श्रीश्रीठाकुर के आशीर्वाद से 'शिक्षा प्रसंग' का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हुआ।
इस संकलन में 'नारायणी किरानी' श्रीयुक्त प्रफुल्ल कुमार दास द्वारा संकलित 'आलोचना-प्रसंगे' (आ० प्र०) के 22 खण्डों में से और श्री देवी प्रसाद मुखोपाध्याय द्वारा संकलित 'दीपरक्षी' (दीर) के 6 खंडों से शिक्षा के विषय में श्रीश्रीठाकुर द्वारा कहे गये प्रायः सभी बातें एकत्रित करना सम्भव हुआ। आलोचना के क्रम में श्रीश्रीठाकुरजी कहे हैं- 'शिक्षा पद्धति के सम्बन्ध में जो कुछ कहा हूँ या करके देखा हूँ उस समय ये लोग कुछ-कुछ लिखकर रखते थे, सबकुछ लिखा नहीं है। अब देखता हूँ लिखा न रहने पर कुछ दिन बाद वह दिमाग में नहीं रहता है। इसलिए अब ठीक किया हूँ, इन सभी को लेकर ... नवीन रूपसे प्रारंभ करूँगा, प्रश्नोत्तर के रूप में 'शिक्षा-प्रसंगे' नाम से एक पुस्तक हो जाएगा।' उनकी यह इच्छा ठीक उस प्रकार धारावाहिक के रूप में वास्तवायित न होने पर भी शिक्षा के सम्बन्ध में असंख्य शिक्षक, ज्ञानी-गुणी व्यक्ति तथा सामान्य जनों के असंख्य प्रश्न के उत्तर में श्रीश्रीठाकुर अपनी शिक्षा आदर्श को व्यक्त किए हैं। यह संकलन श्रीश्रीठाकुरजी के इच्छा का थोड़ा सा ही वास्तवायन।
मूल ग्रन्थों के साथ संगति रखते हुए कालानुक्रम में प्रश्न व उसके उत्तर में श्रीश्रीठाकुर के वक्तव्यों को संकलित किया गया है। अधिकांश प्रश्न विभिन्न जनों के द्वारा होने पर भी जहाँ किसी प्रश्न का उल्लेख नहीं है लेकिन श्रीश्रीठाकुर के वक्तव्य हैं वहाँ उनके वक्तव्य के परिप्रेक्ष में कुछ प्रश्न प्रस्तुत भी करना पड़ा है। श्रीश्रीठाकुर के दिए हुए प्रत्येक उत्तर के अन्त में संक्षेप में मूलग्रन्थ के नाम तथा किस दिवस का आलोचना है वह भी दिया गया है, जिससे कि आग्रही पाठक आवश्यकता पड़ने पर मूलग्रन्थ देख सकें।
देश की शिक्षा-व्यवस्था के साथ जो लोग युक्त हैं, वे अगर इन सबों का महत्व अनुभव करके इसे वास्तव रूप देने में सचेष्ट रहेंगे तब प्रकृत शिक्षा के फलस्वरूप देश का ही कल्याण होगा और शिक्षा के नाम से कुशिक्षा या अपशिक्षा का कलंक भी दूर होगा।
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