सिनेमा के विषय में जानने, समझने और पढ़ने की उत्सुकता हमेशा बनी रहती है। इस विषय पर जितना लिखा और पढ़ा जाये उतना कम लगता है। भारतीय सिनेमा का इतिहास काफी पुराना है। अगर इसके पन्नों को पलट कर देखें तो एक से बढ़कर एक किस्से-कहानियां निकल कर सामने आएंगी। आज सिनेमा का इतिहास बदल चुका है। यहां ना सिर्फ अलग-अलग जॉनर और भाषा की फिल्में बनती हैं। बल्कि सिर्फ अभिनेत्रियों को ध्यान में रखकर किसी फिल्म की कहानी और किरदार गढ़े जाने लगे हैं। अब महिलाएं भारतीय सिनेमा का अहम हिस्सा बन गई हैं। किंतु एक ऐसा वक्त भी था। जब सिनेमा में काम करने के नाम से ही लड़कियों को डर सताने लगता था। समाज के ताने-सुनने पड़ते थे। साइलेंट फिल्मों के दौर में जब महिला चरित्रों को निभाने के लिए कोई महिला आगे नहीं आई। तब पुरुष कलाकारों ने ही महिलाओं के किरदार निभाए। उस दौर में अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुर्गाबाई कामत ने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा। यहां एक बात ओर ध्यान देने योग्य है कि उन्होंने जिस वक्त सिनेमा क्षेत्र में कदम रखा वो शादीशुदा और एक बेटी की मां थी। हालांकि उनका दाम्पत्य जीवन बहुत अधिक लंबा नहीं चला। कुछ वर्ष साथ रहने के उपरांत ही पति-पत्नी अलग हो गए थे। दुर्गाबाई ने अकेले ही अपनी बेटी की परवरिश की। उनके अभिनय क्षेत्र में आने से दूसरी महिलाओं को अभिनय करने की प्रेरणा और हिम्मत मिलीं। इसके साथ ही महिलाओं के लिए सिनेमा व्यवसाय से जुड़ने के रास्ते खुले।
इस पुस्तक 'हिंदी सिनेमा और अभिनेत्री' को हमने कुल 12 अध्यायों में विभाजित किया है। जिसमें भारतीय सिनेमा की पहली अभिनेत्री दुर्गाबाई कामत से लेकर, पहली चाइल्ड आर्टिस्ट कमलाबाई और वर्तमान में अभिनय कर रही अभिनेत्रियों दीपिका पादुकोण, अन्नया पांडे इत्यादि सहित 250 से अधिक अभिनेत्रियों के बारे में लिखा है। पुस्तक के प्रथम अध्याय 'संघर्ष से सफलता' में मधुबाला से लेकर तापसी पन्नू तक कुल 23 अभिनेत्रियों की अभिनय यात्रा पर चर्चा की गई है। वहीं दूसरे अध्याय 'फिल्म परिवार से ताल्लुक रखने वाली अभिनेत्रियां में हमने अभिनेत्री सुल्ताना और शहजादी से लेकर जुबैदा, शोभना समर्थ, प्रनूतन, सई मांजरेकर, अलाया एफ इत्यादि 60 अभिनेत्रियों के विषय में लिखने की कोशिश की। वहीं पुस्तक के तीसरे अध्याय को हमने पांच खण्ड में विभाजित किया है। इस अध्याय में पाठकों को सिनेमा विशेषकर अभिनेत्रियों से जुड़ी रोचक, मनोरंजक एवं तथ्यपरक जानकारियां जैसे करियर में लगातार दस वर्ष तक कम से कम एक हिट फिल्म देने वाली अभिनेत्रियां, दो बहनें और एक ही नायक, दो भाईयों की नायिका बनने वाली अभिनेत्रियां तथा एक फिल्म में मां-बेटे तथा दूसरी में प्रेमी युगल बने जोड़े इत्यादि पढ़ने को मिलेंगी। पुस्तक का चौथा अध्याय फिल्मों में दोहरी भूमिका निभाने वाली अभिनेत्रियों पर है। इसमें वर्ष 1923 में प्रदर्शित फिल्म 'पत्नी प्रताप से लेकर साल 2016 में रिलीज मिर्जा को शामिल किया गया है। वर्ष 1947 से 2016 के बीच हिंदी सिनेमा के कुल 70 साल के लंबे इतिहास में सिर्फ 41 अभिनेत्रियों ने 64 फिल्मों में दोहरी भूमिका निभाई। पुस्तक का पांचवां अध्याय 'अंधी महिला के किरदार में अभिनेत्रियां है। जिसमें 29 अभिनेत्रियों की 31 फिल्में ली गई है। अभिनेत्री निरूपा रॉय और राखी गुलजार ने दो-दो फिल्मों में अंधी महिला का किरदार निभाया है। पुस्तक का छठा अध्याय पिता और पुत्र दोनों की नायिका बनने वाली अभिनेत्रियों पर आधारित है। इसमें नूतन, साधना, तनुजा, हेमा मालिनी, रेखा, जीनत अमान, रीना रॉय, डिंपल कपाड़िया, श्रीदेवी इत्यादि अभिनेत्रियों के साथ राजकपूर, धर्मेन्द्र, विनोद खन्ना, अमिताभबच्चन सरीखें अभिनेताओं पर चर्चा की गई है। पुस्तक का सातवां अध्याय खल चरित्र निभाने वाली अभिनेत्रियों पर है। इसमें 49 अभिनेत्रियों की एक लंबी सूची शामिल है। जिसमें ऐसे-ऐसे नाम हैं जिनके बारे में पाठकों को अंदाजा लगाना मुश्किल है। पुस्तक के आठवें अध्याय में मशहूर ऑनस्क्रीन जोड़ियों पर काम किया गया है। हिंदी सिनेमा की मशहूर जोड़ियों की चर्चा होने पर हमारे जेहन में आठ-दस नाम ही आते हैं। लेकिन हमने अपने इस अध्याय में हिंदी फिल्मों की ऐसी 70 ऑनस्क्रीन जोड़ियों के बारे में लिखा है। जिन्हें बॉक्स ऑफिस पर खूब सफलता मिलीं। पुस्तक के नौवें अध्याय में फिल्मों में पुलिस बनीं अभिनेत्रियों पर तथा दसवां अध्याय हिंदी सिनेमा में वेश्या का किरदार निभा चुकी अभिनेत्रियों के विषय में हैं। वहीं पुस्तक का 11 और 12 वां अध्याय क्रमशः छोटी उम्र में रूखसत हुई अभिनेत्रियां और फिल्मों में सिगरेट के धुएं का छल्ला उड़ाती अभिनेत्रियां है। इस तरह पुस्तक के 12 अध्यायों में हिंदी सिनेमा की नायिका के उद्भव और विकास के साथ अभिनय यात्रा की गतिशीलता में वर्तमान स्थिति तक चर्चा की गई है!
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