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नगाधिराज हिमालय - Himalaya The King of Mountains

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Specifications
NZA853
Publisher: Uttar Pradesh Hindi Sansthan, Lucknow
Author: श्रीमती शारदा त्रिवेदी (Mrs. Sharda Trivedi)
Language: Hindi
Edition: 2003
Pages: 131(6 B/W illustrations)
Cover: Paperback
8.5 inch X 5.5 inch
200 gm
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Book Description
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प्रकाशकीय

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान समय-समय पर अपनी विविध प्रकाशन योजनाओं के माध्यम से साहित्य, विज्ञान, तकनीकी और मानविकी के अन्यान्य विषयों यथा दर्शन, राजनीति. इतिहास, कला, संगीत, मानवशास्त्र, धर्मशास्त्र, संस्कृति, पत्रकारिता अर्थशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, समाजशास्त्र आदि विषयों की अनेक गौरवशाली एवं महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन करता रहा है।

इसी श्रृंखला में उत्कृष्ट प्रकाशन योजना के अन्तर्गत नगाधिराज हिमालय' पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है। पुस्तक की विदुषी लेखिका श्रीमती शारदा त्रिवेदी ने अत्यन्त रोचक शैली में हिमालय के दर्शन करवाये हैं । भारतवर्ष की उत्तरी सीमा का निर्धारक, प्रहरी और अनन्य प्राकृति सुषमा का प्रतीक हिमाच्छादित हिमालय की पर्वत शृंखला पर्यटकों को अनायास ही अपनी ओर आकृष्ट करती है। पर्यटक की दृष्टि से लेखिका ने हिमालय की सुषमा को रेखांकित करने का प्रयास किया है। बीस अध्यायों में विभक्त इस पुस्तक में भारत की रक्षक पर्वतमालाएँ, नगाधिराज हिमालय का भौगोलिक तथा आर्थिक महत्त्व, उत्तर और दक्षिण भारत की पर्वतमालाएँ तथा उनकी ऐतिहासिक गरिमा, ऋषियों का आश्रम हरिद्वार. ऋषियों की तपोभूमि ऋषीकेश, मन्दाकिनी घाटी, शिव की क्रीड़ास्थली गुप्तकाशी, देवभूमि केदारनाथ, केदारनाथ से अलकनंदा घाटी की ओर, अलकनंदा घाटी का वैभव तथा बद्रीनाथ का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। लेखिका ने भगीरथ की तप:स्थली गंगोत्री, हरसिल गोमुख, कालिन्दी घाटी का तीर्थ यमुनोत्री, पुष्पों का संसार फूलों की घाटी आदि की भी विवेचना की है।

पुस्तक की विदुषी लेखिका श्रीमती शारदा त्रिवेदी ने नगाधिराज हिमालय पर निवास करने वालों का भी वर्णन किया है। उन्होंने जनजीवन के सुधार के लिए कुछ सुझाव दिये हैं, उन्होंने हिमालय की यात्रा से लाभ की चर्चा की है। साथ ही उत्तराखण्ड की चार धाम यात्रा की भी संक्षेप में विवेचना की है।

आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि रोचक शैली में लिखी गयी इस पुस्तक का स्वागत हिन्दी जगत में होगा । इसी शुभाशा के साथ नगाधिराज हिमालय' पुस्तक सुधी समीक्षकों के सम्मुख प्रस्तुत है। आपके सुझाव हमारे पाथेय होंगे।

दो शब्द

भारतीय सस्कृति में महान उदात्त और विशाल की जो परिकल्पना है उसका जीवन्त प्रतीक हिमालय है। हिमालय योगियों और सन्तों की तपो भूमि है, पुण्य सलिल। गंगा और यमुना का उदगम स्थल है। यह भारतीय धर्म. दर्शन और साहित्य के केन्द्र बिन्दु के रूप में भी रूपायित है। सभी दृष्टियों से हिमालय को भारत का पर्याय कहा जा सकता है।

हिमालय की अपूर्व सुषमा के कारण ही हिमालय का आकर्षण आज भी अक्षुण्य है। उसकी पुकार आज भी मानव-मन को उद्वेलित कर देती है। भूस्तर शास्त्र, प्राणिशास्त्र आध्यात्मिक ऐतिहासिक भव्यता और रोमांचकारी दृष्टि से नगाधिराज हिमालय पृथ्वी का मानदण्ड है । यह इतना विशाल है कि इसमें ससार के सभी दुख समा सकते हैं। इतना शीतल है कि सब प्रकार की चिन्तारूपी अग्नि को शान्त करने की सामर्थ्य भी इसमें है। इतना धनवान है कि कुबेर को भी आश्रय दे सकता है और इतना ऊँचा है कि मोक्ष की भी सीढ़ी बन सकता है।

हिमालय के आकर्षण में आध्यात्मिकता और सौन्दर्य का अदभुत सम्मिश्रण हुआ है। आदिकाल से आर्य ऋषियों ने सर्वप्रथम यहीं पर देवदारू की छाया में कलकल ध्वनि के मध्य सरिताओं के तट पर अज्ञात शक्ति का आहवान किया था । साधु सन्यासी. गृहस्थ. पीडित- प्रताडित. प्राकृतिक सुषमा के उपासक कवि. कलाकार वैज्ञानिक और खोज। सभी समान भाव से इस रम्यस्थली में ज्ञान और आनन्द की खोज में आते रहै हैं । इसमें मुक्ति के पिपासु भी थे. सौन्दर्य के लोलुप भी. सत्य की खोज करने वाले वैज्ञानिक थे तो योग साधना के द्वारा ब्रह्म की उपासना करने वाले तपस्वी भी। अस्तु हिमालय की चुम्बकीय शक्ति सभी को अनायास ही अपनी ओर खींचती है।

उत्तर प्रदेश हिन्दी सस्थान की उत्कृष्ट प्रकाशन योजना के अन्तर्गत प्रकाशित हो रही पुस्तक नगाधिराज हिमालय की विदुषी लेखिका श्रीमती शारदा त्रिवेदी ने हिमालय के सौन्दर्य को विभिन्न आयामों में विभक्त करते हुए एक पर्यटक की दृष्टि से रेखांकित करने का प्रयास किया है । आशा है इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक का स्वागत होगा । मैं पुस्तक की लेखिका श्रीमती शारदा त्रिवेदी एव उत्तर प्रदेश हिन्दी सस्थान को इस पुस्तक के प्रकाशन पर बधाई देता हूँ और मेरा विश्वास है कि यह पुस्तक अपनी उपादेयता सिय करेगी।

 

अनुक्रमणिका

1

भारत की रक्षक पर्वतमालाएँ

1-5

2

नगाधिराज हिमालय का भौगोलिक तथा आर्थिक महत्त्व

6-16

3

उत्तर और दक्षिण भारत की पर्वतमालाएँ तथा उनकी ऐतिहासिक गरिमा

17-24

4

ऋषियों का आश्रम हरिद्वार

25-30

5

ऋषियों की तपोभूमि ऋषीकेश

31-35

6

मन्दाकिनी घाटी की ओर

36-40

7

शिव की क्रीड़ास्थली गुप्तकाशी

41-46

8

देवभूमि केदारनाथ

47-51

9

केदारनाथ से अलकनंदा घाटी की ओर

52-60

10

अलकनंदा घाटी का वैभव बद्रीनाथ

61-68

11

भगीरथ की तपस्थली गंगोत्री की ओर

69-77

12

देवदारु वनों के साये में हरसिल

78-86

13

भगीरथ की तपस्थली गंगोत्री

87-93

14

हिमशिखरों के देश में गोमुख

94-99

15

कालिन्दी घाटी का तीर्थ यमुनोत्री

100-109

16

पुष्पों का ससार फूलों की घाटी

110-116

17

जन-जीवन

117-120

18

कुछ सुझाव

121-124

19

हिमालय की यात्रा से लाभ

125-128

20

उत्तराखंड की चार धाम यात्रा

129-131

</body> </html> **Contents and Sample Pages**










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