निवेदन
प्रेम एक दिव्य भाव है । इस विलक्षण भावके द्वारा भक्तोंने भगवान्को भी वशमें किया है, तभी तो भगवान्को कहना पड़ा अहं भक्त पराधीन । वस्तुत भगवान्को अपने भक्तोंका यह निष्काम समर्पण अनन्य और उत्कट (विशुद्ध) प्रेम ही अत्यन्त प्रिय है । इस प्रेममें भक्त और भगवान्की विलक्षण एकता हो जाती है । यह प्रेम दास्य, सख्य आदि सभी भक्तिपूर्ण भावोंसे बहुत ऊँचा भाव है । यहाँ भक्त और भगवान् दो प्रतीत होते हुए भी एक हो जाते हैं । यही प्रेमकी विलक्षण एकता है ।
प्रस्तुत पुस्तकमें ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाद्वारा भगवत्यप्रेमकी प्राप्ति, उसकी विलक्षण महिमा, श्रद्धा और निष्काम भावकी महत्ता एवं आत्मकल्याणके आवश्यक उपाय और मनुष्य जीवनको सार्थक सिद्ध करनेवाले उपयुक्त और उपयोगी साधनोंके विषयमें बड़े ही महत्त्वपूर्ण विचार प्रकट किये गये हैं । इसमें दिये हुए तेरह लेखोंके माध्यमसे इन महापुरुषने संसारसे विरति और भगवान्से रति (प्रेम) होनेके लिये सरल, सुबोध भाषामें उपयुक्त साधन करनेकी प्रेरणा दी है । परम श्रद्धेय श्रीगोयन्दकाजीद्वारा दिये हुए प्रवचनोंको यहाँ लेखरूपमें प्रकाशित किया जा रहा है । सभी लेख साधकोंको भगवान्में भाव बढ़ाकर शीघ्र ही भगवत्प्रप्ति करानेवाले हैं ।
आशा है सभी प्रेमी पाठक, जिज्ञासु और श्रद्धालु महानुभाव इसके मनन अनुशीलनद्वारा विशेष लाभ उठायेंगे और अपने परिचित प्रेमियोंको भी इस पुस्तकसे लाभ उठानेकी सत्प्रेरणा देकर हमें कृतकृत्य करेंगे ।
विषय सूची
1
प्रेममें विलक्षण एकता
2
भक्तोंकी महिमा
7
3
भगवत्प्राप्तिमें श्रद्धा और निष्कामभावकी महत्ता
11
4
सेवा, जप, ध्यान, प्रेम तथा व्याकुलता
19
5
रहस्यकी बात
36
6
महात्माके प्रति साधकका भाव एवं भगवत्प्रेम
45
एक क्षणमें भगवत्प्राप्तिका उपाय सत्संगकी महिमा
61
8
हृदय द्रवीभूत होनेपर तुरंत लाभ
78
9
भगवान्की दयाका दिग्दर्शन
91
10
परमात्माको सब भूतोंका सुहद् जाननेसेपरम शान्तिकी प्राप्ति
101
भगवान्की दया और प्रेमका रहस्य
118
12
मनुष्य शरीरकी उपयोगिता
131
13
भगवत्प्राप्ति करानेवाला अत्यन्त सरल सुगम साधन
151
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