सत्यजित राय ने इस उपन्यास में अपने किशोर पाठकों को बंगाल से राजस्थान तक की यात्रा कराई है- कलकत्ता से जैसलमेर तक की यात्रा! यह उपन्यास एक ऐसे किशोर बालक मुकुल की कथा हैं जिसे पूर्व जन्म की बातें याद रहती हैं ! साथ ही यह एक ऐसे जासूस की कथा है जिसे इस प्रकार के सारे रहस्य खोज निकालने का शौक है! अपनी इस विद्या में वह पूरी तरह निपुण है ! ये जासूस फेलूदा हैं जिनका पूरा नाम है प्रदोष मित्तिर! मुकुल के पूर्व जन्म की बातों की खोज करने निकले फेलूदा! मुकुल के पूर्व जन्म में एक सोने का किला था, एड जगह कहीं गड़ा खजाना कइयों को ललचा गया था! गड़ा खजाना कौन खोज निकाले और कौन उस पर कब्जा करे, इस पर दूसरी दौड़ भी शुरु हो गई थी! फेलूदा जानते थे कि लोग उनका पीछा करेंगे! वे सतर्क थे! पीछा करनेवाले बदमाशों ने बड़ा जाल रचा, मगर फेलूदा मात खानेवाले नहीं थे ! पक्के जासूस थे ! सत्यजीत राय का यह किशोर उपन्यास पाठकों को खूब मजे से राजस्थान के कई शहर किशनगढ़ बीकानेर, जोधपुर, पोकरण, रामदेवरा और फिर जैसलमेर दिखाता है!
जानते थे कि लोग उनका पीछा करेंगे! वे सतर्क थे ! पीछा करनेवाले बदमाशों ने बड़ा जाल रचा, मगर फेलूदा मात खानेवाले नहीं थे ! पक्के जासूस थे ! सत्यजीत राय का यह किशोर उपन्यास पाठकों को खूब मजे से राजस्थान के कई शहर किशनगढ़ बीकानेर, जोधपुर, पोकरण, रामदेवरा और फिर जैसलमेर दिखाता है!
'सोने का क़िला' उनके चार किशोर उपन्यासों में से एक है! इस उपन्यास के चित्र भी उन्होंने स्वयं बनाए हैं!
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