निवेदन
'परमार्थ प्रसंगे महामहोपाध्यायगोपीनाथ कविराज' पाँच खण्डों में प्रकाशन करने के पश्चात् विभिन्न जिज्ञासुओं ने अध्यात्म-मार्ग के दिग्दर्शन के लिए-विशेष रूप से दीक्षा एवं सद्गुरु की प्राप्ति के लिए बड़े आग्रह के साथ पत्र लिखे। कुछ लोग इस विषय पर विचार-विमर्श करने के लिए आये थे । उनकी आन्तरिक इच्छा के परिप्रेक्ष्य में, परमाराध्य आचार्य देव की दीक्षा और सद्गुरु के बारे में, विभिन्न समय पर, विभिन पुस्तकों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों का संकलन करने का मैंने निश्चय किया । उसी संकल्प की फलश्रुति प्रस्तुत संकलन है। गंगाजल से गंगा-पूजा की तरह पूजनीय आचार्यदेव की जन्म शत-वार्षिकी के अवसर पर 'दीक्षा प्रसंगे महामहोपाध्याय गोपीनाथ कविराज ' पुस्तक प्रणामांजलि तथा श्रद्धांजलि के रूप में निवेदित है।
निम्नलिखित पुस्तकों तथा पत्रिकाओं से इस पुस्तक के विषय का चयन किया गया है।
१'परमार्थ प्रसंगे महामहोपाध्याय गोपीनाथ कविराज', २. 'स्वसंवेदन', ३. 'विजिज्ञासा', ४. 'तांत्रिक साधनाओं सिद्धान्त' एवं ५. 'आनन्दवार्ता।'
प्रथम स्तर के लेखों का संकलन करते समय कुछ प्रासंगिक लेख हमारी दृष्टि में नहीं आये थे, क्योंकि उक्त पुस्तकें तथा पत्रिकाएँ हमारे पास नहीं थीं। इसी कारण उन अंशों को परिशिष्ट के रूप में पुस्तक के अन्त में प्रकाशित किया गया है। इस अनिच्छाकृत त्रुटि के लिए पाठक-समाज से मैं क्षमा चाहता हूँ।
सकृतज्ञ चित्त से स्मरण करता हूँ अध्यापक विश्वनाथ वंद्योपाध्याय, डॉ० मलयकुमार घोष, डॉ० अनिमेष बोस एवं श्री देवव्रत चक्रवर्ती की अकुण्ठ सहायता की बात । इन लोगों की सहायता न पाने पर इस संकलन का प्रकाशन सम्भव नहीं हवा। मेरे आध्यात्मिक मार्ग के अग्रज पूजनीय डॉ० गोविन्द गोपाल मुखोपाध्याय महाशय ने विषयवस्तु चयन से लेकर प्रूफ देखने तक सर्वस्तर में सहायता की है और प्ररणा देते रहे हैं । इसके लिए उनके निकट मेरा ऋण अपरिशोध्य है।
कागज की महँगाई के कारण तथा छपाई खर्च में अस्वाभाविक वृद्धि के कागज पुस्तकों का प्रकाशन असम्भव हो गया है । इस विषय की पुस्तकों के पाठक भी बहुत सीमित हैं। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है-चार प्रकार के भक्त, अर्थात् आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु और ज्ञानी उन्हें चाहते हैं। इन चार प्रकार के भक्तों में से केवल जिज्ञासुओं के लिए यह संकलन है। हृदय में अधिष्ठित रहते हुए श्रीगुरु ने इस संकलन को प्रकाशित करने के लिए प्रेरणा दी है।
पूज्य कविराजजी का सारा जीवन वाराणसी में बीता। उनके हिन्दीभाषी शिष्य, प्रशंसक और भक्त बहुत बड़ी संख्या में हैं। उनके लिए 'दीक्षा' का हिन्दी अनुवाद मेरे अनुरोध पर अनुराग प्रकाशन के संचालक श्री अनुरागकुमार मोदी ने प्रकाशित करना स्वीकार किया। श्री मोदी कविराजजी के अनन्य भक्त हैं, उन्होंने कविराजजी की अनेक रचनाएँ हिन्दी में प्रकाशित की हैं। उसी कम में 'दीक्षा' हिन्दी पाठकों तक पहुँचाते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है।
आशा है, परमकारुणिक श्रीगुरुप्रसाद से अध्यात्म-जिज्ञासु तथा अध्यात्म- मार्ग के पथिक, इस ज्ञानगंगा में स्नानकर सत्यपथ का संधान प्राप्त करेंगे।
अन्त में प्रार्थना करता हूँ कि श्रीगुरु का आशीर्वाद सभी पर वर्षित हो एवं उनकी कृपा से सभी सत्यपथ का निर्देश प्राप्त करें।
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