गृहदाह शरत्चन्द्र का 1919 में प्रकाशित एक चर्चित उपन्यास है। इसमें महिम, सुरेश और अचला की कहानी है। शरत्चंद्र ने इसमें हिंदू धर्म और ब्रह्म समाज के बीच उभर रहे विरोधाभास को उजागर किया है। यही कारण है कि यह कृति सामाजिक विसंगतियों, विषमताओं और विडम्बनाओं का चित्रण करनेवाली एक अनुपम कृति बन पड़ी है।
यह उपन्यास एक ऐसी महान रचना है, जो लम्बे समय तक पाठक के मन को गुदगुदाती रहेगी, साथ ही एक नए कोण से सोचने के लिए भी विवश करेगी, क्योंकि इसमें धर्म एवं समाज के बीच मतभेद के अलावा एक प्रेममयी नारी के हृदय की विवशता का भी बड़ा ही अनोखा चित्न प्रस्तुत किया गया है।
शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म 15 सितम्बर, 1876 हुगली जिले के देवानन्दपुर में हुआ। वे बांग्ला के सबसे लोकप्रिय उपन्यासकार थे।
उनकी अधिकांश कृतियों में गाँव के लोगों की जीवनशैली, उनके संघर्ष एवं उनके द्वारा झेले गए संकटों का वर्णन है। इसके अलावा उनकी रचनाओं में तत्कालीन बंगाल के सामाजिक जीवन की झलक मिलती है। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के कई रचनाओं का कई भारतीय भाषाओं में पचास से अधिक फिल्मों में रूपान्तरण हुआ है। विशेष रूप से, उनके उपन्यास देवदास को सोलह संस्करणों में बनाया गया है तथा परिणीता को बंगाली, हिंदी और तेलुगू में दो बार बनाया गया है।
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