परिचय
भगवद्धक्त भाई लारेंसका जन्म सर 1610 ई० में फ्रांसके लोरेन प्रान्तमें एक अशिक्षित और निर्धन परिवारमें हुआ था। इनका नाम निकोलस हरमन था। भगवान्के प्रति अटूट श्रद्धा, भक्ति, रति और विश्वासके फलस्वरूप इनका जीवन उत्तरोत्तर उन्नत होता गया, अन्तमें ये परम सन्तकी कोटिमें पहुँच गये एवं भाई लारेंसके नामसे प्रख्यात हुए। पहले ये एक साधारण सिपाही रहे, पीछे महाशय फोबर्टके यहाँ इन्होंने दरवानी की और अन्तमें पंद्रह वर्षोंतक पाचक (रसोइये) का काम किया। अठारह वर्षकी अवस्थामें ही इनपर भगवत्कृपा हो गयी थी। तबसे इनका जीवन एकमात्र भगवत्-प्रेमकी समाधिमें ही बीता।
इस पुस्तिकामें इनके चार सम्भाषण और पंद्रह पत्रोंका भाषानुवाद प्रकाशित किया जा रहा है। यह पुस्तिका अमेरिकाके 'यंग मेन्स क्रिश्चियन असोसियेसन' के द्वारा प्रकाशित The Practice of the Presence of God पुस्तिकाके आधारपर लिखी गयी है। अंग्रेजी पुस्तिका एक फ्रेंच पुस्तकका अनुवाद है । मूल पुस्तकमें लेखकका नाम नहीं दिया गया है। इस हिन्दी अनुवादके लेखक हमारे प्रिय भाई बाबा गिरधारीदासजी हैं। आशा है, पाठक इस छोटी-सी, परन्तु महत्त्वपूर्ण पुस्तिकासे विशेष लाभ उठावेंगे।
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