लेखक परिचय
८ सितम्बर, १८८७ को संत अप्पय्य दीक्षितार तथा अन्य अनेक ख्याति-परम विद्वानों के सुप्रसिध्द परिवार में जन्म लेने वाले श्री स्वामी शिवानन्द जी में वेदान्त के अध्ययन एवं अभ्यास के लिए समर्पति जीवन जीने की तो स्वाभाविक एवं जन्मजात प्रवृत्ति थी ही, इसके साथ-साथ सबकी सेवा करने की उत्कंठा तथा समस्त मानव-जाती से एकत्व की भावना उनमें सहजात ही थी !
सेवा के प्रति तीव्र रूचि ने उन्हें चिकित्सा के क्षेत्र की और उन्मुख कर दिया और जहाँ उनकी सेवा की सर्वाधिक आवश्यकता है, अत; सही जानकारी देना उनका लक्ष्य ही अं गया!
यह एक दैवी विधान एवं मानव - जाती पर भगवान, की कृपा ही थी की देह - मन के इस चिकित्सक ने अपनी जीविका का त्याग करके, मानव की आत्मा के उपचारक होने के लिए त्यागमय जीवन को अपना लिया! १९२४ में वह ऋषिकेश में बस गए, यहाँ कठोर तपस्या क और एक महान योगी, संत मनीषी एवं जीवन्मुक्त महंतमा के रूप में उद्भासित हुए !
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