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जीन और जीवन- Genes and Life

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Specifications
HBG990
Author: D. Balasubramanian
Publisher: National Institute Of Science Communication And Information Resources, CSIR
Language: Hindi
Edition: 2016
ISBN: 9788172361581
Pages: 120 (With Color Illustrations)
Cover: PAPERBACK
8.5x5.5 inch
160 gm
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Book Description

भूमिका

जैव प्रौद्योगिकी की विस्तृत परिभाषा के अनुसार वे सभी तकनीकें इसके अंतर्गत आती हैं जिनमें जीवों या उनसे प्राप्त पदार्थों का उपयोग किसी उत्पाद को बनाने या उसमें परिवर्तन करने में किया जाता है। इन तकनीकों से सूक्ष्म जीवों, पौधों और प्राणियों में सुधार किया जाता है। जीन और उनके उत्पाद जैव प्रौद्योगिकी के आधार हैं। इसका लक्ष्य जीवों की आनुवंशिक विविधता का मानव के लाभ के लिए उपयोग करना है। आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी जीनों के बारे में हमारे अब तक के ज्ञान और उनका हेर-फेर करने की हमारी क्षमताओं पर आधारित है।

आनुवंशिकी विज्ञान के सिद्धांतों का निरूपण संत आगस्तीन के अनुयायी फादर ग्रेगर मेंडल ने किया। उन्होंने अपने प्रयोग मटर पर किए। उन्होंने विभिन लक्षणों की वंशागति के बारे में पता लगाया और उन्हें आनुवंशिक कारक कहा। उनका मूल अनुसंधान आलेख 1865 में प्रकाशित हुआ लेकिन 19 वीं शताब्दी के अंत तक उसकी कोई चर्चा नहीं हुई। मंडल ने जिन्हें कारक कहा वे आगे चल कर जीन कहलाए। डी एन ए की संरचना तथा आनुवंशिक कूट (कोड) का पता लग जाने से आण्विक जीव विज्ञान की नींव पड़ी और इस ज्ञान का उपयोग जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में किया जा रहा है। पुनर्संयोजी डी एन ए तकनीकों से सूक्ष्म जीवों, पौधों तथा प्राणियों के जीनों को मनचाहे जीवों में डालना और वांछित गुणों को पैदा करना संभव हो गया। इस प्रकार जीनों से बेहतर उत्पाद या कम कीमत पर उत्पाद प्राप्त किए जा सकते हैं। पुनर्संयोजी डी एन ए तकनीकों की खोज से पहले भी जीनों को अलग करने और उनके क्लोन बनाने का काम किया जा रहा था। धान तथा गेहूं की अर्द्ध बौनी किस्मों के लिए जिम्मेदार जीनों ने हमारे देश सहित अनेक देशों में खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने और ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हमारे देश में गेहूं और धान का उत्पादन बढ़ने का मुख्य कारण गेहूं को बौना बनाने वाले दो जीन और धान को अर्द्ध बौना बनाने वाला एक जीन जिम्मेदार है। इन जीनों को यद्यपि अब तक अलग नहीं किया जा सका है और न इनके क्लोन बनाए गए हैं लेकिन इनका आर्थिक योगदान उल्लेखनीय है। दूसरी ओर, दोषी या विकृत जीनों के कारण आनुवंशिक दोष उत्पन्न होते हैं जिनसे मानव को दुःख सहने पड़ते हैं और उसका जीवन दयनीय हो जाता है। इन आनुवंशिक दोषों के कारण मानव जीवन में अनेक रोगों का शिकार हो जाता है इसलिए जीन उपचार से दोषी जीनों के उपचार का लक्ष्य रखा गया है।

प्रस्तावना

जैव प्रौद्योगिकी को सामान्यतः विज्ञान की एक बिल्कुल नई शाखा माना जाता है जिसका आरंभ एक-दो दशक पहले हुआ लेकिन, यह सही नहीं है क्योंकि किसान, पशु पालक और शौकिया उद्यान प्रेमी कई शताब्दियों से इसका उपयोग कर रहे हैं। उन्हें यह पता नहीं था कि वे विज्ञान की एक भविष्य की शाखा का उपयोग कर रहे हैं। फर्क सिर्फ यह है कि वे इसका प्रयोग संपूर्णत पौधे, प्राणी या जीव पर करते थे जबकि आज विज्ञान की इस शाखा में आण्विक स्तर पर कार्य किया जाता है। करीब तीन पीढ़ियों पहले हमें इस बात का पता लगा कि किसी जीव की कोशिका में निहित संपूर्ण जानकारी गुणसूत्रों में होती है। बाद में यह पता चला कि गुणसूत्र मुख्य रूप से डी एन ए अणुओं से बने हैं। डी एन ए के अणु बहुत लंबे, यहां तक कि माइक्रोमीटर या मिलीमीटर तक लंबे होते हैं। विशालकाय क्रोमोसोम भी पृथक किए गए हैं। गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड्स में न जाने कौन-सा सबसे लंबा गुणसूत्र स्थान पाएगा। डी एन ए अणुओं में सूचना जीन नामक रेखीय इकाइयों में निहित होती है।

जीब विज्ञान के क्षेत्र में असली क्रांति विगत 50 वर्षों में हुई जब जीन की रासायनिक संरचना का पता लगा और यह मालूम हुआ कि जीन किस तरह अपनी सूचना पहुंचाते हैं, उस सूचना के आधार पर प्रोटीनों का निर्माण करते हैं और हम किस प्रकार किसी जीव के जीन निकाल कर उन्हें किसी अन्य जीव में डाल सकते हैं।

इस पुस्तक के सातों अध्यायों की विषय वस्तु नए ज्ञान और नई खोजों के साधनों के रूप में जीनों के उपयोग से संबंधित है। तेजी से विकसित हो रही विज्ञान की अन्य शाखाओं की तरह जैव प्रौद्योगिकी तथा आनुवंशिक इंजीनियरी में भी तकनीकी शब्दों, मुहावरों तथा अन्य विशिष्ट शब्दों की भरमार है जिनसे पाठक भयभीत हो सकता है। लेकिन इस पुस्तक में जैव प्रौद्योगिकी को उस शब्द जाल से निकालने का प्रयास किया गया है और इस क्षेत्र के चमत्कारों के बारे में आपको बताने की कोशिश की गई है। इस बारे में हम आपकी राय जानना चाहेंगे और प्रतिक्रियाओं तथा समालोचना का स्वागत करेंगे।

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