पिछले कुछ वर्षों में हमारी जीवन विधाओं के अवबोधन में बहुत तेजी से विकास हुआ है। डी एन ए की द्विसर्पिल संरचना की खोज, आनुवंशिक कोड का भेद खुलना, प्रत्यावर्ती डी एन ए तथा पी सी आर तकनीकों का विकास एवं प्रोटीन की तीन आयामी संरचना का पता चलना ऐसी बातें हैं जिन्होंने आज आण्विक जीव विज्ञान के क्षेत्र में बहुत उत्तेजना पैदा की है। इन आविष्कारों ने जीवन के आण्विक आधार संबंधी हमारे ज्ञान में बहुत बढ़ोत्तरी की है तथा इनसे हमें अनेक नई तकनीकें मिली हैं जिनका उपयोग कृषि, औषधि, निदान, विधि चिकित्सा विज्ञान तथा उद्योग में प्रतिदिन बढ़ रहा है। इन तकनीकों से सूक्ष्मजीवों, पौधों तथा जानवरों में जीन को प्रत्यारोपित तथा अभिव्यक्त किया जा सकता है। आज आनुवंशिक रूप से अभियांत्रिक सूक्ष्मजीव, पशुओं तथा पौधों से भी मानवीय प्रोटीन पैदा की जा सकती है। जीन उपचार से दोषयुक्त जीन के ठीक किये जाने की संभावनाएं आज साफ नजर आने लगी हैं।
सामान्य आण्विक सिद्धांत तथा संरचनाएं आज जीवन के विभिन्न प्रांरूपों का आधार हैं। एशेरिकिया कोलाई से लेकर मानव तक सभी सजीवों में एक जैसा ही आनुवंशिक कोड होता है तथा आण्विक स्तर पर सभी में बहुत समानता है। डी एन ए से आर एन ए तथा प्रोटीन तक आनुवंशिकी सूचना का प्रवाह भी करीब एक जैसा ही है।
जब 1865 में अगस्तीनी साधु ग्रेगर मेंडल ने आनुवंशिकी के सिद्धांतों को सूत्रित किया था तो उन्हें डी एन ए अथवा आनुवंशिकी कोड का ज्ञान नहीं था। 1909 तक जीन शब्द भी नहीं बना था। लेकिन जिस दिन से जेम्स वाटसन तथा फ्रांसिस क्रिक ने डी एन ए की संरचना को वर्णित किया उस दिन से आण्विक जीव विज्ञान ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
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