आज विश्व में जो विचारधाराएँ प्रमुख रूप से चर्चा-परिचर्चा में है, उसमें से एक विचार धारा हिन्दुत्व है। यह विचार विवाद का विषय बन चुका है। भारत में प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया, साहित्यकार, विद्वान, कलाकार, धार्मिक सांस्कृतिक व राजनैतिक प्रतिनिधिगण, उन सबमें वैश्विक एवं राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दुत्व पर बहस हो रही है। जिसको प्रारम्भ में आर्यावर्त एवं आर्य कहा गया, कुछ कालक्रम के बाद भारत एवं भारतीय कहा गया, कुछ कालक्रम के बाद हिन्दुस्थान एवं हिन्दू कहा गया और अब इण्डिया एवं इण्डियन कहा गया। इसका केन्द्र बिन्दु तो यहां का समाज एवं यही धरती रही, लेकिन इसकी सीमाओं का लगातार संकुचन हुआ है। जिसको आर्यावर्त एवं आर्य कहते थे, वह हिमालय एवं समुद्र के बीच का भू-भाग है अर्थात् हिमालय (भौगोलिक दृष्टि से सिंगापुर से इराक तक माना जाता है) एवं जिसको हिन्द महासागर, अरब सागर, सिन्धुसागर कहा गया, इन दोनों के बीच की भूमि हिमालय से नीचे समुद्र तक यह आर्यावर्त कहलायी और लोगों को आर्य कहा गया। कालक्रम में अनेक परिवर्तन हुए। इसलिए आज जिसको आफगानिस्तान और म्यांमार कहते हैं, इन दोनों के बीच के हिमालय से समुद्र तक को भारतवर्ष और लोगों को भारतीय कहा गया। फिर समय ने करवट बदली, जिसको पाकिस्तान एवं अण्डमान निकोबार द्वीप समूह कहते हैं, उस हिमालय तथा समुद्र के बीच को हिन्दुस्थान एवं लोगों को हिन्दू कहा गया। समय ने फिर करवट बदली, आज राजनैतिक रूप में जो कुछ भारत है, उसको आज इण्डिया कहते हैं एवं हम इण्डियन कहलाते हैं। केन्द्र बिन्दु तो वही है, लेकिन इसके विस्तार में अनवरत परिवर्तन हुए इसलिए जो-जो भी नामकरण हैं, वह नामकरण वाला समाज हम ही हैं।
वर्तमान समय में अपने देश में 'हिन्दुत्व' अथवा सांस्कृतिक राष्ट्रीयता एवं तथाकथित धर्मनिरपेक्षता अथवा प्रादेशिक राष्ट्रवाद के विषय में ऊहापोह चल रहा है। एक ओर जहां छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यकों के मत प्राप्त करने की राजनीति से विविध दल उनके तुष्टीकरण की नीति अपनाकर हिन्दुत्व को साम्प्रदायिकता का नाम देकर अपना घृणित स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं तो दूसरी ओर धर्म, संस्कृति और परम्परा पर आधारित राष्ट्रवाद की महिमा को इस देश के विचारशील लोग समझते हुए हिन्दुत्व की चिन्तनधारा को शनैः शनैः आत्मसात करते जा रहे हैं।
हिन्दुत्व को नयी दिशा एवं धार देने के लिए सन् 1925 ई० में डॉ० हेडगेवार के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयं सेवक की नींव पड़ी। पिछले 94-95 वर्षों से संघ ने हिन्दुत्व आन्दोलन के लिए अपने को समर्पित कर दिया है। विभिन्न भारतीय समुदायों के हित साधन के लिए संघ के स्वयंसेवकों ने लगभग 50 स्वैच्छिक एवं सामुदायिक संगठनों की स्थापना की। यथा-विश्व हिन्दू परिषद (हिन्दू समुदाय के कल्याणार्थ, राष्ट्रीय सिख संगत (सिख समुदाय के कल्याणार्थ), भारतीय किसान संघ (किसान समुदाय के कल्याणार्थ) भारतीय मजदूर संघ (मजदूर समुदाय के कल्याणार्थ), वनवासी कल्याण आश्रम (वनवासी समुदाय के कल्याणार्थ), राष्ट्र सेविका समिति (महिला समुदाय के कल्याणार्थ), अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (विद्यार्थी समुदाय के कल्याणार्थ), भारत विकास परिषद (भारतीय उद्यमियों के कल्याणार्थ), अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत (उपभोक्ता समुदाय के कल्याणार्थ), अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद (न्याय से वंचित समुदाय के कल्याणार्थ), सामाजिक समरसता मंच (पिछडे एवं दलित समुदाय के कल्याणार्थ), मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (मुस्लिम समुदाय के कल्याणार्थ), एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद (साहित्य जगत के कल्याणार्थ) आदि। हिन्दुत्व विरोधी शक्तियां ईर्ष्यावश इन सामुदायिक एवं स्वैच्छिक सगठनों को साम्प्रदायिक संगठन कहती है, जो उनकी क्षुद्रदृष्टि एवं अज्ञानता का परिचायक है।
सांस्कृतिक चेतना, चरित्र निर्माण, समाज सेवा, पारस्परिक एकता एवं भाईचारे का विकास जैसे महान उद्देश्यों से संघ परिचालित होता रहा है। संघ के सदस्य स्वयं सेवक के रूप में जाने जाते हैं। एक स्वयंसेवक राष्ट्र के हितों का संवर्द्धन करने वाला राष्ट्र नागरिक है अतएव वह राष्ट्रवादी भी है. साथ ही विश्व की साझा मानवीय समस्याओं में वह दुनिया भर के अन्य राष्ट्रों एवं मनुष्यों के साथ भी है, फलस्वरूप वह विश्व नागरिक और इसी कारण अन्तर्राष्ट्रवादी और मानवतावादी भी है।
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