'उत्क्रमित भारत के मनस्वी चिंतक' पुस्तक हमारे महापुरुषों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित है। इन महापुरुषों ने न केवल स्वतंत्र भारत की चुनौतियों के समाधान में सशक्त भूमिका निभायी है बल्कि वैश्विक परिदृश्य पर भारतीय समाज और देश का गौरव बढ़ाया है। विभिन्न विद्वान लेखकों ने अलग-अलग महान व्यक्तित्व पर तथ्यपरक एवं विश्लेषणात्मक विधि से लेख तैयार किया है, जो शिक्षार्थी, शोधार्थी, शिक्षक, आचार्य एवं चिंतक सहित समस्त पाठकों के लिए अत्यधिक उपादेय है।
डॉ० जय प्रकाश पटेल का जन्म 16 सितम्बर 1980 ई० को प्रयागराज के आलानगरी गाँव में एक कृषक परिवार में हुआ। आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय सहित अन्य केन्द्रीय, राज्यीय एवं मुक्त विश्वविद्यालयों से एम० ए० (हिन्दी, संस्कृत, दर्शन शास्त्र, इतिहास, शिक्षाशास्त्र) एम० एड्०, एम०जे०, एम० एस० डब्ल्यू०, पीएच० डी० (शिक्षा) और यू०जी०सी० (नेट) की परीक्षा शिक्षाशास्त्र एवं हिन्दी विषय से उत्तीर्ण की है। डॉ० पटेल की अब तक तीन पुस्तक 'शिक्षा संस्थाओं में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्य "सुरंग में सुबह और सत्ता विमर्श' और 'अकाल सन्ध्या में ग्रामीण संस्कृति' प्रकाशित हुयी है और आपके द्वारा 13 पुस्तकों का सम्पादन किया गया है। आप विभिन्न शोध पत्रिकाओं में सम्पादक मण्डल के सदस्य हैं। इसके अतिरिक्त 120 शोध पत्र विभिन्न शोध पत्रिका एवं पुस्तक में प्रकाशित और 77 शोधपत्र विभिन्न संगोष्ठियों में प्रस्तुत किया गया है। डॉ० पटेल को न सिर्फ शान्ति, न्याय एवं मानवता के लिए पीएच०डी० और उत्कृष्ट शैक्षिक कार्य के लिए डी० लिट्० की मानद उपाधि प्राप्त है बल्कि विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा शैक्षिक एवं सामाजिक गतिविधियों के लिए 30 से अधिक बार पुरस्कृत किया गया है।
15 अगस्त 1947 को हमारा देश भारत आजाद हुआ। इसी स्वतंत्रता के साथ अनेक चुनौतियां भी आयीं। एक ओर आर्थिक समस्या थी तो दूसरी ओर देशी रियासतों के मुखिया अपने को स्वतंत्र राजा घोषित कर रहे थे। दूसरे शब्दों में एक ओर आजादी के साथ हमारे देश को अनिच्छित उपहार में कर्ज भी प्राप्त हुआ तो दूसरी ओर देशी रियासत के राजा अपने-अपने क्षेत्र में राजतंत्र स्थापित करने में संलग्न थे। यही नहीं, एक ओर पाकिस्तान कश्मीर पर धावा बोल दिया था तो दूसरी ओर शरणार्थियों की समस्या गम्भीर थी। माना कि इन समस्याओं पर महात्मा गांधी, सरदार पटेल एवं पंडित नेहरू आदि महापुरुषों के प्रयास से समाधान किया गया किन्तु विदेशी उपनिवेशों के विलिनीकरण और संविधान निर्माण के साथ स्वराज को सुरक्षित रखने की गम्भीर चुनौती थी। इसी क्रम में संविधान सम्मत सभी व्यक्तियों को सम्मान सहित जीवन जीना एक अनिवार्य पक्ष था। हमारे देश में एक ओर जाति, धर्म, भाषा आदि के आधार पर संकीर्णता थी तो दूसरी ओर गरीबी एवं अशिक्षा बड़ी चुनौतियां थी। स्वतंत्र भारत में न सिर्फ सामाजिक न्याय का मुद्दा सदैव से गहरा रहा है बल्कि स्त्रियों की स्थिति में आज भी सुधार की जरूरत है। आज भी हमारे देश के समस्त नागरिकों तक उसकी पात्रता के अनुसार सरकारी योजना नहीं पहुँच पाती है। हम मानव विकास सूचकांक में काफी पीछे चल रहे हैं। यही नहीं, करोड़ों नागरिक सरकारी गल्ले की दुकान से प्राप्त निःशुल्क खाद्यान्न से अपना पेट भर रहे हैं। माना कि कुछ व्यक्ति महानगर एवं स्मार्ट सिटी की बात करते हैं किन्तु झुग्गी-झोपड़ियों की संख्या में कमी नहीं आ रही है। दूसरे शब्दों में असमानता, भेदभाव, जातीय संकीर्णता आदि कुप्रवृत्तियां हमारे स्वतंत्र होने पर प्रश्नचिन्ह उपस्थित कर रही हैं।
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