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करमसोत राठौड़ों का गौरवमय इतिहास- Glorious History of Karamsot Rathore

$83
Specifications
HBH313
Author: Mahendra Singh Tanwar
Publisher: Rajasthani Granthagar, Jodhpur
Language: Rajasthani And Hindi
Edition: 2024
ISBN: 9789348239167
Pages: 864 (Color Illustrations)
Cover: HARDCOVER
10x8 inch
1.69 kg
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Book Description
पुस्तक परिचय
प्रस्तुत पुस्तक जोधपुर राज्य के संस्थापक राठौड़ वंश के प्रतापी शासक राव जोधाजी के पुत्र राव करमसीजी के वंशजों के 550 वर्षों के गौरवमय इतिहास एवं उनके द्वारा राष्ट्रीय इतिहास में दिये गये योगदान को दर्शाती है। इस पुस्तक में राव करमसीजी के पाटवी ठिकाणे खींवसर के साथ-साथ लगभग एक सौ ठिकानों का राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक इतिहास का लेखन किया गया है। करमसोत राठौड़ों ने मारवाड़ ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण राजस्थान के अलग-अलग रियासतों में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हुए ठिकाने स्थापित किये। करमसोत राठौड़ों का इतिहास स्वाभिमान, कीर्ति, गौरवशाली परम्पराएँ, त्याग और बलिदान का इतिहास रहा है। जिसे इस पुस्तक में लेखक ने विस्तार से लिखने का प्रयास किया है। मारवाड़ राज्य एवं ठिकाणों के मध्य प्रशासनिक एवं पारम्परिक सम्बन्धों को भी तथ्यों एवं सन्दर्भों के साथ पुस्तक में उल्लेखित किया गया है। साथ ही राव करमसीजी से लेकर वर्तमान तक की वंशावलियों का लेखन इस पुस्तक को और अधिक रोचकता प्रदान करता है। निःसंदेह राठौड़ वंश की करमसोत शाखा के इस गौरवमय इतिहास के प्रकाश में आने से शोध की दृष्टि से नवीन मार्ग प्रशस्त होंगे।

लेखक परिचय
भारतीय इतिहास में तोमरों की भूमिका" विषय पर डॉ. महेन्द्र सिंह तंवर द्वारा गहन अन्वेषणात्मक शोध द्वारा कई नवीन तथ्यों का समावेश करते हुए अपने शोध प्रबंध में कई नये आयाम स्थापित किये है। डॉ. तंवर पिछले बीस वर्षों से अधिक समय से महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र से जुड़े हुए हैं। डॉ तंवर ने स्थानीय इतिहास लेखन और तोमर वंश पर बहुत ही अधिकारितापूर्ण लेखन किया है। अभी तक आपकी हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में विभिन्न विषयों पर पन्द्रह से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। आपने विभिन्न राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में भाग लेकर दुनिया भर में मारवाड़ के इतिहास और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अपना महत्त्वपूर्ण व सराहनीय योगदान दिया है। आपके शोध पत्र देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं

डॉ. तंवर, पिछले दो दशक से संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने के लिए गहन शोध कार्य कर रहे हैं। डॉ. तंवर द्वारा मारवाड़ की और ओरण, गोचर भूमि जल स्रोतों और पर्यावरण पर गहन अनुसंधान कर इनके दस्तावेजीकरण का महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित किया गया है। वर्तमान में आप महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र में सहायक निदेशक पद पर कार्यरत है। शोध केन्द्र में अभिलेखीय दस्तावेजों का विशाल संग्रह उपलब्ध है जिसका डिजिटलीकरण आपके कुशल निर्देशन में हुआ है। इसके अतिरिक्त बीकानेर अभिलेखागार में संगृहीत जोधपुर रेकार्ड्स की डिजिडाईज्ड करवाने में आपकी महत्ती भूमिका रही है। डॉ. तंवर पश्चिमी राजस्थान व मारवाइ से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दस्तावेजों को प्रकाश में लाने के लिए पूर्ण रूप से समर्पित होकर कार्य कर रहे हैं। विभिन्न खांपों के गौरवशाली इतिहास लेखन में आपकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

दो शब्द
सूर्यवंशी वीर राठौड़ों की वंश परम्परा में करमसोतों के पाटवी राव करमसीजी हुए जिन्होंने खींवसर बसाया और गर्व है कि मुझे इस परम्परा में उत्तराधिकारी होने गौरव प्राप्त हुआ है।

हिंदुस्तान के इतिहास में करमसोतों ने अफगानिस्तान से आए मुसलमान घुसपैठियों से लगातार युद्धरत रहते हुए कई बलिदान दे कर अपने नागरिकों को सुरक्षित रखा।

मेरे पूर्वज राव करमसीजी, राव पंचायन जी, ठाकुर हरनाथ सिंह जी, ठाकुर उदय सिंह जी और ठाकुर जोरावर सिंह जी खिलजी, मुगलों और पठानों से राष्ट्र की रक्षार्थ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

राव करमसी जी नारनौल के ढोंसी के युद्ध में 86 वर्ष की आयु में युद्ध करते हुए काम आए। उनकी इसी परम्परा को निभाते हुए उनके वंशजों ने निरन्तर युद्धों में बलिदान दिया। खींवसर मारवाड़ का प्रथम श्रेणी का ठिकाना, सिरायत के कुरब और राजा की पदवी से विभूषित है।

मेरे दादोसा ठाकुर साहब केशरी सिंह जी एक इतिहासकार थे। वृद्धावस्था में उन्होंने बहुत परिश्रम कर करमसोतों के इतिहास लेखन की सामग्री का संकलन अनेक रजवाड़ों और ठिकानों से मंगवाया और उनके नोट्स तैयार करवाए। मुझे हर्ष है कि आज वीर करमसोतों के गौरवमय इतिहास का संकलन पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो रहा है। प्रिय आदरजोग दादोसा के स्वप्न को पूर्ण कर मैंने मेरा फर्ज निभाया है।

इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए मरुधराधीश बापजी हुकम ने अपना शुभकामना संदेश भिजवाया, इसके लिए मैं उनके प्रति भी अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। बापजी हुकम और महारानी साहिबा हुक्म का सदैव हमारे परिवार के प्रति अपनत्व और प्रेम का भाव रहा है।

प्रकाशकीय
हमारे शास्त्रों में इतिहास को 'पंचम वेद' की उपमा दी गई है। इतिहास जहां मनुष्य की यशोगाथा को आलोकित कर मानव को अपनी थाती पर गौरवान्वित और प्रेरित होने का अवसर प्रदान करता है, वहीं इतिहास में घटित भूलें मानव को सबक देकर उज्ज्वल भविष्य हेतु उसका मार्गदर्शन करती है।

संसार में जिसका इतिहास नहीं उसका कोई मोल नहीं, अतः इसी गौरवमय इतिहास के अनछुए पहलुओं के मोतियों को पिरोकर कांतिमय माला पिरोने का सौभाग्य पाकर आज मैं अपने आपको धन्य महसूस कर रहा हूँ। अपने पूर्वजों और कुटुम्ब के गौरवमयी राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत राव करमसी जोधावत के वंश के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास को लिपिबद्ध कर प्रकाशित करने का सौभाग्य पाकर मैं धन्य हो गया। साथ ही अद्भुत गौरवशाली हजारों हजार आशीषों का भागी बनाने के लिए सर्वप्रथम मैं अपने पूज्य पिताश्री और मातुश्री को सादर वंदन करता हूँ। आपके ही आशीर्वाद और प्रोत्साहन से आज मेरे पूज्य दादोसा ठाकुर केसरीसिंहजी के स्वप्न को साकार रूप दे पाया हूँ।

भूमिका
गौरवशाली परम्पराओं एवं संस्कृति के संवाहक के रूप में सदियों से क्षत्रिय अग्रण्य जाने जाते रहे हैं। भारतवर्ष का इतिहास क्षत्रियों की गौरवपूर्ण वीर गाथाओं से सदैव प्रेरणा देता रहा है। इसी परम्परा का निर्वाह राजपूतों के वंशजों ने पीढ़ी दर पीढ़ी करके इतिहास में सदैव के लिए गौरव का स्थान प्राप्त किया।

सूर्यवंशी क्षत्रियों की शाखा में राष्ट्रकूट (राठौड़) हुए हैं जिनके वंशज राव सीहा ने मारवाड़ में 13वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राठौड़ सत्ता की स्थापना की और इन्हीं की 15वीं पीढ़ी में राव जोधाजी हुए जिन्होंने जोधपुर की स्थापना कर राठौड़ साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान किया। राव जोधाजी के पुत्रों ने अपने-अपने नाम से कई नगर और राज्यों की स्थापना की, राव बीकाजी ने बीकानेर, दूदा ने मेड़ता और राव करमसीजी ने खींवसर में राठौड़ सत्ता स्थापित कर ठिकाना बांधा।

राव करमसीजी के वंशज करमसोत राठौड़ कहलाये। इनके वंशजों ने मारवाड़, बीकानेर, किशनगढ़ और अन्य रियासतों में अपने ठिकाने स्थापित किये। पाटवी ठिकाना खींवसर के सुयोग्य उत्तराधिकारी राजा गजेन्द्रसिंहजी ने पाटवी होने के नाते अपने पूर्वजों के गौरवमय इतिहास के लेखन की जिम्मेदारी का पाटवी होने के नाते बखूबी निर्वाह करते हुए 'करमसोत राठौड़ों का गौरवमय इतिहास' लेखन का कार्य प्रारम्भ करवाया। आपके सहयोग एवं मार्गदर्शन के सुफल से आज यह इतिहास ग्रंथ पूर्ण होकर आपके सम्मुख प्रस्तुत करते हुए बहुत हर्ष की अनुभूति हो रही है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस वीर स्वाभिमानी जाति के इतिहास को लिखने का सुअवसर मिला।

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