प्राचीनकाल से ही व्यक्ति दो प्रकार के प्रयास करता आया है | पहला प्रयास वह अधिकाधिक सुख साधनो को प्राप्त करने के लिए करता है तथा दूसरा इन साधनो को दूसरों की नज़रों से बचाने के लिए करता है | यही कारन है की पहले व्यक्ति नज़र लगने अथवा नज़र दोष जैसी बातों पर अधिक विश्वास किया करता था | इस बारे खा भी जाता है की नज़र लगने से लोहा भी पिघल जाता है तथा नज़र लगने से चट्टान भी टूट जाती है | स्थूल रूप से हम ख सकते है की नज़र लगने से हमे मिलने वाले सुख बाधित होने लगते है तथा दुःख उत्पन्न होने लगते है | इसलिए जिन चीजो से हमे सुखों की प्राप्ति होती होती है, उन सभी को नज़र लगने की आशंका रहती है | जो व्यक्ति इस पर विश्वास कम करते है वे भी अपने मकान पर काली हांडी अथवा राक्षस का मुखौटा लगाते है | छोटे बच्चे के चेहरे पर काजल का कला टिका लगा देते है | ऐसा करके वह भी यह सोचते है की उनका मकान तथा बच्चा दूसरों की नज़र लगने से बचा रहेगा |
नज़र दोष पीड़ा.... पुस्तक में नज़र दोष के विषय को गंभीरता से स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है | नज़र क्यों लगती है तथा हमें कैसे पता लगे की नज़र लगी है इस बारे में विस्तार से बताया गया है | इसके साथ साथ नज़र दोष की पीड़ा से मुक्ति के लिए अनेक उपायों का भी उल्लेख किया गया है | इन उपायों का श्रद्धा एवं विश्वास के साथ प्रयोग करने पर पीड़ा से मुक्ति प्राप्त होती है | मेरा विश्वास है की इस पुस्तक से असंख्य लोग लाभान्वित होंगे |
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