विश्व विख्यात पौध प्रजनक के रूप में मशहूर डॉ. पाल का मूल कार्यक्षेत्र फसल सुधार पर आधारित रहा था, विशेषकर गेहूं की रस्टरोधी किस्मों के विकास पर। भारत ही नहीं विदेशों में भी उन्हें तमाम पुरस्कार एवं सम्मान प्रदान किए गए तथा वे कई विशिष्ट सोसायटियों के सदस्य भी रहे। इसके अतिरिक्त 1970 में डॉ. पाल रॉयल सोसायटी के फैलो के रूप में निर्वाचित हुए और 1989 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया।
बर्मा में विताये गए बचपन के दिनों में भी गुलाब के प्रति उनका आकर्षण जुनून की हद तक था। कई आकर्षक एवं दिलचस्प गुलाब की किस्मों को विकसित करने का श्रेय उन्हें जाता है, जिनमें प्रमुख हैं: डॉ. होमी भाभा, बंजारन, देहली प्रिंसेज, अप्सरा, दिलरुबा, पहाड़ी धुन, सरोज, महक, होमेज। गुलाव प्रदर्शनियों में डॉ. पाल ने कई ट्रॉफियां जीतीं, जिनमें गुलाब की नई पौध विकसित करने पर प्रदान की जानी वाली आई सी आई चैलेंज ट्रॉफी भी है। यह ट्रॉफी इन्होंने 10 बार जीती। 1988 में उन्हें इंडियन रोज फैडरेशन की ओर से विजय पोकरन स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।
अगर गुलाब न होते तो दुनिया की हालत कितनी बदतर होती! गुलाब को बहुत पुराने समय से ही चाहा और सराहा जाता रहा है। आज के युग में इसकी महत्ता और भी बढ़ गई है, क्योंकि वैज्ञानिक नये-नये लुभावने रंगों के गुलाब विकसित कर रहे हैं। केवल रंग ही नहीं, वरन् रोगों से बचे रहने की क्षमता और अधिक समय तक खिले रहने जैसे गुण भी गुलाब में डाले जा रहे हैं। आज लगभग हर उद्देश्य के लिए और हर किसी के लिए चुनिंदा गुलाब की किस्में विकसित की जा चुकी हैं। आपके पास छोटी सी बगिया हो, तो आपको भी ऐसी कई किस्में मिल जाएंगी जो बाग को रंगा-रंग कर, अनोखे फूलों से भर दें।
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