कश्मीर में खिलने वाले फूलों, वहीं फलने वाले फलों, बहने वाले झरनों और चहकने वाले पक्षियों से घाटी छिनने की दोरंगी चालें चली जा रही हैं।
अनेक मुल्कों की लालची निगाहें इस रमणीक घाटी पर टिकी है। उस संगीत से गूंज रही सूफी फिजां को बिगाड़ने का कुचक्र जारी है। स्वच्छ जल में लहरांती कश्ती के मांझी के हाथों से खेने की डांड उन्हें पत्थर थमाये जा रहे हैं।
कश्मीर हिन्दुस्तान की छाँव में महफूज़ है, आज़ाद है, उसकी आज़ादी अक्षुण्ण है। जिस पल हिन्दुस्तानी सेना का पहरा हटेगा, उसी क्षण जलजले की तरह जल्लादों की वहशी कबाईली टुकड़ियाँ कहर बनकर टूट पड़ेगी।
घाटी को तहस-नहस कर देंगे वे लोग, जिन्होंने कारगिल पर कब्जा करने के मंसुबे बना लिये थे। हमारे जांबाज सिपाही यह जंग आजादी के वक्त से लड़ रहे हैं।
आजाद भारत से स्वतंत्र रहने वाले कश्मीरियों पर तब कबाईली हमले हुए थे। कश्मीर की खूबसूरती को तहस-नहस करने की चीनी साजिशें और अन्य मुल्कों की आतंकवादी दुष्चक्र का माकूल जवाब हिन्दुस्तानी फौजें दे रही है। हमारे सिपाही किस दिलेरी और साहस से प्रेमपूर्ण तरीके से कश्मीर की हिफाज़त करते हुए अपना वजूद तक गँवा देते हैं, यह कथा 'दुपहरिया' में है। हमारे सैनिक मात्र योद्धा ही नहीं, वे प्रेमी भी हैं। वे प्रेम को परखते हैं, प्रेम करते हैं, पर अपनी प्रेयसी के प्रेम को भी मुल्क पर न्यौछावर कर देते हैं।
जन्म : 27 दिसम्बर 1960
शिक्षा : बी.एस-सी., एल.एल.बी. नागपुर युनिवर्सिटी
लेखन विधाएँ : कविता, कहानी, गीत, पटकथा, उपन्यास, लेख आदि।
पूर्व सदस्यताएँ : (1) म.प्र. बार कौंसिल जबलपुर म.प्र. (1985), (2) फिल्म रायटर्स एशो. मुंबई (1991 एवं 2003 में), (3) नेशनल फेडरेशन ऑफ रायटर्स एंड जर्नलिस्ट, नई दिल्ली, (4) इंडियन प्रेस कौंसिल भोपाल, म.प्र., (5) वेस्टर्न इंडियन फिल्म प्रोड्यूसर ऐशो. मुम्बई डब्लू.आई.एफ.पी.ए., (6) कहानी लेखन महाविद्यालय से पत्रकारिता एवं फिल्म पटकथा का कोर्स, (7) सी.टी.सी. मुंबई से फिल्म डायरेक्शन प्रशिक्षण।
सम्मान : (1) साहित्य शिरोमणि प्रतापगढ़ (1996), डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप नई दिल्ली (1997), राजमणि रायमणि सम्मान (2002)
प्रकाशित कृतियाँ : 'मुग्धा' श्रृंगारिक काव्य-संग्रह पत्ता टूटा डाल से (संस्मरण), जवाँ-कुसुम (नॉवेल), बाढ़ में बहती हुई लड़की (नॉवेल), जमना किनारे मोरा गाँव (संस्मरण), एक और शकुन्तला (कथा संग्रह)
रुझान : राष्ट्र, संस्कृति, अध्यात्म, फिल्में, संगीत, कृषि एवं ग्रामीण जीवन।
आत्मकथ्य : सनातन संस्कृति हेतु सतत चिन्तन ।
'दुपहरिया' तो उस वीर लेफ्टिनेंट की नई व्याहता के भरपूर यौवन से भरे-पूरे दिनों का अलसाया राग है, जहाँ वो पति की प्रतीक्षा कर रही है। पति जो कि सीमा का प्रहरी है, जिसका काम है युद्ध करना। वह मात्र अपने कर्तव्य से सैनिक है, किंतु स्वभाव उसका स्नेही है। उसकी पत्नी मालती उसके इन्तजार में 'दुपहरिया' करती है, इसी अहसास में यह कहानी आगे बढ़ती है। इस यात्रा में अन्य सहनायिकाएँ भी हैं, जो कि यौवन की 'दुपहरिया' अकेले काट रही हैं। प्रिय साथ न हो, तो नारी का जीवन बियाबान दुपहरिया से कम नहीं।
मालती के समकक्ष दूसरी सहनायिका है, रेशमा। जो कश्मीर की घाटी में युद्धरत नायक की प्राणरक्षा करती है। नायक से प्रेम करने वाली रेशमा का विवाह दूसरे सहनायक से होता है। नायक एक पत्नीव्रती है, वह तो अपनी नव-व्याहता के प्यार में आकंठ डूबा है, और इसी प्रेम-पिपासा को हृदय में समेटे वह युद्ध में प्राण गंवा बैठता है। कश्मीर की घाटी रक्त-रंजित हो उठी है। कभी केसर के बागों के लिए प्रसिद्ध यह घाटी आज युद्ध की आग में झुलस रही है। कश्मीर केसर और सेब, अखरोट जैसे फलों का बागीचा, जिसे 'धरती का स्वर्ग' कहा जाता है।
कभी सम्राट् कनिष्क से लेकर अशोक और हर्षवर्धन जैसे चक्रवर्ती सम्राटों का जहाँ शासन था। जहाँ साक्षात् शिव का वास है हिमालय के कैलाश में जहाँ शिव-पार्वती भ्रमण करते हैं। जहाँ पांडवों ने अन्तिम यात्रा निकट बद्रीनाथ धाम में की थी।
मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त ने सिंधु सहित सातों सहायक नदियों सतलुज से लेकर काबुल तक राज्य किया था। महरौली के स्तम्भ में यह लेख उत्कीर्ण है। उज्जैयिनी के शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने भी उत्तरापथ एवं अवन्ति के शक राजाओं को परास्त का विक्रमादित्य की 'उपाधि' धारण की थी। मुगल शासकों ने कश्मीर घाटी में अपना सौहार्दपूर्ण शासन चलाया। अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ को यह घाटी खूब भायी। शाहजहाँ और जहाँगीर ने अपने कलाप्रियता को वास्तुकला में ढाला और कश्मीर में श्रीनगर में शालीमार गार्डन उन्हीं की निशानी है।
कश्मीर में इंसानी एकता उसकी रूह में बसती है। उसे युद्धस्थली के रूप में देखने वालों ने ईश्वर के इस वरदान को अभिशाप में बदलने का कुत्सिक प्रयास किया है।
कश्मीर में खिलने वाले फूलों, वहाँ फलने वाले फलों, बहने वाले झरनों और चहकने वाले पक्षियों से घाटी छिनने की दोरंगी चालें चली जा रही हैं।
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