स्वतंत्रता संघर्ष में पूर्वांचल की पत्रकारिता, विशेषकर गोरखपुर की हिन्दी पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान है। गोरखपुर की उर्वरा भूमि आजादी के दीवाने क्रान्तिकारियों, साहित्यकारों व पत्रकारों को जन्म देकर गौरवशाली इतिहास की साक्षी बनी है। अंग्रेज सरकार की निरंकुश शासन और पत्र-पत्रिकाओं पर उनके द्वारा जबरन थोपे गये नियम कानून के बावजूद भी, चतुराई से अपना स्व-धर्म ध्येय 'स्वतंत्रता' को अपनाया। जिसमें पत्रकारिता को महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में उपयोग किया गया। ऐसे समय जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहें हैं उस समय स्वतंत्रता संघर्ष के योद्धाओं के बलिदान, समर्पण और पत्रकारिता कर्म की पावन स्मृति को इस पुस्तक के माध्यम से याद करना अत्यंत प्रासंगिक है। 'पूर्वाचल की मिशनरी पत्रकारिता' नामक यह पुस्तक आठ अध्यायों में विभक्त हैं। स्वतंत्रता संग्राम की प्रवृत्तियां और गोरखपुर की पत्रकारिता, स्वतंत्रता संग्राम और गोरखपुर, गोरखपुर की मिशनरी पत्रकारिता, गोरखपुर के प्रमुख समाचारपत्र और उनका प्रभाव, स्वाधीनता संघर्ष में गोरखपुर की हिंदी पत्रकारिता, स्वाधीनता संघर्ष और गोरखपुर के महत्वपूर्ण संपादक, पत्रकार एवं पत्र-पत्रिकाएं, क्रांतिकारी पत्र स्वदेश और स्वतन्त्रता संघर्ष की महत्वपूर्ण घटनाएं और स्थानीय पत्रकारिता शीर्षक अध्यायों में में पूर्व पूर्वाचल की मिशनरी विशेषकर गोरखपुर की स्वतंत्रता संघर्ष रूपी पत्रकारिता के विविध पक्षों की रोचक और अनोखी जानकारी प्राप्त होती है। पुस्तक के अध्ययन से ज्ञात होगा कि पूर्वांचल के जनपदों से निकलने वाले अनेक हिन्दी के समाचार पत्र-पत्रिकाएं आर्थिक रूप से कमजोर होते हुए भी तेवर और भाषा के मामले में राष्ट्रवादी स्वरूप लिए तीखें प्रहार करते थे। जिसमें गोरखपुर जनपद से निकलने वाले समाचार पत्र-पत्रिकाओं का कोई जोड़ नहीं था। गोरखपुर से प्रकाशित स्वदेश, क्षत्रिय, ज्ञानशक्ति, युगान्तर, प्रभाकर, जीवन, वसुन्धरा, हलचल, वीर संतान, सरजू, कल्याण एवं भूमिगत पत्र बवण्डर आदि पत्र-पत्रिकाएं राष्ट्रवादी आंदोलन और ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेकनें में अपना अमूल्य योगदान दे रहे थे। गोरखपुर की पत्रकारिता भी इससे पीछे नहीं रही। पुस्तक में स्वाधीनता संघर्ष काल में घटित महत्वपूर्ण घटनाओं का भी अत्यंत रोचक ढंग से उल्लेख किया गया है, जिसने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को उस समय गहराई से प्रभावित किया। गोरखपुर की पत्रकारिता ने लगभग १२८ वर्षों के इतिहास में अनेक मानक स्थापित किए, जिसका आधार स्वतंत्रता संघर्ष की पत्रकारिता के वह महानायक हैं जिन्होंने गोरखपुर की पत्रकारिता को उच्च स्थान प्रदान किया। ऐसे ही महत्वपूर्ण लोगों में 'कल्याण' के संस्थापक संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार, प्रेमचन्द, प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना, आदि थे। गोरखपुर के उर्दू पत्रों में मौलवी सुभानुल्लाह, रियाज खैराबादी, सैयद कामिल हुसैन, मो. फारूख दीवाना तथा हिन्दी पत्रों पत्रों में में पंडित दशरथ प्रसाद द्विवेदी, मन्नन द्विवेदी गजपुरी, महराज कुमार रामदीन, शिव कुमार शास्त्री, पं. गौरी शंकर मिश्र, शिव मंगल गाँधी, रघुपति सहाय 'फिराक', बृज बिहारी लाल, एन. सी. चटर्जी और बाबू मन्ना लाल जैसे प्रखर संपादकों, प्रकाशकों, पत्रकारों, विचारकों व स्तम्भ लेखकों ने पत्रकारिता के माध्यम से लोगों के अन्दर चेतना का संचार किया।
डॉ. परमात्मा कुमार मिश्रः सहायक आचार्य, माध्यम अध्ययन विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार
अनुभव- अध्यापन एवं शोध-१८ वर्ष
मीडिया उद्योग - ०३ वर्ष
पी-एच. डी., पत्रकारिता एवं जनसंचार, नेट (यूजीसी) दिसम्बर-२००३ (पत्रकारिता एवं जनसंचार) अकादमिक विवरण
डॉ. परमात्मा कुमार मिश्र महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी बिहार के मीडिया अध्ययन विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत है। आप विश्वविद्यालय के विभिन्न समितियों जैसे बीओएस, आरएसी, एक भारत श्रेष्ठ भारत में सदस्य के साथ विश्वविद्यालय के मुखपत्र परिसर प्रतिबिम्ब में सलाहकार संपादक है। डॉ. मिश्र पूर्व में (२००७ से २०१६ तक) हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय, वाराणसी के मास कम्युनिकेशन एन्ड वीडियो प्रोडक्शन विभाग में सहायक प्रोफेसर और विभाग प्रभारी के रूप में १४ वर्ष तक सेवाएं प्रदान की। आप २०१० से लखनऊ से प्रकाशित हिंदी दैनिक हिन्द भास्कर समाचारपत्र के सलाहकार मंडल के वरिष्ठ सदस्य है। आपके संपादन में आईएसएसएन युक्त अर्धवार्षिक शोध पत्रिका कम्युनिकोलॉजी चार वर्ष (२०११ -२०१५) तक प्रकाशित हुई। इस तरह से १७ वर्ष का मीडिया अध्यापन और ०३ वर्ष का मीडिया इंडस्ट्री में कार्य करने का अनुभव डॉ. मिश्र के पास है। आपके अंतररास्ट्रीय और राष्ट्रीय शोध पत्रिका में १४ शोधपत्र और विभिन्न पुस्तकों में १० अध्याय प्रकाशित हो चुके है। महत्वपूर्ण अवसर पर २५ से अधिक विशिष्ट व्याख्यान, ४० शोध पत्रों का वाचन और ६५ से अधिक अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी और कार्यशाला में सहभागिता की हैं। आपके लगभग तीन दर्जन लेख विभिन्न सम-सामयिक मुद्दों पर समाचारपत्र और पत्रिका में प्रकाशित है। आप दर्जनों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में सलाहकार और संपादकीय परामर्शदाता के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। पत्रकारिता में स्नातक (बीजे), गोरखपुर विश्वविद्यालय से सर्वोच्च स्थान प्राप्त डॉ. मिश्र दिसम्बर २००३ में नेट (यूजीसी), पत्रकारिता और जनसंचार विषय से है। २०११ में आप 'स्वाधीनता संघर्ष और गोरखपुर की हिंदी पत्रकारिता' शीर्षक से पत्रकारिता और जनसंचार विषय से पी-एच. डी. उपाधि प्राप्त की है। आप राष्ट्रीय संस्था आइडियल जर्नलिस्ट एसोसिएशन, उत्तर प्रदेश द्वारा 'शिक्षक शिरोमणि' (२०१७) और मीडिया फोरम ऑफ इंडिया द्वारा 'पत्रकार गौरव' (२०१६) सम्मान से सम्मानित हैं। दूरदर्शन और आकाशवाणी के दर्जन से अधिक विभिन्न विषयों पर प्रसारित कार्यक्रमों में वार्ताकार और विषय विशेषज्ञ के रूप में शामिल हुए हैं। आपके सह संपादन में 'डिजिटल मीडियाः सिद्धान्त और व्यवहार' नामक पुस्तक प्रकाशित है।
स्वतंत्रता संघर्ष में पूर्वांचल की पत्रकारिता, विशेषकर गोरखपुर की हिन्दी पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान है। गोरखपुर की उर्वर धरती आजादी के दीवाने क्रान्तिकारियों, साहित्यकारों व पत्रकारों को जन्म देकर गौरवशाली इतिहास की साक्षी बनी है। तमाम आर्थिक परेशानियों, ब्रिटिश सरकार की निरंकुश शासन और पत्र-पत्रिकाओं पर उनके द्वारा जबरन थोपे गये नियम कानून के बावजूद भी, चतुराई से अपना स्व-धर्म ध्येय 'स्वतंत्रता' को अपनाया। जिसमें पत्रकारिता को महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में उपयोग किया गया। ऐसे समय जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहें हैं उस समय स्वतंत्रता संघर्ष के योद्धाओं के बलिदान, समर्पण और पत्रकारिता कर्म की पावन स्मृति को इस पुस्तक के माध्यम से याद करना अत्यंत प्रासंगिक है।
स्वतंत्रता संघर्ष की कहानी सही अर्थो में केवल आजादी की लड़ाई का वृतांत ही नहीं अपितु एक बहुआयामी संस्कृति-संपन्न भारत वर्ष की निर्माण की कथा भी है। भारत भूमि पर आजादी की चेतना अपने अंकुरण विकास और पल्लवन के दौर में जनतांत्रिक व्यवस्था के धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु और मानवतावादी स्वरूप को एक पवित्र संकल्प के रूप में अपनायी रही। अतः आजादी की लड़ाई में वीरता, साहस, त्याग, और बलिदान के साथ-साथ साम्प्रदायिक सद्भाव, भाईचारा और राष्ट्रीय स्वाभिमान के लक्ष्य की ओर बढ़ने की ललक विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है। भारतीय स्वाधीनता संघर्ष का सैकड़ो वर्षों का लंबा इतिहास रहा है, जिसके मूल में व्यक्ति का आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व धार्मिक स्वतन्त्रता रहा। स्वतंत्रता संघर्ष में समाज का हर वर्ग अपने-अपने तरीके से योगदान दे रहा था। जिसमें गोरखपुर की भूमिका भी कमतर नहीं है। कलम के सिपाही पत्रकारों व संपादकों ने अपना सब कुछ देश के लिए न्यौछावर करके केवल स्वतंत्रता प्राप्ति के पुनीत उद्देश्य से कार्य कर रहे थे। देश को आजादी दिलाने में छोटे-बड़े समाचार पत्र-पत्रिकाओं तथा पत्रकारों की प्रमुख भूमिका थी। भाषायी समाचार पत्रों में हिन्दी के पत्र-पत्रिकाओं ने प्रमुख रूप से स्वाधीनता संघर्ष की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जिसमें उत्तर भारत के हिन्दी समाचार पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही।
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