भूमिका
करतल में भिन्न-भिन्न अनेक रेखायें चिन्ह आदि हैं. उनसे मनुष्य के जीवन के फक का अनेक सामुद्रिक एवं हस्तरेखाओं की पुस्तकों में वर्णन है । परन्तु नवीन विद्यार्थी को तब भी स्पष्ट रूप से समझने में शंकाएं उत्पन्न हो जाती हैं । इस विचार से श्री एन० पी० ठाकुर ने सचित्र हस्तरेखा, सामुद्रिक शिक्षा पुस्तक लिखी है । प्रत्येक रेखा आदि को समझाने के उद्देश्य से पृथक्-पृथक् चित्र पुस्तक में दिये हैं । इस पुस्तक की विशेषता इससे प्रगट होगी कि इसमें ५१२ के लगभग चित्र दिये हैं जिनके दारा प्रत्येक रेखा चिन्ह आदि को चित्र दे देकर समझाया गया है इनके अतिरिक्त अंगुलियों सिर आदि की बनावट आदि का भी पृथक्-पृथक् चित्र देकर समझाया है । थी ठाकुर का प्रयत्न सराहनीय है ।
मुझे प्रगट है कि जीवन भर उन्होंने जिन-जिन मनुष्यों का हाथ देखकर फल बतलाया है वे उनकी सत्यता से प्रभावित होकर श्री ठाकुर की सराहना करते रहे । उन्होने अपने अनुभवके आधार पर यह. पुस्तक लिखी है ।
प्रत्येक मनुष्य की करतल की रेखाओं में भिन्नता मिलेगी । मनुष्य की अंगुलियों के बारे में शंख, चक्र, गदा, या पद्य आदि के भिन्न-भिन्न प्रकार से निशान रहते हैं । परन्तु संसार के प्रत्येक मनुष्य की छाप में भिन्नता रहती है । इसी आघार पर फिंगर प्रिंट ब्यूरो में प्रत्येक अपराधी की अंगुलियों के छाप का रिकार्ड रहता है । यदि कोई मनुष्य गूंगा बनकर अपना कुछ भी परिचय न देवे । यदि उसकी अंगुलियों के छाप लेकर ब्यूरो को भेज दिया जाय तब वहाँ से उत्तर आता है, इसका नाम पिता का नाम, ठिकाना आदि अमुक हैं और वह अमुक अदालत से अमुक तारीख को इतनी सजा पाया है ।
आज कल हस्त रेखाओं द्वारा स्पष्ट भविष्य ज्ञान प्राप्त होने का कई विज्ञानवेत्ताओं ने समर्थन किया है । यहाँ तक कि हस्तरेखा और ग्रहों के पर्वत आदि से विचार कर निश्चय पूर्वक कई प्रकार के रोगों का निदान प्राप्त करते हैं । ब्रिटेन के बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टर बी. एम. लौरेस तो इन्हीं परीक्षणों में लगे हैं । वे शिशुओं की हथेलियों की रेखाएं देखकर रोग का पता लगा लेते हैं ।
इस कारण यह विद्या अध्ययन के योग्य है । इसके द्वारा अपना ज्ञान एवं अनुभव प्राप्त कर मनुष्य जीवन के क्त कथन की योग्यता प्राप्त कर सकता है ।
संक्षिप्त इतिहास
संस्कृत के प्राचीन ग्रन्थ बृहत्संहिता अध्याय ६८ में सामुद्रिक शास्त्र का वर्णन है । पश्चात् बराहमिहिर आदि कुछ विद्वानों ने हजारों वर्ष पहिले इस विषय पर ग्रन्थ लिखे थे । भारत में जब यूनानी, चीनी और मिस्र देश के लोग आये तो इस विद्या को ग्रहण कर प्रचार किया । तत्पश्चात् यूरोपीय पश्चिमो विद्वानों ने इस विषय में विस्तृत अनुसंधान किये । अपने देशानुकूल कीरो, एताक्सागरेरस, अरस्तू ( यूनानी दार्शनिक) ने अन्वेषण कर ग्रंथ लिखे । अपने देश की परिस्थिति अनुसार आकृति, गुण, रुचि,स्वभाव, रंग आदि की भिन्नता के आधारित सिद्धान्त हैं । अतएव यह स्वाभाविक है कि देशकालानुसार कुछ भिन्नता होवे ।
भारत में विदेशियों के आक्रमण के पश्चात् इस विषय में कोई प्रगति नहीं हुई । यूरोप में कालान्तर में डीलाय ब्रेवे ने सन् १९५३ में तथा फ्रेंच, जर्मन, इटालियन ने भी इस विषय पर ग्रन्थ लिखे । पश्चात् अमेरिकन केरो और जैमिनी ने अंग्रेजी में ग्रन्थ लिखे जो आजकल प्रचलित हैं । भारत में उसी के आधार पर अधिकांश भारतीय हिन्दी, मराठी, बंगाली आदि भाषाओं में प्रचलित हैं ।
हस्तरेखाओं की प्रधानता पर पाश्चात्य विद्वान् डब्छू. जी. बेनहम का कथन है कि. गर्भ में जीव कार्यशील नहीं रहता जैसे ही गर्भ के बाहर निकलता है उसी क्षण से रक्त संचालन से शरीर पर प्रभाव पड़ता है और सबसे पहिले हाथों पर पड़ता है जिससे शिशु की बन्द मुट्ठियाँ खुल जाती हैं और उस समय मस्तिष्क से जीवन शक्ति का प्रभाव हथेली पर पड़ता है उसके अनुसार हस्तरेखाएँ बनती हैं जिनका विकाश कालान्तर में होता है ।
आधुनिक काल में रूसी सोवियत विद्वान् जार्जलेकाब्होस्काय, बायालाजिस्ट( प्राणी शास्त्री) ने वैज्ञानिक आधार बताया है कि पृथ्वी से सम्बन्धित ग्रहों की किरणों का प्रभाव पृथ्वी के मानव तथा जीवों पर पड़ता है । प्रारम्भ में गर्भाधान समय सीधे पिंड पर पड़ता है तदनुसार जीवधारी का जविन विकसित होता है ।
सूर्य, चन्द्र, मंगल. बुध, गुरु, शुक्र तथा शनि ग्रहों का प्रभाव विशेषकर हस्त पर दीखता है तदनुसार ग्रहों के शुभाशुभ फल प्रदर्शित होते हैं ऐसा विद्वानों का कथन सार्थक दृष्टिगोचर होता है ।
आजकल अमेरिका में कहीं-कहीं विश्वसनीय प्रमुख अधिकारियों की श्रेणी में, सामुद्रिक हस्त रेखाओं द्वारा परीक्षा कर भर्ती किये जाते हैं । ऐसा ज्ञात हुआ है ।
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