फ्रीडम फ्रॉम द नोन, 'ज्ञात से मुक्ति' को सन 1969 में प्रकाशित होते ही कृष्णमूर्ति की शिक्षा को समझने की दिशा में प्रारम्भिक और महत्त्वपूर्ण पुस्तक की मान्यता मिल गयी थी। मानवीय त्रासदी और जीवन की अनंत समस्याओं पर कृष्णमूर्ति ने जो कुछ कहा है उसका सार रूप में पहली बार संकलन इस पुस्तक में हुआ था। कृष्णमूर्ति की जीवनीकार और उनकी आजीवन मित्र रहीं मेरी लट्यन्स ने इस पुस्तक को तैयार किया था। इसके संकलन के लिए उन्होंने कृष्णमूर्ति की यूरोप और भारत की सौ से भी अधिक वार्ताओं को आधार बनाया था। स्वयं कृष्णमूर्ति ने उनसे इस पुस्तक को तैयार करने के लिए कहा था और इसका शीर्षक भी उन्होंने ही सुझाया था। पुस्तक में शब्द कृष्णमूर्ति के ही हैं लेकिन उनका क्रम-निर्धारण और व्यवस्थित रूप से प्रस्तुति मेरी लट्यन्स की है।
जे. कृष्णमूर्ति (1895-1986) विश्व के सर्वाधिक स्वतंत्रचेता, गहनतम दार्शनिकों तथा धार्मिक शिक्षकों में से एक हैं। साठ वर्षों से अधिक समय तक वह पूरे विश्व में विभिन्न स्थानों पर अपना संदेश वार्ताओं एवं संवादों के माध्यम से साझा करते रहे, गुरु के रूप में नहीं, अपितु एक मित्र, एक कल्याणमित्र के रूप में। उनकी शिक्षाओं का आधार ग्रंथ-ज्ञान अथवा सैद्धांतिक स्थापनाएं नहीं है, अतएव वे किसी भी ऐसे व्यक्ति को सीधे-सीधे संप्रेषित हो पाती हैं जो वर्तमान विश्व संकट के, तथा मानव-अस्तित्व की सार्वकालिक समस्याओं के सटीक उत्तर खोज रहा है।
यह पुस्तक कृष्णमूर्ति के सुझाव पर तैयार की गयी है और इसे उनका अनुमोदन प्राप्त है। हाल में, विश्व के विभिन्न भागों में श्रोताओं को दी गयी अंग्रेजी वार्ताओं में से, जो टेप की गयी थीं और पहले अप्रकाशित थीं, उन्हीं में से उनके वचनों का चयन किया गया है। इनके चयन तथा जिस क्रम में ये प्रस्तुत हैं, उनके लिए मैं उत्तरदायी हूँ।
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