प्रस्तुत पुस्तक 'हिंदी भाषा संरचना वस्तुनिष्ठ दर्पण' के लिखने का उद्देश्य पुस्तक में ध्वनि-संरचना, शब्द-संरचना, रूप-रचना, वाक्य-संरचना, अर्थ-संरचना, और नागरी लिपि के लेखिमिक विश्लेषण की वस्तुनिष्ठ रूप से जुड़ी जानकारी दी गई है। इस पुस्तक में हिंदी भाषा-संरचना से जुड़ी मुख्य समस्याओं को लिया गया है और हिन्दी अनुतान का विश्लेषण किया गया है। शब्द-संरचना में समासों के अध्ययन को परंपरागत और नए तरीके से बताया गया है। रूप-रचना में संज्ञा और विशेषण के अपवादों को विस्तार से बताया गया है। वाक्य-संरचना और अर्थ-संरचना से जुड़ी कई नई बातें बताई गई हैं। नागरी लिपि के लेखिमिक विश्लेषण का यह पहला प्रयास है। इस पुस्तक में संरचना के विश्लेषण के लिए संरचनात्मक पद्धति का इस्तेमाल किया गया है। जटिल भाषा संरचना सूक्ष्म अर्थ व्यक्त करने, अमूर्त विचारों को व्यक्त करने और विस्तृत जानकारी प्रदान करने में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह अधिक भाषाई लचीलेपन की अनुमति देता है, जिसको अधिक सटीक और परिष्कृत विचारों को व्यक्त कर प्रस्तुत पुस्तक में अंकित करने का प्रयास किया है। आशा है सभी हिंदी भाषा से सम्बन्धित प्रतिभागियों के सहायक सिद्ध होगी।
'बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल-बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार' रात-दिन इसी चौपाई को जिह्वा पर टिका कर कलयुग उस परम शक्ति राम भक्त हनुमान का स्मरण कर जीवन के उतार चढ़ाव का सामना करते हुए मुझ तुच्छ बुद्धि को प्रभु ने प्रस्तुत पुस्तक 'हिंदी भाषा संरचना : वस्तुनिष्ठ दर्पण (प्रायोगिक रूप सहित) की रचना हेतु कलम देकर मेरी लेखनी की दिशा निर्धारित की। मैं प्रस्तुत पुस्तक मेरी दोनों बेटियाँ वंशिका और अक्षिता को इस श्लोक' कन्या भवेन्न भवने भवनं भवेन्नो कन्या भवेद्धि भवने भवनं भवेद्भोः' के साथ समर्पित कर रही हूँ क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से वही मेरे लेखन का कारण हैं। मैं मेरे पूज्य पिता श्री बलबीर शर्मा, माता श्रीमती निर्मला जी का भी आभार प्रकट करती हैं, जिन्होंने अपने स्नेहिल स्पर्श से मुझे नवस्फूर्ति प्रदान कर जीवन के कड़े उतार-चढाव में मेरे मनोबल को सुदृढ़ कर इस सतत कार्य के लिए प्रोत्साहित किया। मैं अपने अनुज इंजीनियर अरविंद शर्मा की भी धन्यवादी हूँ, जिसकी प्रेरणा व सहयोग से यह पुस्तक लेखन का कार्य सम्पन्न हुआ है।
इस पुस्तक की पूर्णता हेतु में समस्त मित्रजनों, सुधीजनों एवं शुभचिन्तकों की भी कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में अपना बहुमूल्य सहयोग देकर मुझे कृतार्थ किया। इस पुस्तक के प्रकाशन हेतु मैं 'संजय प्रकाशन' के प्रमुख श्री प्रवीण ढल जी की भी आभारी हूँ, जिन्होंने हिन्दी की प्रतियोगी परीक्षा के लिए शब्द भंडार को एक पुस्तक का रूप देकर हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है।
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