हिंदी भाषा भारतीय संस्कृति और सभ्यता की पहचान है। विश्व में अनेक भाषा परिवार हैं, जिनमे भारोपीय परिवार प्रमुख है और भारोपीय परिवार की भाषा बोलने वालों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है। भारोपीय परिवार के अंतर्गत भारत-ईरानी उपवर्ग में आर्यभाषा परिवार आता है। आर्य भाषा परिवार में संस्कृत से हिंदी तक की यात्रा का संक्षिप्त वर्णन इस पुस्तक में करने का प्रयास किया गया है। हिंदी भाषा का उद्गम संस्कृत से हुआ और क्रमशः पालि, प्राकृत, अपभ्रंश के कालखंड से गुजरकर वर्तमान स्वरुप को धारण किया है। 11 वीं शताब्दी से इसका प्रारंभ माना जाता है तथा 19 वीं शताब्दी तक यह साहित्य, शिक्षा, संचार और ज्ञान विज्ञान की प्रमुख भाषा बन गयी। हिंदी की संरचना देवनागरी लिपि में होती हैं, जो कि वैज्ञानिक है तथा ध्वन्यात्मक है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी ने एकता का प्रतीक बनकर राष्ट्रीय भावना को प्रेरित किया था। कंप्यूटर और इन्टरनेट के आने से हिंदी भाषा की ख्याति सम्पूर्ण विश्व में फैल गयी है। हिंदी वर्तमान समय में शिक्षा, व्यापर, विज्ञान के क्षेत्र की प्रमुख भाषा बन चुकी है। विश्व के अनेक विश्वविद्यालय हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए पाठ्यक्रम चला रहे है, जो हिंदी की वैश्विक महत्ता का एक सूचक है। 'हिंदी भाषा स्वरुप, संरचना एवं इतिहास' पाठ्यक्रम के माध् यम से विद्यार्थी हिंदी भाषा के उद्भव और विकास से परिचित हो पाएंगे, हिंदी की विभिन्न बोलियों के बारे में जान पाएंगे तथा हिंदी की भाषिक संरचना से परिचित हो पाएंगे। विद्यार्थी हिंदी भाषा के ऐतिहासिक क्रम से परिचित हो पाएंगे तथा हिंदी भाषा की व्याकरणिक संरचना का संक्षिप्त परिचय प्राप्त कर पाएंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय की पाठ्यवस्तु निर्माण समिति के प्रति हम कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जिनके अथक प्रयासों से यह अत्यंत महत्त्व का पाठ्यक्रम तय किया गया जो भाषा की वर्तमान माँग को पूर्ण करने में मील का पत्थर सिद्ध होगा। हम डा. आर के गुप्ता, प्रधानाचार्य, पी. जी. डी. ए. वी. कॉलेज (सांध्य) महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं प्रो. मीना शर्मा, प्रो. हरीश अरोड़ा, प्रो. आशा रानी एवं डॉ. राजकुमारी पाण्डेय, हिंदी विभाग, पी. जी. डी. ए. वी. कॉलेज (सांध्य) महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने हमें यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा दी एवं समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन किया। गुरुदेव प्रो. शत्रुघ्न कुमार एवं प्रो. बीना शर्मा तथा माता-पिता के प्रति सदैव ऋणी रहेंगे जिनका शुभाशीष हमें निरंतर ऊर्जा प्रदान करता है।
हालांकि इस पुस्तक को लिखने में विषय बिंदुओं पर गंभीरता से विचार विश्लेषण किया गया है फिर भी त्रुटि की संभावना है। पाठकों, समीक्षकों से आग्रह है कि वे अपनी प्रतिक्रिया एवं सुझाव दें जिससे अगले संस्करण में उन्हें जोड़ा जा सके।
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