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हैंडबुक ऑफ एक्यूप्रेशर: Handbook of Acupressure

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Item Code: HBD524
Author: A. K. Saxena, Preeti Pai
Publisher: Prabhat Prakashan, Delhi
Language: Hindi
Edition: 2021
ISBN: 9789390315970
Pages: 255 (B/W Illustrations)
Cover: PAPERBACK
Other Details 8.5x5.5 inch
Weight 290 gm
Fully insured
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100% Made in India
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23 years in business
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Book Description
भूमिका

इस विषय पर हमारी तीसरी किताब '101 सवाल और जवाब एक्यूप्रेशर एंड इस फ्लेक्सोलॉजी' साल 2012 में अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थी। मेरी जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ने के लिए सवाल-जवाब की शैली में एक किताब लिखने की बहुत इच्छा यी और यह किताब उसी इच्छा का परिणाम थी। मेरे पाठक और छात्र भी काफी लंबे समय से ऐसी शैली में किताब लाने की माँग कर रहे थे, जिसमें प्रैक्टिसनर द्वारा इस्तेमाल किए जानेवाले खास बिंदुओं को शामिल किया जाए। इस माँग में चिकित्सा विज्ञान की दूसरी शाखाओं के छात्र और मित्र भी शामिल थे, खासतौर से कुछ फिजियोथेरेपिस्ट, जो फिजियोथेरैपी के साथ-साथ एक्यूप्रेशर का भी इस्तेमाल करते थे। इन सभी की इच्छा थी कि मैं केस स्टडी के रूप में अपने अनुभव इन लोगों के साथ साझा करूँ, ताकि 'एक्यूप्रेशर आर्ट एंड साइंस' को भविष्य में अपनानेवाले छात्र भी इस किताब का एक गाइड के रूप में इस्तेमाल कर सकें।

वर्ष 2014 में इस किताब का हिंदी में अनुवादित संस्करण भी प्रकाशक ने प्रकाशित किया, लेकिन केस स्टडी को शामिल करते हुए फिर से एक किताब लाने की माँग नए सिरे से उठ खड़ी हुई।

उसी माँग को ध्यान में रखते हुए यह मौजूदा किताब 'हैंडबुक ऑफ एक्यूप्रेशर' सामने आई। अपने अनुभवों को साझा करने के लिए विभिन्न मामलों की विस्तृत जानकारी को इसमें शामिल किया गया है। इसमें किन बिंदुओं पर दबाव देना है, कितने समय तक दबाव देना है, कितनी बार दबाव देना है, कितनी सीटिंग की जरूरत है, आदि विषयों को विस्तार से बताया गया है। इसके साथ ही इसमें आहार व्यवस्था/सुझाव, योग टिप्स, (आसन/प्राणायाम) आदि को भी जरूरत के अनुसार शामिल किया गया है, ताकि मरीज को तेजी से और दीर्घकालिक आराम मिले।

प्रस्तावना

छले कुछ समय में इलाज की अनेक पद्धतियाँ सामने आई हैं, जैसे-एक्यूप्रेशर/ पिछले रिफ्लेक्सोलॉजी, जोन धेरैपी, शियात्सू धेरैपी, कलर धेरैपी, मैग्नेट धेरैपी, हाइड्रो धेरैपी आदि। इनमें से एक्यूप्रेशर अपने प्रभाव, सहजता और अपनाने में आसानी के कारण स्वयं की देखभाल की प्रभावी पद्धति साबित हुई है और सभी पद्धतियों में इसका स्थान शीर्ष पर है। इस पद्धति में कोई दवा नहीं दी जाती, कोई चीर-फाड़ नहीं होती और यह न केवल उपचारात्मक है, बल्कि यह रोग को शरीर में घुसने से पहले ही उसे रोकने का भी काम करती है। इस पद्धति का निकास एक्यूपंक्चर से हुआ है, जो स्वयं करीव पाँच हजार साल पुरानी पद्धति है। एक्यूप्रेशर और एक्यूपंक्चर, दोनों ही रिफ्लेक्सोलॉजी पर आधारित हैं और सही बात तो यह है कि एक्यूप्रेशर एक तरह से एक्यूपंक्चर का ही संशोधित रूप है और यह अपनाने में भी इतनी आसान है कि घर पर ही इसकी प्रैक्टिस की जा सकती है। यही कारण है कि इसका घरेलू उपचार के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। इसमें न दवा चाहिए, न कोई चीर-फाड़ करनी पड़ती है। जरूरत होती है तो केवल इस बात की कि शरीर की उपचार शक्ति को इस्तेमाल करना आना चाहिए। शरीर की उपचार शक्ति इतनी ताकतवर है कि यह शरीर के मध्य में रसायनों के ऊर्जा स्तर के असंतुलन को स्वयं पर संतुलित कर देती है। हमारे शरीर के विभिन्न दबाव बिंदु होते हैं, जो विभिन्न अंगों से जुड़े होते हैं। ये बिंदु पैर के तलवों और हाथों की हथेलियों में होते हैं। कोई भी बीमारी, शरीर के कुछ सँकरे मार्गों पर पैदा होनेवाले असंतुलन का नतीजा होती है। यह असंतुलन शरीर में महत्त्वपूर्ण रसायनों और बलों के सुचारु प्रवाह को बाधित करता है। एक बार इन सँकरे अवरोधों को दूर कर दिया जाए तो सामान्य सेहत को फिर से बहाल किया जा सकता है।

रिफ्लेक्सोलॉजी, यानी शरीर के महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर दबाव एक बेहद आकर्षक विज्ञान है, जिसने वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में अपनी एक विशेष जगह बनाई है। यह पूरी तरह शारीरिक और तंत्रिका संबंधी वैज्ञानिक तत्त्वों पर आधारित है और अगर इसकी प्रैक्टिस करनेवाला अनुभवी व्यक्ति हो तो इसके गुणों में और इजाफा हो जाता है। एक्यूप्रेशर एक तकनीक है, जिसमें पैर के कुछ खास दबाव बिंदुओं पर दबाव डाला जाता है और ये ही बिंदु शरीर के सभी अंगों, ग्रंथियों और महत्त्वपूर्ण अंगों से जुड़े होते हैं। यही परिणाम हथेली या कान के बिंदुओं पर दबाव डालकर भी हासिल किए जा सकते हैं।

लेकिन पैर पर इसे करना आसान होता है, क्योंकि पैर में दवाव बिंदुओं का पता लगाना आसान होता है। इसकी वजह यह है कि पैर का आकार बड़ा होता है।

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आधुनिक दवाओं ने स्वास्थ्य देखरेख की स्थिति में सुधार में बहुत बड़ा योगदान दिया है। उदाहरण के लिए, किसी पेचीदा सर्जरी को आधुनिक विज्ञान के जरिये ही किया जा सकता है, लेकिन समय की जरूरत है कि आधुनिक और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के तालमेल से मरीजों का बेहतर इलाज करने में मदद मिल सकती है। सबसे श्रेष्ठ तरीका तो यही होगा कि दोनों एक-दूसरे की पूरक भूमिका अदा करें और जनमानस के कल्याण के लिए मिलकर काम करें।

उपरोक्त पंक्तियों में, मैं लेखकों की अवधारणा और उनकी दूरदृष्टि से बहुत प्रभावित हुआ हूँ। उन्होंने इस बात को समझाने की कोशिश की है और एक कदम आगे बढ़कर उन्होंने 'वैकल्पिक दवा' की जगह पर 'सह-प्रबंधन' जैसा शब्द दिया है। 'सह-प्रबंधन' शब्द विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के मेल और उनके आपसी सहयोग को दरशाता है।

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