विश्व के प्राचीन, मध्य और आधुनिक कालीन साहित्य में शायद ही कोई धार्मिक, राजनीतिक अथवा सामाजिक ग्रन्थ ऐसा हो जिसमें महिलाओं की भागीदारी या उनसे जुड़े प्रसंगों का उल्लेख न हो। प्राचीन काल से ही महिलाएँ धर्म, समाज और राजनीति के अन्तर्गत अग्रणी भूमिकाएँ निभाती आई हैं फिर चाहे वह रणक्षेत्र हो, धर्मक्षेत्र हो या शिक्षा या साहित्य का क्षेत्र हो।
प्रत्येक युग के कवियों, लेखकों ने महिलाओं की विद्वता, प्रतिभा, सुन्दरता का ही नहीं उनकी मानसिक अन्तर्दशाओं (सुखद और दुःखद), अन्तर्द्वन्द्वों का भी चित्रण करने का प्रयास किया है। यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि महिलाओं की आन्तरिक अभिव्यक्ति को शब्दों में बाँधने का जितना अधिक, जितना सुन्दर और जितना मर्मस्पर्शी प्रयास पुरुष रचनाकारों ने किया है उतना महिला लेखिकाएँ नहीं कर सकी हैं।
प्राचीन और मध्य ही नहीं आधुनिक साहित्य की रचनाओं में भी नारी विविध सामाजिक, पारिवारिक, मानसिक परिस्थितियों से जूझ रही है। घर और बाहर दोनों ही जगहों में सामंजस्य बैठाना, स्वयं को व्यवस्थित और आत्मनिर्भर रखने की चाह ने उसके सामने अनेक चुनौतियाँ ला खड़ी की हैं। उन चुनौतियों से उलझती, बचती कभी सामना करती नारी अनेकानेक अन्तर्द्वन्द्वों एवं मानसिक संत्रासों से गुजर रही है। प्रस्तुत संकलन में आधुनिक हिन्दी साहित्यकारों; जैसे- तसलीमा नसरीम, प्रभा खेतान आदि कुछ स्त्री साहित्यकारों के जीवन से जुड़े ऐसे पहलू उजागर हुए हैं जिनसे ज्यादातर लोग परिचित नहीं हैं। इन रचनाओं को बड़ी बेबाकी से, स्त्री पक्ष की पैरवी करते हुए पूर्ण विश्वास और सशक्तता के साथ लिखा गया है- स्त्रियों के मनोबल से परिचित कराती ये रचनाएँ पूर्णतः मौलिकता की अनुभूति कराती हैं।
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