गुजरती हुई हर सदी में कुछ लम्हें ऐसे होते हैं, जिनकी व्याख्या बार-बार की जाती है और कहा जा सकता है कि यहाँ इतिहास का निर्माण हुआ था और यहाँ मनुष्य का जीवन विभिन्न पड़ावों से गुजरता हुआ नयी दिशा की ओर अग्रसर होकर नये मुकाम तक पहुँचा था। इसी तरह का एक लम्हा 28 जून, 1914 को आया था, जब गैवरिलो प्रिंसिप ने सराजेवो में भीड़ से निकलकर आर्कड्यूक फ्रेंज फर्डीनेंड की निर्दयता से हत्या कर दी थी तथा यूरोप को प्रथम विश्व युद्ध के रास्ते पर ले आया और एक बार फिर 1942 में भयंकर सर्दी के उस दिन शिकागो में एनरिको फर्मी ने पहले नाभिकीय परीक्षण के साथ नये परमाणु युग की शुरूआत की।
हमारी यकती जा रही शताब्दी में एक बार फिर से ताजगी 1947 में 14-15 अगस्त के दिन तव आयी, जब ब्रिटिश झंडे पर भारत का सितारा युलंद हुआ, यहाँ से नयी दिल्ली के वायसराय की भारतीय घर से अंतिम यात्रा आरंभ हुई। विश्व की जनसंख्या के पाँचवें हिस्से के लिए वह समय प्रतिष्ठित झंडे के लिए संपूर्ण जनमानस के सामने घोषित ब्रिटिश राज की नमाप्ति और चालीस करोड़ लोगों की स्वतंत्रता से अधिक साबित हुआ। बाथ ही साथ इसने कई वर्षों से एक देश द्वारा दूसरे देश पर किये जा रहे बासन की समाप्ति की घोषणा भी कर दी, जिसमें साढ़े चार दशकों से यूरोप से आये जमींदार बने श्वेत ईसाई दूसरे की शक्ति का उपयोग कर रहे थे। उस रात एक नये विश्व का उदय हुआ, यह विश्व जो हमारे साथ अगली शताब्दी की ओर अग्रसर हुआ, एक ऐसी दुनिया जिसमें उपनिवेश और जनता जाग रही थी, नये और यहाँ तक कि संघर्षरत सपनों और प्रेरणाओं के साथ। यह एक उच्च स्तरीय नाटक था और चरित्रों का परिचय उस रात को केंद्रीय भूमिका में था, लॉर्ड माउंटबेटन, वर्मा के ब्रिटिश, अंतिम वायसराय को ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा दिल्ली भेजा गया, ताकि वह ब्रिटिश साम्राज्य की रानी विक्टोरिया के सम्मान में एक महान यादगार पुरस्कार दे सकें। जवाहर लाल नेहरू जो कि स्वच्छ छवि वाले, काफी तेज और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति थे, तीसरी दुनिया के पहले नेता वने। मुहम्मद अली जिन्ना जो कि शांत, स्वानुशासित, विनम्र व्यक्ति थे, लेकिन रात को ब्रिटिशों के साथ व्हिस्की और सोडा पीते हुए उन पर एक अलग इस्लामिक देश के निर्माण का दवाव देते थे और अहिंसा के दूत रहे दूसरे नेताओं के मुकावले शीर्ष स्तर के नेता मोहनदास करमचंद महात्मा गाँधी, जिन्होंने साम्राज्य को समाप्त करने में तेजी दिखायी, वह कभी भी साधारण तौर पर स्थिर नहीं हुए।
उस दौर में जब टेलीविजन नहीं होता था, रेडियो भी कहीं-कहीं पर मौजूद था और ज्यादातर भारतवासी अनपढ़ थे, महात्मा गाँधी ने सावित किया कि वह जनसंचार के वास्तव में गुरु हैं, क्योंकि वह एक विशेष प्रतिभा के धनी थे जो सामान्य हाव-भाव के साथ अपने देशवासियों से बातें करता था। निश्चित रूप से जब इतिहासकार और संपादक सदी के सर्वश्रेष्ठ महिला और पुरुष का चुनाव करना शुरू करेंगे, तो इनका नाम सूची में सबसे ऊपर होगा।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (हिंदू धर्म) (12531)
Tantra ( तन्त्र ) (993)
Vedas ( वेद ) (708)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1897)
Chaukhamba | चौखंबा (3353)
Jyotish (ज्योतिष) (1450)
Yoga (योग) (1101)
Ramayana (रामायण) (1391)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23131)
History (इतिहास) (8243)
Philosophy (दर्शन) (3391)
Santvani (सन्त वाणी) (2551)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist