पुस्तक के विषय में
राममनोहर के संबंध में उनके समकालीनों में बहुत गलतफहमियां रहीं। शायद उनके विचार ही इतने नवीन और मौलिक थे कि समकालीन उन्हें पूरी तरह नहीं समझ सके और उनका बिना लागलपेट के बात कहने का ढंग कुछ लोगों को बुरा लगा हो। उन्होंने भारत की राजनीति को अपने आदर्शो के अनुसार ढालने का प्रयत्न किया। दुर्भाग्य से उनकी मृत्यु उसी समय हो गई जब वे इसमें सफल होते दिखाई दिए। आशा है कि इस पुस्तक का व्यापक प्रसार होगा और जिन पाठकों क्रो लोहिया से मिलने का अवसर नहीं मिला, वे इस पुस्तक में लोहिया के उथल-पुथल भरे जीवन तथा उनके अत्यंत मौलिक चिंतन की झलक पा सकेंगे।
मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश के प्रमुख राजनैतिक व्यक्तियों में लोहिया प्रथम श्रेणी में आएंगे। उनका व्यक्तित्व प्रभावकारी है और वह हमेशा ध्यान आकर्षित करता है। उनके सोचने और काम करने के ढंग से विभिन्न प्रकार के, अक्सर परस्पर विरोधी भाव, पैदा होते हैं और एक अर्थ में उनके व्यक्तित्व को अत्यंत उत्तेजक कहा जा सकता है। कभी-कभी उनका व्यवहार ऐसा होता था गोया वे व्यक्ति को लड़ने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। संक्षेप में हम उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते । जिस किसी क्षेत्र में वे प्रवेश करते हैं, वे अद्भुत मौलिकता वाले क्ष जागृत और सचेत व्यक्ति के रूप में दूसरों को प्रभावित किए बिना नहीं रहते। उनका तीव्र स्वभाव उनकी भाषा तथा अभिव्यक्ति को अद्भुत पैनापन देता है और उनका व्यंग्य तीखा एवं बेधक होता है। उनकी विशेषता है अपने अनुभूत सत्य को यथासंभव बिना लागलपेट के प्रस्तुत करना।
इसके प्रदर्शन के लिए वे जेल, फावड़ा और वोट के प्रतीकों का इस्तेमाल करते हैं। इंदुमति केलकर प्रसिद्ध मराठी लेखिका, श्रीमती इंदुमति केलकर प्रतिबद्ध समाजवादी थीं जिन्होंने डॉ. राममनोहर लोहिया के निकट सहयोगी के रूप में समाजवादी आदोलन में सक्रिय भाग लिया। उनके पति आचार्य श्रीपाद केलकर सुविख्यात चिंतक और सर्वोदय कार्यकर्ता थे । पति-पत्नी दोनों डॉ. लोहिया के प्रति समर्पित थे। दादा धर्माधिकारी के शब्दों में इंदुमति ने डॉ. लोहिया तथा उनके मिशन के साथ पूर्ण तादात्म्य स्थापित कर लिया था । इस तादात्म्य के कारण ही वह डॉ. लोहिया की इतनी विस्तृत जीवनी लिख सकीं, यद्यपि डॉ. लोहिया अपनी जीवनी लिखे जाने के प्रति उदासीन थे। डॉ. लोहिया की असमय मृत्यु के बाद इंदुमति जी के सामने अपनी स्मृतियों और अनुभवों को लिपिबद्ध करने के सिवा कोई विकल्प नहीं रहा और उन्होंने उन अनेक पत्रों तथा दस्तावेजों का इसमें इस्तेमाल किया जो लोहिया की निकटता के कारण उन्हें उपलब्ध हुए। इसी का फल है यह सुंदर, विस्तृत और अंतर्दृष्टिपूर्ण जीवनी। प्रसिद्ध लेखिका होने के अलावा श्रीमती इंदुमति केलकर समाजवादी आदोलन की सक्रिय कार्यकर्ता रही हैं। डॉ. लोहिया से उनका निकट संबंध था और उन्होंने इस पुस्तक में लोहिया के जीवन तथा कार्यो को निष्ठापूर्वक प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
अनुक्रम
आशीर्वचन
7
प्रस्तावना
9
नर्मुद्रण के सबंध में
15
आमुख
17
1
विश्व नागरिक
23
2
सरयू और अयोध्या का बेटा
44
3
बर्लिन में शिक्षा और राजनीति-प्रवेश
56
4
कांग्रेस परराष्ट्र विभाग के मंत्री
77
5
युयुत्सु.
93
6
कांग्रेस रेडियो बोल रहा है
106
रिहाई, पर राहत कहां
119
8
गोवा में मशाल जली
133
दुबारा अनाथ हुए
150
10
आजाद हिंदुस्तान में भी जेल
169
11
समाजवादी विचार और कर्म को नई दिशा
188
12
विश्व-भ्रमण-नई सभ्यता का संदेश
205
13
जेफरसन और थोरो के देश में
216
14
अंतर्राष्ट्रीय जातिप्रथा के अंत की कोशिश
231
समाजवाद का नवदर्शन
247
16
सिद्धातहीनता से संघर्ष
260
वाणी-स्वतंत्रता की यशस्वी लड़ाई
272
18
हिंदुस्तानी इंसान की कीमत
287
19
वाणी-स्वतंत्रता और कर्म-नियंत्रण
301
20
सिद्धांतनिष्ठा और संगठित अरमान
317
21
तीन आधारशिलाएं
333
22
पिंजड़े के बंदी पर सांप
356
निराशा के कर्तव्य
372
24
कलेजे की छलनी
385
25
अमरीकी भूमि पर स्वतंत्रता देवी की पूजा
397
26
संसोपा का जन्म
412
27
प्रतिज्ञापूर्ति
425
28
सुधसे या टूटो
440
29
लोकसभा में लोहिया
461
30
अंतिम लड़ाई
507
संदर्भ साहित्य
520
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