योगदान इसमें इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि उनका सामाजिक उत्थान हुए बहुत लंबा समय व्यतीत नहीं हुआ था। घर का मोर्चा हो या राजनीति का रणक्षेत्र, महिलाओं ने जिस साहस, सहिष्णुता और वीरता से स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाई, वह इतिहास की धरोहर है। सन् 1857 का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला ऐसा विस्फोट था, जिसकी नायक एक महिला थी, जिसने अद्भुत वीरता, पराक्रम और दिलेरी का परिचय दिया। उसके लिये स्वयं अंग्रेज शासक भी प्रशंसा किये बगैर नही रह सके। सर ह्यूरोज को झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के अद्भुत पराक्रम से चकित होकर कहना पड़ा कि "सैनिक विद्रोह के नेताओं में महारानी लक्ष्मीबाई सर्वाधिक बहादुर और सर्वश्रेष्ठ थीं।" रामगढ़ की रानी ने जहाँ रणक्षेत्र में लड़ते लड़ते प्राण त्याग दिये वहीं बेगम हजरत महल अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर अपमानित होने के बजाय नेपाल की ओर चल पड़ी, जहाँ वनवास में उनकी मृत्यु हुई और जीनतमहल को बर्मा में निर्वासित कैदी के रूप में जीवन व्यतीत करना पड़ा।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की 1885 में स्थापना ने महिलाओं को एक राजनीतिक मंच प्रदान किया। इसकी स्थापना के कुछ वर्षों बाद कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशनों में भारतीय महिलायें प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने के लिए आने लगीं। सन् 1890 के कलकत्ता अधिवेशन में स्वर्ण कुमारी देवी और श्रीमती कादम्बिनी गांगुली ने भाग लिया। श्रीमती गांगुली प्रथम महिला थीं जिन्होंने राष्ट्रीय कांग्रेस के मंच से अपना पहला भाषण दिया। यह सम्भवतः भारतीय महिलाओं के राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रवेश का शुभारम्भ था और इसके बाद तो मातृभूमि की खातिर राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने वाली महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ती ही चली गयी। इन महिलाओं को उत्साहित कर एवं उन्हे संगठित कर एक लक्ष्य महात्मा गाँधी ने 1920 में असहयोग आन्दोलन चलाकर दिया। इससे महिलाओं को न केवल एक उद्देश्य मिला, अपितु उन्हें एक नयी दिशा भी मिली। जब 1930 में गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया, तो बड़ी संख्या में महिलाओं ने सत्याग्रह में भाग लेकर अपनी शक्ति का परिचय दिया। स्वदेशी प्रचार के पक्ष में वातावरण बनाने के लिये विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जाने लगी। शराब की दुकानों पर धरना देकर बंद कराई जाने लगीं।
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