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भगवान् सदा तुम्हारे साथ हैं: The God is Always With You

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Item Code: GPA196
Author: Hanuman Prasad Poddar
Publisher: Gita Press, Gorakhpur
Language: Hindi
ISBN: 8129307545
Pages: 134
Cover: Paperback
Other Details 8 inch x 5.5 inch
Weight 120 gm
Fully insured
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100% Made in India
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23 years in business
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Book Description

आठवें संस्करणके विषयमें निवेदन

'' कल्याण-कुञ्ज भाग- 3''का आठवाँ संस्करण पाठकोंकी सेवामें प्रस्तुत करते हमें प्रसन्नता हो रही है । ' 'कल्याण' 'कामी महानुभावोंने इस पुस्तिकाका जो आदर किया है, वह अभिनन्दनीय है । इस पुस्तिकाके रूपमें किन महानुभावके पूत हृदयके उदात्त विचार हैं, यह जाननेकी अभिलाषा पाठकोंके मनमें वषोंसे रही है । अनेकों पाठकोंने व्यक्तिगत रूपसे पत्र लिखकर हमसे यह पूछा है और हमने उन्हें इसका स्पष्टीकरण भी किया है, परंतु खुले रूपमें यह बात कभी प्रकट नहीं की गयी कि ये विचार हमारे परम श्रद्धास्पद भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके पावन हृदयके उद्रार हैं, जो उन्होंने ''कल्याण'' मासिक पत्रमें प्रतिमास ''कल्याण'' शीर्षकसे प्रकाशित किये थे । पीछे उन्हीं विचारोंको संगृहीत करके पुस्तकरूप दे दिया गया ।

''कल्याण'' शीर्षकसे ' 'कल्याण' 'में प्रकाशित इन विचारोंके अन्तमें श्रीभाईजी अपने नामके स्थानपर 'शिव' नाम दिया करते थे । ऐसा करनेका वास्तविक हेतु तो अन्तर्यामी प्रभु या श्रीभाईजी स्वयं ही जानते थे, पर इतने वर्षेांतक साथमें रहकर श्रीभाईजीकी प्रकृतिको देखने-समझनेसे यह अनुमान होता है कि उनका वैष्णवोचित दैन्य इतनी पराकाष्ठाको पहुँच चुका था कि वे आदेश- उपदेशके रूपमें लिखी वस्तुको अपने नामसे प्रकाशित करनेमें संकोच-अनुभव करते होंगे; यद्यपि मेरी अल्पदृष्टिसे श्रीभाईजी इतनी ऊँची आध्यात्मिक भूमिकापर आरूढ़ थे कि सभी प्रकारका उपदेश- आदेश देनेके वे सर्वथा अधिकारी थे ।

''कल्याण'' शीर्षकके अन्तर्गत प्रकाशित इन लेखोंको ' 'सम्पादकीय लेख'के रूपमें ग्रहण किया जा सकता है । ''कल्याण''के सभी श्रेणीके पाठक एवं पाठिकाएँ इन विचारोंको सबसे पहले पढ़ते थे और इनसे बड़े प्रभावित होते थे । श्रीभाईजीकी दीर्घकालीन साधना, तपस्या, चिन्तन, अध्ययन एवं अनुभूतियोंपर आधारित ये विचार न जाने कितने-कितने लोगोंके जीवनमें परिवर्तन करने, उनमें भगवद्विखासकी प्रतिष्ठा करने, उन्हें सत्पथ दिखाने, आशा-उत्साहका संचार करने, साधनका सही मार्ग बताने आदिमें हेतु बने हैं, इसका हिसाब लगाना सम्भव नहीं है । आशा है, सहृदय पाठक-पाठिकाएँ भी इन विचारोंका मनोयोगपूर्वक अध्ययन, मनन कर इनसे लाभ उठानेका प्रयत्न करेंगे ।

 

विषय-सूची

 

विषय

पृं.सं.

1

विषय-चिन्तन ही पतनका

 
 

कारण है

1

2

किसीसे भी घृणा मत

 
 

करो

3

3

उन्नतिके चिह्न

5

4

एक क्षण भी भगवत्कृपा

 
 

से वंचित नहीं

7

5

भगवान् सदा तुम्हारे

 
 

साथ हैं

9

6

भगवान् के बिना सर्वत्र

 
 

दु:ख-ज्वाला है

11

7

संत-दर्शन

12

8

सारा गौरव भगवान् का

 
 

ही है

14

9

भक्तिमें आडम्बरकी

 
 

आवश्यकता नहीं

16

10

भगवान् अशरण

 
 

शरण है

18

11

शुभ निश्चय

20

12

आनन्द और शान्ति

22

13

सब कुछ भगवान् का

 
 

हो गया

24

14

सबके साथ मित्रताका

 
 

बर्ताव करो

26

15

सच्चा क्या है?

29

16

निराशा, विषाद आदिको

 
 

मनमें स्थान मत दो

31

17

अपनी गलतियोंको देखो

33

18

मीठी और हितभरी

 
 

वाणी बोलो

35

19

ईश्वरमें विश्वास

37

20

भगवान्के अस्तित्वमें

 
 

विश्वास

40

21

भगवान् और भगवान्की

 
 

लीला

42

22

भगवान् अत्यन्त समीप हैं

45

23

जबतक और तबतक

48

24

प्रभुकी वस्तु प्रभुके अर्पण

50

25

क्षणभङगुर जीवन

52

26

सदा सुखी कौन है?

54

27

भगवान् परम सुहद्है

57

28

सुख चाहते हो तो

 
 

सुख दो

59

29

धर्माचरणका फल कभी

 
 

बुरा नहीं होता

61

30

भगवान् सदा तुम्हारे

 
 

साथ है

62

31

कल्याणमय निश्चय

64

32

भगवान् ज्ञानमय, प्रेममय

 
 

और आनन्दमय है

66

33

भगवान् की संनिधि

69

34

कल्याणकारी विश्वास

70

35

दूसरोंके हितमें ही

 
 

अपना हित है

73

36

सच्चा आनन्द

75

37

प्रेम

78

38

योगक्षेमका भार

 
 

भगवान् पर

80

39

भगवान् सदा सर्वत्र

 
 

विराजमान है

82

40

भगवत्प्रीत्यर्थ कर्म करो

84

41

भगवान् का द्वार सबके

 
 

लिये खुला है

86

42

भक्त प्रह्लादकी पवित्र

 
 

उक्ति

88

43

भगवान् के आश्रय बिना

 
 

सत्यादि गुण नहीं रह

 
 

सकते

90

44

दोष-दर्शन

92

45

भीतरी दोषोंको दूर करो

94

46

भगवान् की इच्छामें

 
 

अपनी इच्छा मिला दो

96

47

आत्म-समर्पण

98

48

सांसारिक पदार्थ

 
 

अनित्य है

101

49

भगवत्प्राप्तिमें जीवनकी

 
 

सफलता

103

50

सच्ची समता

105

51

प्रशंसामें भूलो मत

108

52

सच्चे संत

110

53

भगवान् मङ्गलमय

112

54

निन्दासे उद्विग्र न होने

 
 

वाले भाग्यवान् है

114

55

एकमात्र प्रभुके शरण

 
 

हो जाओ

116

56

विचारोंका नियन्त्रण

118

57

मनको भगवचिन्तनमें

 
 

लगाइये

120

58

त्यागसे शान्ति

122

59

सारा जगत् भगवान् से

 
 

भरा है

124

60

काम-क्रोधादि स्वभाव

 
 

नहीं, विकार हैं

126

61

सांसारिक सुख -दु:ख

127

62

भगवान् की प्रसन्नताके

 
 

साधन

129

63

अवसर हाथसे मत

 
 

जाने दो

131

 

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