पुस्तक के विषय में
इस नाटक में घासीराम और नाना फड़डवीस का व्यक्ति-संघर्ष प्रमुख है लेकिन तेन्दुलकर ने इस संघर्ष के साथ अपनी विशिष्ट शैली में तत्कालीन सामाजिक एवं राजनैतिक स्थिति का मार्मिक चित्रण भी किया है । सत्ताधारी वर्ग और जनसाधारण की सम्पूर्ण स्थिति पर समय और स्थान के अन्तर से कोई वास्तविक अन्तर नहीं पड़ता । घासीराम हर काल और समाज में होते हैं और हर उस काल और समाज में उसे वैसा बनानेवाले और मौका देखकर उसकी हत्या करनेवाले नाना फड़डवीस भी होते हैं-यह बात तेन्दुलकर ने अपने ढंग से प्रतिपादित की है ।
घासीराम एक प्रकार से एक प्रसंग मात्र है जिसे तेन्दुलकर ने अपने वक्तव्य की अभिव्यक्ति का एक निमित्त, एक साधन बनाया है । नाटक में नाटककार का उद्देश्य नाना फड़डवीस और तत्कालीन पतनोन्मुख समाज के चित्रण द्वारा शाश्वत सच्चाइयों को उजागर करना है और उसमें वह पूरी तरह सफल हुआ है ।
यह नाटक एक विशिष्ट समाज-स्थिति की ओर संकेत करता है जो न पुरानी है और न नई । न वह किसी भौगोलिक सीमा-रेखा में बँधी है, न समय से ही । वह स्थान-कालातीत है, इसलिए 'घासीराम' और 'नाना फड़डवीस' भी स्थान-कालातीत हैं । समाज की स्थितियाँ उन्हें जन्म देती हैं, और वही उनका अंत भी करती हैं ।
'घासीराम कोतवाल' तेन्दुलकर के सर्वाधिक चर्चित और मंचित नाटकों में है । राजिन्दरनाथ, बृजमोहन शाह, ब.व. कारंत, अलोपी वर्मा, अरविन्द गौड़ तथा कमल वशिष्ठ आदि विभिन्न ख्यातनामा निर्देशक इसके अनेक सफल मंचन कर चुके हैं ।
लेखक के विषय में
विजय तेन्दुलकर
जन्म: 7 जनवरी, 1928 । मराठी के आधुनिक नाटककारों में शीर्षस्थ विजय तेन्दुलकर अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिष्ठित एक महत्वपूर्ण नाटककार हें 50 से अधिक नाटकों के रचयिता तेन्दुलकर ने अपने कथ्य और शिल्प की नवीनता से निर्देशकों ओर दर्शकों, दोनों को बराबर आकर्षित किया पूरे देश में उनके नाटकों के अनुवाद एव मंचन हो चुके हें । हिन्दी में उनके 30 से अधिक नाटक खेले जा चुके हें ।
'खामोश, अदालत जारी है', 'घासीराम कोतवाल', 'सखाराम बाइडर', 'जाति ही पूछो साधु की' और 'गिद्ध' आदि बहुचर्चित-बहुमचित नाटकों के अलावा उनकी प्रमुख नाट्य रचनाएँ हें 'अजी', 'अमीर', 'कन्यादान', 'कमला', 'चार दिन', 'नया आदमी', 'बेबी', 'मीता की कहानी', 'राजा मँगे पसीना', 'सफर', 'नया आदमी', 'हत्तेरी किस्मत', 'आह', 'दभद्वीप', 'पंछी ऐसे आते हैं' 'काग विद्यालय', 'कागजी कारतूस', 'नोटिस', 'पटेल की बेटी का ब्याह', 'पसीना-पसीना', 'महगासुर का वध', 'में जीता मैं हारा', 'कुते', 'श्रीमत' आदि विजय तेन्दुलकर के नाटकों में मानव जीवन की विषमताओं, स्वाभाविक व अस्वाभाविक योन सम्बन्धों, जातिगत भेदभाव ओर हिंसा का यथार्थ चित्रण मिलता है उनके अधिकाश पात्र मध्यम एव निम्न मध्यमवर्ग के होते हें ओर उनके विभिन्न रग तेन्दुलकर के नाटकों में आते हें
वसंत देव
जन्म: 28 सितम्बर सन् 1929, झाँसी, उत्तर प्रदेश मातृभाषा मराठी शिक्षा एम ए. (हिंदी)।
वसंत देव की ख्याति का मुख्य आधार उनके द्वारा हिन्दी में मराठी नाटकों के किए गए अनुवाद हैं। आपने आचार्य अत्रे, वसंत कानेटकर, पु.शि. रेगे, विजय तेन्दुलकर, महैश एलकुचवार, सतीश आलेकर आदि नाटककारों के नाटकों के अनुवाद किए हें जिनमें अजीर कन्यादान कमला गिद्ध घासीराम कोतवाल् जात ही पूछो साह कीर बेबी मीता की कहानी सफर हतेरी किस्मत (विजय तेन्दुलकर), अधार यात्रार उधल्ल धमइशाला तथा प्रतिबिम्ब (गोविन्द देशपांडे), जाग उठा रायगढ़ (वसंत कानेटकर) तथा महानिर्वाण (सतीश आलेकर) आदि प्रमुख हें । सहज ओर चुस्त भाषा तथा स्वाभाविक अभिव्यक्ति के कारण वसंत देव के अनुवाद अत्यत लोकप्रिय हुए हैं और उन्हें अनुवादक के रूप में यश प्राप्त हुआ है ।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (हिंदू धर्म) (12531)
Tantra ( तन्त्र ) (993)
Vedas ( वेद ) (708)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1897)
Chaukhamba | चौखंबा (3353)
Jyotish (ज्योतिष) (1450)
Yoga (योग) (1101)
Ramayana (रामायण) (1391)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23131)
History (इतिहास) (8243)
Philosophy (दर्शन) (3391)
Santvani (सन्त वाणी) (2551)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist