ध्यान से ज्यादा बहुमूल्य भी कोई चीज नहीं है। और आश्चर्य की बात यह है कि यह जो ध्यान, प्रार्थना-या हम कोई और नाम दें- यह इतनी कठिन बात नहीं है, जितना लोग सोचते हैं। कठिनाई अपरिचय की, कठिनाई न जानने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।
"ध्यान मन से मुक्ति है। ध्यान अर्थात अमन। मन संसार में वाहन है। अमन, सत्य में। संसार का वाहन सत्य के आयाम में साधक तो है ही नहीं, बाधक भी है।
जैसे स्वप्न में जागना संभव नहीं है। क्योंकि जब तक स्वप्न है, तब तक जागरण नहीं है। और जब जागरण है, तब स्वप्न नहीं है। स्वप्न के अस्तित्व की मूलभूत शर्त ही निद्रा है। ऐसी ही स्थिति मन और सत्य की है। जब तक मन है, तब तक सत्य नहीं है। और जब सत्य है, तब मन खोजे से भी नहीं मिलता है। सत्य को आने देना है, तो मन को जाने दें। उसके रिक्त स्थान में ही सत्य का सिंहासन निर्मित होता है।"
यह पुस्तक सबके लिए पठनीय और मननीय है, विशेष कर साधकों के लिए यह एक आत्मसात करने वाली पस्तक है।
आशो की जीवन रूपान्तरकारी पुस्तकें आत्मअन्वेषण की मार्गदर्शीका तो है ही, एक लाईब्रेरी की शोभा भी है। ओशो तपोवन द्वारा अब तक 196 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 196 पुस्तकों में 94 पुस्तकें अंग्रेजी में और 102 पुस्तकें हिन्दी में है। इन 196 पुस्तकों के सेट में स्वामी आनन्द अरुण की बहुप्रतिक्षित पुस्तक Lone Seeker Many Master, In Wonder With Osho, Mystics and Miracles, पंचशील, संतो के संग और संत और उनका रहस्यलोक भी सम्मिलित है।
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