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हिंदी पत्रकारिता और साहित्यिक विमर्श- Hindi Journalism and Literary Discourse

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Item Code: HAF420
Author: Ramcharan Pandey 
Publisher: HANS PRAKASHAN, DELHI
Language: Hindi
Edition: 2023
ISBN: 9789389389999
Pages: 172
Cover: HARDCOVER
Other Details 9x6 inch
Weight 350 gm
Fully insured
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100% Made in India
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23 years in business
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Book Description
पुस्तक परिचय

डिजिटल क्रांति ने साहित्य के जनतांनिकीकरण की प्रकिया को तेज किया है। इसके माध्यम से साहित्य की पहुंच व्यापक जन समुदाय तक संभव हुई है। बावजूद इसके आलोचनात्मक पुस्तके अपनी सैद्धांतिक दुरुत्ता, उबाऊ शैली व एकरसता की वजह से पाठकों में साहित्यिक अभिरुचि पैदा करने में असफल साबित हुई हैं। आज जब साहित्यिक मूल्यों को हाशिए पर धकेले जाने की सुर्चितित रणनीति अपनाई जा रही है, ऐसे समय में युवा समीक्षक डॉ. रामचरण पांडेय ने वर्तमान जीवन की चुनौतियों को साहित्यिक नजरिए से देखने- परखने की ईमानदार कोशिश की है। उन्होंने पत्त्रकारिता के बदले तेवर को बड़ी बारीकी से विश्लेषित कर तल्ख टिप्पणियां की हैं। इसमें प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया तथा डिजिटलीकरण की प्रक्रिया पर विचार-विमर्श हुआ है। समसामयिक चुनौतियों जैसे पर्यावरण, लैंगिक असमानता तथा जीवन से जुडी समस्याओं पर उनका रुख अनुकरणीय है। जीवन-मूल्यों के प्रति सकारात्मक संवेदना व सजगता को समृद्ध करने में उनका प्रयास सराहनीय है। उन्हें भाषागत जिम्मेदारियों का भी गहरा एहसास है। हिंदी भाषा को रोजगार से जोड़े जाने व मातृभाषा के प्रति गौरवबोध जगाने में लेखकीय तत्परता स्पष्ट नजर आती है। पुस्तक पठनीय है और उसमें प्रयुक्त गद्य-शैली उसे पाठक से संवाद करती प्रतीत होती है। पुस्तक पढ़ने के दौरान भाषाई रवानगी व ताजगी का एहसास बराबर बना रहता है। आमजन के रोजमर्रा के जीवन में आभासी दुनिया की घुसपैठ व बाजारू चमक-दमक के प्रभाव पर गहरी टिप्पणियां हैं ये लेख। वस्तुतः यह पुस्तक पाठकों को चकाचौध वाली आभासी दुनिया के बरक्स वास्तविक दुनिया के यथार्थ से रूबरू कराती है। समकालीन समय में साहित्य की संवेदनशीलता व प्रासंगिकता को यह पुस्तक बड़ी बेबाकी से रेखांकित करती है। पुस्तक में लेखक अपने रचना-जगत के लिए जिस नई जमीन की तलाश में है दरअसल वह पाठकों की अपनी जमीन है। यह जमीन ही पुस्तक की बड़ी सफलता है। पुस्तक में विषय की विविधतता व वैचारिक विमर्शों की सघनता से लेखकीय जीवन-दृष्टि की पूर्णता का परिचय मिलता है। युवा समीक्षक डॉ. रामचरण पांडेय पत्रकारिता में गहरी रूचि एवं निष्ठा रखते हैं। यह उनकी प्रथम आलोचनात्मक कृति है जिसमें विभिन्न अवसरों पर पत्न- पत्निकाओं हेतु लिखे गए आलेखों का संकलन है। आशा है वे भविष्य में भी अपने आलोचकीय दृष्टिकोण से पत्त्रकारिता, आलोचना तथा जीवन के विभिन्न क्षेत्लों को ऐसे ही समृद्ध करते रहेंगे। अस्तु !

प्रस्तावना

वर्तमान परिदृश्य में साहित्य और समाज के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। साहित्यकारों की दुनिया संकुचित भी हुई है। एकांगी दृष्टिकोण से साहित्य की परख जारी है। सभी अपने-अपने दृष्टिकोण को एकमात्र सत्य मानकर ज्ञान बांटने में मशगूल हैं। गंभीर वैचारिक विमर्श की जगह सोशल मीडिया की त्वरित व चलताऊ टिप्पणी का बोलबाला है। टेलीविजन, मीडिया व डिजिटलीकरण की चकाचौंध में पाठक पुस्तकों से दूर होते जा रहे हैं, जबकि समाज में पुस्तकों की भूमिका हमेशा ही महत्वपूर्ण रही है। पुस्तकें समाज की संवेदना और सजीवता की गवाह हैं।

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