निवेदन
इस समय विश्वमें लगभग ६-७ अरब मनुष्योंकी संख्या बतायी जाती है। मनुष्य-आकार हमें प्राप्त हो गया परन्तु वास्तवमें मनुष्य कितने हैं। प्राय: आजकल हम मनुष्योंका जन्म पशुओंकी भांति व्यतीत हो रहा है। खाने-पीने, भोग भोगने, पैसा कमाने और शयन-प्रमादमें हमलोगोंका समय व्यतीत हो रहा है। यह अमूल्य मनुष्यजन्म जो केवल भगवत्प्राप्तिके लिये प्राप्त हुआ है उसका दुरुपयोग हमारे द्वारा हो रहा है। इस प्रकारका चेत करानेवाले महापुरुष ही होते हैं।
श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका-जैसे महापुरुष जिन्होंने गीताप्रेसकी स्थापना की थी, उनका जीवन बचपनसे ही भगवत्प्राप्तिकी ओर लग गया था। उन्हें बहुत छोटी आयुमें भगवान्का साक्षात्कार हुआ और भगवत्प्रेरणा मिली कि मेरी निष्काम भक्तिका प्रचार हो । उस भक्तिका प्रचार, गीताके भावोंका प्रचार ही उनके जीवनका एकमात्र लक्ष्य बन गया । इन्होंने ऐसे प्रचारके लिये दो उपायोंको काममें लिया । एक उपाय था पुस्तकोंके द्वारा आध्यात्मिक भावोंका प्रचार करना, दूसरा उपाय सत्संगके द्वारा यानी प्रवचनोंके द्वारा लोगोंमें त्याग, ममता, श्रद्धा, भगवत्प्रेम, व्यापार-सुधार, व्यवहारमें त्यागका भाव आदि अनूठे कल्याण करनेवाले, भगवत्प्राप्ति करानेवाले भावोंका प्रचार करना। उन्होंने इन प्रवचनोंके लिये ग्रीष्मकालमें ३-४ मासके लिये स्वर्गाश्रम ऋषिकेशमें वटवृक्षका स्थान चुना, जहाँ गंगाका किनारा एवं पर्वतोंका प्राकृतिक दृश्य है। स्वाभाविक ही वहाँ वैराग्यका प्रादुर्भाव होता है। ऐसे स्थानमें उन्होंने सन् ११४१ में जो प्रवचन दिये, उन्हें किसी सत्संगी भाईने लिख लिया। उन महान् उपयोगी कल्याणकारक प्रवचनोंसे हमें लाभ मिल जाय, इस हेतु उन प्रवचनोंको पुस्तकका रूप दिया गया है।
इन प्रवचनोंमें मुक्ति देनेवाली लड़ाई, नरक देनेवाली लड़ाई, समता अमृत है विषमना विष है, हमारा भगवान्में प्रेम कैसे पैदा हो और बड़े, महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर तीर्थोंमें आकर क्या करना चाहिये? क्या नहीं करना चाहिये? भगवान् की दया और उन्हें पास समझकर हर समय हँसते रहें और प्रभुके वियोगमें हर समय रोते रहें। भगवान्के विधानमें मन मैला करनेवाला वास्तवमें भगवान्का भक्त नहीं हैं-ऐसे विषय आये हैं। हम गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए, माता- बहनें घरमें काम करते हुए ही तथा भाई लोग व्यापार करते हुए ही अपना कर सकते हैं । भगवान्की प्राप्तिके लिये संन्यास ग्रहण करना आवश्यक नही हें। इस पुस्तकमें ऐसे बहुत-से प्रवचन पढ़नेको मिलेंगे, जिनसे हम अपना कल्याण सुगमतासे कर सकते हैं।
हमारा पाठकोंसे निवेदन है कि इस पुस्तकको मननपूर्वक पढ़ें और भाई-बहिनोंको इसके पढ़नेके लिए प्रेरणा दें।
विषय
1
त्यागका महत्त्व
5
2
'सर्वभूतहिते रता : 'पुरुषोंकी महिमा
17
3
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
22
4
उद्धार करनेके प्रयासकी महिमा
29
प्रतिकूलताको सहनेसे महान् लाभ
33
6
निरन्तर भजन कैसे करें
36
7
किसीसे भी वैर रखनेवाला भगवद् भक्त नहीं
47
8
समता ही अमृत है
55
9
वैराग्य, उपरति एवं ध्यानसे स्वत : शान्तिकी प्राप्ति
63
10
सत्संगकी महिमा
67
11
तीर्थोंमें आकर क्या करें, क्या न करें
79
12
ध्यानकी श्रेष्ठता
85
13
भगवत्प्रेम - प्राप्तिके लिये हँसते रहो अथवा रोते रहो
89
14
भगवान्की दया समझनेसे शान्ति और आनन्दकी प्राप्ति
93
15
महापुरुषोंके प्रभावकी विल क्षण बातें
102
16
त्यागका पाठ सीखें
111
परमात्माकी प्राप्ति हो उसी काममें लगना चाहिये
115
18
भगवान्में प्रेम तथा सत्यकी महिमा
123
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